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प्रदोष क्या है?

एक महीने में दो बार आने वाला प्रदोष काल महीने के शुक्ल पक्ष(बढ़ते चंद्र) और कृष्ण पक्ष (घटते चंद्रमा) दोनों के तेरहवे दिन आने वाला एक विषेष समय काल होता है। यह समय काल मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है, इस दौरान भगवान शिव की विशेष पूजा और आराधना का विशेष महत्व होता है।

यदि हम प्रदोष काल के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो प्रदोष का अर्थ दोषों का अंत करने वाला होता है। एक महीने में दो बार आने वाला प्रदोष काल एक पूर्ण प्रदोष काल होता है, वहीं प्रतिदिन शाम 4.30 से शाम 6.00 बजे के बीच का समय भी प्रदोष के रूप में मनाया जाता है। इस समय काल के दौरान हर दिन ऊर्जा का छोटा स्तर प्रदोष होता है।

Pradosham:
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प्रदोष के प्रकार


Surya Pradosham

सूर्य प्रदोष

रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को सूर्य प्रदोष कहते हैं। सूर्य आपकी आत्मा और आपकी आंतरिक शक्ति है। सूर्य प्रदोष अनुष्ठान समृद्धि और सच्चे सुख का मार्ग बनाने का एक महान अवसर प्रदान कर सकता है


Soma Pradosham
सोम प्रदोष

जब प्रदोष सोमवार के दिन पड़ता है, तो इसे सोम प्रदोषम (सोम का अर्थ चंद्रमा से है जो सोमवार के शासक हैं) कहा जाता है। सोम प्रदोष चंद्रमा के कष्टों को दूर करने के लिए प्रभावी है जो मानसिक पीड़ा का कारण बन सकता है और जन्म के वर्षों में संचित कर्म को कम कर सकता है


Runa Vimochana Pradosham
ऋण विमोचन प्रदोष

मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को ऋण विमोचन प्रदोष कहा जाता है। इसमें नकारात्मक ऋण कर्म को भंग करने का विशेष गुण होता है। रूऋ विमोचन प्रदोष के दौरान जारी ऋण-समाशोधन, परोपकारी ऊर्जा एक वित्तीय गड़बड़ी को साफ कर सकती है और आपको एक सकारात्मक रास्ता खोजने में मदद कर सकती है।


Wednesday Pradosham
बुध प्रदोष

इस दिन शिव की पूजा करने से नकारात्मक कर्म कम हो सकते हैं जो आपके आध्यात्मिक विकास और समृद्धि को रोक सकते हैं।


Guru Pradosham
गुरु प्रदोष

गुरुवार को होने वाले प्रदोष को गुरु प्रदोष कहा जाता है (गुरु, बृहस्पति का दूसरा नाम होने के कारण वे गुरुवार के शासक ग्रह है)। यह प्रदोष पिछले कर्मों को साफ कर सकती है, जो आपको अपने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने से रोकता है और आपको शिक्षकों, गुरुओं या बुद्धिमान व्यक्तियों से नई शिक्षाओं या पाठों के लिए खुद को उपलब्ध करवाने का मौका प्रदान करता है।


Aishwarya Pradosham
ऐश्वर्या प्रदोष

शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष का ऐष्वर्य प्रदोष कहा जाता है ( शुक्र ग्रह को शुक्रवार का शासक ग्रह माना जाता है जो धन की देवी लक्ष्मी द्वारा अधिग्रहित किया जाता है)। यह प्रदोष आपको अपने वित्तीय भाग्य को बदलने का अवसर देता है। वैदिक ग्रंथों का कहना है कि शुक्र प्रदोष नकारात्मक स्पंदनों को दूर करने और आपके जीवन में प्रगतिशील परिवर्तन लाने में मदद कर सकता है


Sani Pradosham
शनि प्रदोष

शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष को शनि प्रदोष के नाम से जाता है। कहा जाता है और यह सबसे विशेष प्रदोष में से एक है, क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार मूल प्रदोष शनिवार को ही हुआ था। चूंकि शनि कर्म का ग्रह है, इसलिए शनि प्रदोष पर शनि के स्वामी भगवान शिव की पूजा करने से उनके अपार आशीर्वाद में वृद्धि हो सकती है।

प्रदोष के बाद सदस्यों द्वारा साझा किये गए अनुभव
 

प्रदोष के लाभ

पवित्र ग्रंथों के अनुसार, प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करना और व्रत (उपवास) करना आपको निम्नलिखित लाभ प्रदान कर सकता है।

Prodosham
  • आपको कर्म प्रभाव और पापों से मुक्त करता है।
  • मनोकामना पूर्ति में सहायक
  • शारीरिक और मानसिक सफाई प्रणाली के रूप में कार्य करता है।
  • आध्यात्मिक विकास और समृद्धि में मददगार
  • मोक्ष प्राप्त करने में सहायक
कर्म हटाने के लिए ऊर्जा भंवर

डॉ. पिल्लई ने भगवान शिव के दो शक्तिशाली ऊर्जा भंवरों को प्रत्येक प्रदोष पर अनुष्ठान करने और अपने जीवन में कर्म के बोझ से राहत पाने की सलाह दी है।

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मकारल शक्तिस्थल

डॉ. पिल्लई द्वारा पहचाना गया एक शक्तिशाली कर्म मुक्ति भंवर है, जिसमें बहुत तेजी से बुरे कर्म को दूर करने की ऊर्जा है। यह एक विशेष भंवर है जहां भगवान शिव सोने की छिपकली के रूप में प्रकट हुए थे, शक्तिस्थल में उस कहानी को दर्शाती मूर्तियां मौजूद हैं। इस शक्तिस्थल पर शिव लिंगम की एक बेहद रोचक छवि भी मौजूद है। शीर्ष पर गोलाकार होने के बजाय, इसे छिपकली की पूंछ या तलवार की ब्लेड की तरह ऊपर की ओर इशारा करते हुए दर्षाया गया है।

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कुरुंगलेश्वर शक्तिस्थल

चेन्नई, तमिलनाडु में यह विशेष शक्तिस्थल पहला शक्तिस्थल है, जहां प्रदोष अनुष्ठान की शुरूआत हुई है। इस शक्तिस्थल पर शिव लिंग एक उल्टे मिट्टी के दीपक के समान बहुत छोटा होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राम के दो पुत्रों लव और कुष ने अपने पिता राम के खिलाफ लड़ने के श्राप से राहत पाने के लिए इस लिंगम को बनाया था।

Prodosham
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प्रदोष का पौराणिक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, देवों और असुरों (राक्षसों) ने मेरु पर्वत को छड़ी के रूप में और वासुकी सांप को रस्सी के रूप में उपयोग करके अमृत के लिए महासागर का मंथन किया। विपरीत दिशाओं में गंभीर गति पर, दिव्य सांप को अत्यधिक घर्षण का सामना करना पड़ा जिसके कारण उसने अमृत में हलाहला विष उगल दिया। देवता भी इस विष के पास जाने से डरते थे और मदद के लिए भगवान शिव का आह्वान करते हैं।

ब्रह्मांड के परम संरक्षक शिव ने उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर उन्हें बचाने के लिए विष का पान किया। देवी पार्वती, उनकी पत्नी को डर था कि यह विष भगवान शिव को हानि पहुंचा सकती है और जहर को उनके पेट में जाने से रोकने के लिए उन्होने उनका गला पकड़ लिया। गले में विष एकत्र होने के कारण उनका गला नीला पड़ गया तब से शिव को नीलकांता या नीलकंड भी कहा जाने लगा।

त्रयोदशी (चंद्र मास के 13 वें चंद्र) पर, देवताओं को अपने पाप का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से क्षमा की गुहार लगाई। इससे दिव्य सर्वशक्तिमान को प्रसन्नता हुई और उन्होने नंदी के सींगों के बीच खुशी के साथ नृत्य किया। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने प्रदोष के समय यह नृत्य किया था और वह इसे हर दिन करते हैं। इसलिए, प्रदोष के दौरान, दक्षिण भारत के सभी शिव मंदिरों में नंदी की भी पूजा की जाती है।