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मंगल(मांगलिक) दोष के प्रभाव

मंगल दोष का परिचय

मंगल दोष को बहुत भयावह ज्योतिषीय पीड़ा के रूप में देखा जाता है। यह विवाह प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद कुंडली मिलाते समय सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक होता है जिसके प्रति लोग चिंतित रहते हैं| ‘मंगल’ मंगल ग्रह का संस्कृत नाम है तथा ‘दोष’ का मतलब पीड़ा है| इस प्रकार मांगलिक दोष का अर्थ मंगल ग्रह से उत्पन्न पीड़ा है जो किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में मंगल ग्रह की प्रतिकूल स्थिति को दर्शाती है|

मंगल दोष का उस समय काफी महत्व माना जाता है जब विवाह हेतु एक लड़के और लड़की की कुंडली का मिलान किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि उनमें से कोई एक भी मांगलिक दोष से पीड़ित है तो यह दोष गंभीर रूप से उनके वैवाहिक जीवन व इसके सद्भाव को बाधित कर सकता है।

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मंगल दोष के लिए मापदंड

मान्यता है कि एक पुरुष या एक महिला मंगल दोष या मांगलिक दोष से तब पीड़ित होते हैं जब यह ग्रह उनके लग्न से गिनने पर प्रथम भाव, द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव या द्वादश भाव में स्थित होता है| चंद्रमा या शुक्र से गिनने पर उपरोक्त भावों में मंगल ग्रह की स्थिति को भी मांगलिक दोष समझा जाता है।

मंगल दोष एक पीड़ाकारी दोष है जो कुंडली में मंगल ग्रह की स्थिति पर निर्भर करता है, उपरोक्त बताए गए विभिन्न भावों में इसकी स्थिति से विभिन्न प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं, हालाँकि यह समस्त प्रभाव प्रतिकूल हैं।

मंगल दोष की विशेषताएं

लोगों के जीवन में मंगल ग्रह के कारण जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है या जिस दुःख का सामना उन्हें करना पड़ता है, प्रायः वह मांगलिक दोष की विशेषता होती है। इस दोष के प्रभाव से एक व्यक्ति अहंकारी, असहिष्णु, तानाशाह, आक्रामक व प्रायः विनाशकारी प्रवृति वाला हो सकता है| इसके अलावा स्वास्थ्य समस्याएं, बुरी आर्थिक स्थिति, असफलताएं, विवाह में विलंब, वैवाहिक जीवन में गंभीर विवाद व कई बार संबंध विच्छेद भी हो सकता है। हालांकि यह कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति मंगलवार को पैदा हुआ है या पति और पत्नी दोनों इस दोष से पीड़ित हैं तो इसका प्रभाव समाप्त हो सकता है।

मंगल दोष के दुष्प्रभाव

मंगल दोष निश्चित रूप से प्रतिकूल प्रभाव पैदा कर सकता है लेकिन अलग-अलग भावों में मंगल की स्थिति के कारण विभिन्न प्रभाव हो सकते हैं|

प्रथम भाव स्वयं को दर्शाता है इसलिए मंगल की इस भाव में स्थिति एक व्यक्ति को आवेशी, तुनकमिजाज व हिंसक बना सकती है।

द्वितीय भाव परिवार व आनंद को दर्शाता है तथा मंगल की इस भाव में स्थिति जीवनसाथी के साथ तनाव उत्पन्न कर सकती है|

चतुर्थ भाव सुख का प्रतीक है तथा मंगल की इस भाव में स्थिति पारस्परिक क्लेश व दुखी घरेलू जीवन प्रदान कर सकती है|

सप्तम भाव प्रत्यक्ष रूप से विवाह से जुड़ा है इसलिए मंगल की इस भाव में स्थिति से पति और पत्नी के बीच गंभीर मनमुटाव व वैचारिक मतभेद हो सकते हैं|

अष्टम भाव को सुहाग भाव भी कहा जाता है क्योंकि यह वैवाहिक सौभाग्य अर्थात विवाह की अवधि को दर्शाता है इसलिए मंगल की इस भाव में स्थिति वैवाहिक जीवन व जीवनसाथी की आयु के लिए घातक है|

द्वादश भाव वैवाहिक सुख व सुखी वैवाहिक जीवन का प्रतीक है इसलिए मंगल की इस भाव में स्थिति वैवाहिक शांति व आनंद को भंग कर सकती है यहाँ तक कि युगलों का दैनिक जीवन दुखी हो सकता है|

मांगलिक दोष के दुष्प्रभावों से बचने के उपाय

यदि कोई दैवीय कृपा रक्षा करती है तो किसी भी व्यक्ति को कोई दुःख या नुकसान नहीं हो सकता है| हनुमान जी व नवग्रहों की निष्कपट रूप से पूजा-अर्चना द्वारा लोग इस दोष के दुष्प्रभाव से बच सकते हैं| इसके अतिरिक्त उपवास करना, स्तोत्रों का पाठ, दान, मंगलवार के दिन रक्तदान, पक्षियों को खिलाना, दाएं हाथ की अनामिका अंगुली में मूंगा धारण करना आदि उपाय उत्तम उपचार के रूप में कार्य कर सकते हैं|

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