एक महीने में दो बार आने वाला प्रदोष काल महीने के शुक्ल पक्ष(बढ़ते चंद्र) और कृष्ण पक्ष (घटते चंद्रमा) दोनों के तेरहवे दिन आने वाला एक विषेष समय काल होता है। यह समय काल मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है, इस दौरान भगवान शिव की विशेष पूजा और आराधना का विशेष महत्व होता है।
यदि हम प्रदोष काल के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो प्रदोष का अर्थ दोषों का अंत करने वाला होता है। एक महीने में दो बार आने वाला प्रदोष काल एक पूर्ण प्रदोष काल होता है, वहीं प्रतिदिन शाम 4.30 से शाम 6.00 बजे के बीच का समय भी प्रदोष के रूप में मनाया जाता है। इस समय काल के दौरान हर दिन ऊर्जा का छोटा स्तर प्रदोष होता है।
Pradosham:
Most Important Day to Remove Karma
क्रिस्टल शिव लिंगम – छोटा आकार
प्रदोष पूजा किट
कर्म ज्योतिष रिपोर्ट
(पिछले जीवन की प्रभाव रिपोर्ट)
लिखित मंत्र
थिरु नील कांतम
10008 टाइम्स
सूर्य प्रदोष
रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को सूर्य प्रदोष कहते हैं। सूर्य आपकी आत्मा और आपकी आंतरिक शक्ति है। सूर्य प्रदोष अनुष्ठान समृद्धि और सच्चे सुख का मार्ग बनाने का एक महान अवसर प्रदान कर सकता है
जब प्रदोष सोमवार के दिन पड़ता है, तो इसे सोम प्रदोषम (सोम का अर्थ चंद्रमा से है जो सोमवार के शासक हैं) कहा जाता है। सोम प्रदोष चंद्रमा के कष्टों को दूर करने के लिए प्रभावी है जो मानसिक पीड़ा का कारण बन सकता है और जन्म के वर्षों में संचित कर्म को कम कर सकता है
मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को ऋण विमोचन प्रदोष कहा जाता है। इसमें नकारात्मक ऋण कर्म को भंग करने का विशेष गुण होता है। रूऋ विमोचन प्रदोष के दौरान जारी ऋण-समाशोधन, परोपकारी ऊर्जा एक वित्तीय गड़बड़ी को साफ कर सकती है और आपको एक सकारात्मक रास्ता खोजने में मदद कर सकती है।
इस दिन शिव की पूजा करने से नकारात्मक कर्म कम हो सकते हैं जो आपके आध्यात्मिक विकास और समृद्धि को रोक सकते हैं।
गुरुवार को होने वाले प्रदोष को गुरु प्रदोष कहा जाता है (गुरु, बृहस्पति का दूसरा नाम होने के कारण वे गुरुवार के शासक ग्रह है)। यह प्रदोष पिछले कर्मों को साफ कर सकती है, जो आपको अपने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने से रोकता है और आपको शिक्षकों, गुरुओं या बुद्धिमान व्यक्तियों से नई शिक्षाओं या पाठों के लिए खुद को उपलब्ध करवाने का मौका प्रदान करता है।
शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष का ऐष्वर्य प्रदोष कहा जाता है ( शुक्र ग्रह को शुक्रवार का शासक ग्रह माना जाता है जो धन की देवी लक्ष्मी द्वारा अधिग्रहित किया जाता है)। यह प्रदोष आपको अपने वित्तीय भाग्य को बदलने का अवसर देता है। वैदिक ग्रंथों का कहना है कि शुक्र प्रदोष नकारात्मक स्पंदनों को दूर करने और आपके जीवन में प्रगतिशील परिवर्तन लाने में मदद कर सकता है
शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष को शनि प्रदोष के नाम से जाता है। कहा जाता है और यह सबसे विशेष प्रदोष में से एक है, क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार मूल प्रदोष शनिवार को ही हुआ था। चूंकि शनि कर्म का ग्रह है, इसलिए शनि प्रदोष पर शनि के स्वामी भगवान शिव की पूजा करने से उनके अपार आशीर्वाद में वृद्धि हो सकती है।
पवित्र ग्रंथों के अनुसार, प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करना और व्रत (उपवास) करना आपको निम्नलिखित लाभ प्रदान कर सकता है।
डॉ. पिल्लई ने भगवान शिव के दो शक्तिशाली ऊर्जा भंवरों को प्रत्येक प्रदोष पर अनुष्ठान करने और अपने जीवन में कर्म के बोझ से राहत पाने की सलाह दी है।
डॉ. पिल्लई द्वारा पहचाना गया एक शक्तिशाली कर्म मुक्ति भंवर है, जिसमें बहुत तेजी से बुरे कर्म को दूर करने की ऊर्जा है। यह एक विशेष भंवर है जहां भगवान शिव सोने की छिपकली के रूप में प्रकट हुए थे, शक्तिस्थल में उस कहानी को दर्शाती मूर्तियां मौजूद हैं। इस शक्तिस्थल पर शिव लिंगम की एक बेहद रोचक छवि भी मौजूद है। शीर्ष पर गोलाकार होने के बजाय, इसे छिपकली की पूंछ या तलवार की ब्लेड की तरह ऊपर की ओर इशारा करते हुए दर्षाया गया है।
चेन्नई, तमिलनाडु में यह विशेष शक्तिस्थल पहला शक्तिस्थल है, जहां प्रदोष अनुष्ठान की शुरूआत हुई है। इस शक्तिस्थल पर शिव लिंग एक उल्टे मिट्टी के दीपक के समान बहुत छोटा होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राम के दो पुत्रों लव और कुष ने अपने पिता राम के खिलाफ लड़ने के श्राप से राहत पाने के लिए इस लिंगम को बनाया था।
पौराणिक कथा के अनुसार, देवों और असुरों (राक्षसों) ने मेरु पर्वत को छड़ी के रूप में और वासुकी सांप को रस्सी के रूप में उपयोग करके अमृत के लिए महासागर का मंथन किया। विपरीत दिशाओं में गंभीर गति पर, दिव्य सांप को अत्यधिक घर्षण का सामना करना पड़ा जिसके कारण उसने अमृत में हलाहला विष उगल दिया। देवता भी इस विष के पास जाने से डरते थे और मदद के लिए भगवान शिव का आह्वान करते हैं।
ब्रह्मांड के परम संरक्षक शिव ने उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर उन्हें बचाने के लिए विष का पान किया। देवी पार्वती, उनकी पत्नी को डर था कि यह विष भगवान शिव को हानि पहुंचा सकती है और जहर को उनके पेट में जाने से रोकने के लिए उन्होने उनका गला पकड़ लिया। गले में विष एकत्र होने के कारण उनका गला नीला पड़ गया तब से शिव को नीलकांता या नीलकंड भी कहा जाने लगा।
त्रयोदशी (चंद्र मास के 13 वें चंद्र) पर, देवताओं को अपने पाप का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से क्षमा की गुहार लगाई। इससे दिव्य सर्वशक्तिमान को प्रसन्नता हुई और उन्होने नंदी के सींगों के बीच खुशी के साथ नृत्य किया। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने प्रदोष के समय यह नृत्य किया था और वह इसे हर दिन करते हैं। इसलिए, प्रदोष के दौरान, दक्षिण भारत के सभी शिव मंदिरों में नंदी की भी पूजा की जाती है।