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पुनर्वसु नक्षत्र

पुनर्वसु (मिथुन राशि में 20°00′ से 3°20′ कर्क राशि तक)

पुनर्वसु नक्षत्र में दो उज्ज्वल तारों का समावेश है जिन्हें कास्टर (अल्फा-जेमिनोरियम) व पोलक्स (बीटा-जेमिनोरियम) कहा जाता है। ये दो तारे पुनर्वसु नक्षत्र के अंतर्गत पैदा होने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जीवन की शिक्षाएं अक्सर जोड़ों में घटित होती हैं| ज्योतिष में पुनर्वसु नक्षत्र मिथुन राशि से लेकर कर्क राशि तक विस्तारित है| ‘पुनर्र’ का अर्थ आवृत्ति है तथा ‘वसु’ का मतलब प्रकाश की किरण है| इस प्रकार पुनर्वसु का अर्थ ‘पुनः प्रकाश बनने’ से है। इस नक्षत्र का प्रतीक तीरों का तरकश है जो इच्छाओं या महत्वाकांक्षाओं के प्रति प्रयास करने की क्षमता को दर्शाता है। पुनर्वसु नक्षत्र तूफान की अराजकता के बाद सद्भाव लाता है| इसके पीछे रचनात्मक कार्यों को नए विचारों द्वारा नवीनीकृत करने की भावना छुपी हुई है| इस नक्षत्र की अधिपति देवी अदिति है जो प्रचुरता व समस्त ईश्वरीय प्राणियों की माता हैं| अदिति इस नक्षत्र को एक संवेदनशील व पोषण गुण देती है। बृहस्पति इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह है तथा आशावाद के साथ-साथ उच्च शिक्षा के प्रति रुझान देता है। पुनर्वसु निवास से संबंधित नक्षत्र है इसलिए इस नक्षत्र में उत्पन्न लोग प्रायः अपने घर में रहना पसंद करते हैं|

सामान्य विशेषताएँ: धर्मनिष्ठ; उत्तम व्यवहार; शांत; धैर्यवान; सज्जन; सुख पाने वाला; बौद्धिक और आध्यात्मिक ज्ञान से युक्त
अनुवाद: “पुनः उत्तम”, “पुनः धनवान”
प्रतीक: धनुष व तरकश के तीर
पशु प्रतीक: बिल्ली
अधिपति देव: फसल की देवी अदिति
शासक ग्रह: गुरु
गुरु ग्रह के अधिपति देव: शिव
प्रकृति: देवता (देव समान)
ढंग: दब्बू
संख्या: 7 (संतुलन और सामंजस्य से संबंधित)
लिंग: स्त्री
दोष: वात
गुण: सात्विक
तत्व: जल
प्रकृति: चर
पक्षी: हंस
सामान्य नाम: बांस
वानस्पतिक नाम: बम्बुसा बांबोस
बीज ध्वनि: के, को, हा, ही
ग्रह से संबंध: मिथुन राशि के स्वामी के रूप में बुध व कर्क राशि के स्वामी के रूप में चंद्रमा इस नक्षत्र से संबंधित है|

प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में विभाजित किया जाता है जिन्हें पद कहते हैं| पुनर्वसु नक्षत्र के विभिन्न पदों में जन्म लेने वाले लोगों के अधिक विशिष्ट लक्षण होते हैं:

purnarvasu-nakshatra-hindi

पद:

प्रथम पद मिथुन राशि का 20° 00′- 23° 20′ भाग मंगल ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: के
सूचक शब्द: नवीनता
द्वितीय पद मिथुन राशि का 23° 20′ – 26° 40′ भाग शुक्र ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: को
सूचक शब्द: भौतिकवादी
तृतीय पद मिथुन राशि का 26° 40′ – 30° 00′ भाग बुध ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: हा
सूचक शब्द: बौद्धिक
चतुर्थ पद कर्क राशि का 00° 00′ – 3° 20′ भाग चंद्र ग्रह द्वारा शासित
ध्वनि: ही
सूचक शब्द: पोषण

शक्ति: देखभाल करने वाला, प्रेमपूर्ण, पोषण, आसानी से संतुष्ट, मैत्रीपूर्ण, उत्तम स्वभाव, जीवन में सादगी, प्रत्येक पल में जीने वाला, उदार, मिलनसार प्रकृति, धार्मिक रुझान, आध्यात्मिक लेखन और दर्शनशास्त्र में रूचि, संचार क्षेत्र में कार्यक्षम – उत्तम लेखक व प्रेरक वक्ता, गहरी कल्पना, आध्यात्मिक प्रगति हेतु स्वयं का शुद्धिकरण करने वाला, दूसरों के साथ जुड़ने की क्षमता, सफल परियोजनाएं|

कमजोरियाँ: जीवन के प्रति सरल दृष्टिकोण, बुद्धि की कमी, आध्यात्मिकता पर ध्यान देने के कारण भौतिक सुखों की कमी, दूरदर्शिता की कमी के कारण जीवन में जटिलताएं, प्रायः गतिशील, अस्थिर संबंध, विभिन्न प्रकार की नौकरियां व कार्यक्षेत्र, चंचल प्रकृति, दुविधाग्रस्त, प्रायः रोगी, आलोचनात्मक, अति बुद्धिमता पूर्ण जीवन, जीवन में बहुत आसानी से ऊब जाने वाला|

कार्यक्षेत्र: पर्यटन, यात्रा उद्योग, होटल व रेस्तरां प्रबंधन, व्यापार उद्योग, निर्माण, वास्तुकला, सिविल अभियंता, वैज्ञानिक, शिक्षक, लेखक, गूढ़ अध्ययन, दार्शनिक, मंत्री, इतिहासकार, प्राचीन वस्तुओं के सौदागर, अख़बार उद्योग, मकान मालिक, भवन प्रबंधक, रख-रखाव से जुड़ी सेवाएं, पायलट , अंतरिक्ष यात्री, संदेशवाहक, शिल्पकार, अन्वेषक, तीरंदाजी, वे कार्य जिनमें हाथों का इस्तेमाल होता हो|

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्में प्रसिद्ध लोग: बॉब होप, जेरी ब्राउन, महर्षि रमण, पॉल साइमन

अनुकूल गतिविधियां: रिश्तों, परियोजनाओं और गतिविधियों की नई शुरुआत; विवाह; चिकित्सा; प्रारंभिक शिक्षा; निर्माण कार्य या नींव डालने की शुरुआत, यात्रा, तीर्थयात्रा; कृषि व बागवानी; कल्पना; आध्यात्मिकता; ध्यान; शिक्षण, बच्चों के साथ कार्य करना, घर या वाहन खरीदना

प्रतिकूल गतिविधियां: ऋण देना या लेना; कानूनी मसले, विवाद या आक्रामक कार्रवाई

पवित्र मंदिर: वाणियांबड़ी श्री अधिधीश्वर

पुनर्वसु नक्षत्र से संबंधित यह मंदिर भारत में तमिलनाडु के वेल्लोर के निकट उत्तरी अर्काट जिले में स्थित है। पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा हुए लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इस पवित्र मंदिर के दर्शन अवश्य करने चाहिए|

भगवान ब्रह्मा ने एक यज्ञ अनुष्ठान किया जिससे देवी सरस्वती ने अपनी वक्तृत्व क्षमता खो दी। उन्होंने अपनी वाणी को पुन: प्राप्त करने के लिए महान एकाग्रता के साथ कड़ी तपस्या की। देवी सरस्वती ने देवी वाणी का रूप धारण किया तथा अपने शिक्षक भगवान हेयग्रीव से सहायता प्राप्त की। भगवान शिव ने वाणी को अपनी महान आवाज का प्रयोग करने व उनके निमित गाने का आदेश दिया। इसलिए यह मंदिर वाणियांबड़ी के नाम से जाना जाता है। इस पवित्र मंदिर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना व उनकी कृपा द्वारा उच्च शिक्षा व दर्शन का ज्ञान पलक झपकते ही प्राप्त हो सकता है| ज्ञान प्राप्ति के लिए यह मंदिर एक शुभ स्थल है|

वानियमपदी के इस पवित्र मंदिर में देवी कलावाणी श्री सरस्वती जी ने एक स्त्री के रूप में भगवान शिव का स्तुति गान किया था| प्रत्येक पुनर्वसु नक्षत्र दिवस व पूर्णमासी दिवस पर उन्होंने भगवान शिव का अभिषेक किया तथा देवी सरस्वती को सफेद पुष्प अर्पित किए। पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा हुए लोगों को प्रतिदिन इस स्थल पर भूखे व्यक्तियों को भोजन खिलाकर श्री अन्नपूर्णा देवी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए| भक्तगण यहाँ प्रत्यक्ष रूप से या दान के माध्यम से लोगों को भोजन वितरित कर सकते हैं। इसके अलावा यहाँ आकस्मिक रूप से आने वाले यात्रियों को भोजन दिया जा सकता है|इसमें पूर्वजों के नाम से तीर्थ यात्रियों को भोजन देना शामिल है| पितरों के नाम से यहाँ अन्नदान करने से आने वाली पीढ़ियों को समृद्धि प्राप्त होती है तथा पारिवारिक समस्याओं को दूर करने का भी यह एक उत्तम उपाय है।

पुनर्वसु नक्षत्र दिवस विकास से संबंधित है तथा शिक्षकों के लिए यह दिवस काफी शक्तिशाली माना गया है|वे इस दिन भगवान श्री अधिधीश्वर व देवी सरस्वती का जलाभिषेक भी कर सकते हैं| इस दिन शिक्षक व होटल प्रबंधन क्षेत्र से जुड़े लोगों को अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति करने हेतु प्रार्थना करनी चाहिए| इस पवित्र स्थल पर पुनर्वसु नक्षत्र दिवस, प्रदोष दिवस, शिवरात्रि व बुधवार को पूजा-अर्चना व प्रार्थना करने से बच्चों की शिक्षा में प्रगति होती है|

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्में लोगों के लिए वेदों द्वारा निर्धारित धूप बांस नामक जड़ी-बूटी से निर्मित है|

इस धूप को जलाना उस विशिष्ट नक्षत्र हेतु एक लघु यज्ञ अनुष्ठान करने के समान है| एक विशिष्ट जन्मनक्षत्र के निमित किए गए इस लघु अनुष्ठान द्वारा आप अपने ग्रहों की आन्तरिक उर्जा से जुड़कर सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में सक्षम होंगे|

एक विशिष्ट नक्षत्र दिवस पर अन्य नक्षत्र धूपों को जलाने से आप उस दिन के नक्षत्र की ऊर्जा से जुड़कर अनुकूल परिणाम प्राप्त करते हैं| आपको यह सलाह दी जाती है कि आप कम से कम अपने व्यक्तिगत नक्षत्र से जुड़ी धूप को प्रतिदिन जलाएं ताकि आपको उस नक्षत्र से जुड़ी सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती रहे|

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