गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हिंदू महीने भाद्रपद (मध्य अगस्त- मध्य सितंबर) में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी एक 11 दिन लंबी अवधि की शुरूआत है, जब भगवान गणेश के प्रति अपना आभार प्रकट करने और आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे उत्तम समय है। साल 2024 में गणेश चतुर्थी 7 सितंबर 2024 के दिन है मतलब 7 तारीख के दिन गणेश जी बैठाए जाएंगे। वहीं गणेश विसर्जन 17 सितंबर 2024 के दिन है। भगवान गणेश सौभाग्य, बुद्धि, सफलता और समृद्धि प्रदान करने वाले देवता हैं। वह व्यक्ति के अतीत से संचित दुखों और बाधाओं को नष्ट कर देता है और एक नया जीवन प्रदान करता है। आइए गणेश विसर्जन व गणेश चतुर्थी की तिथि व गणेश जी बैठाने का मुहूर्त 2024 जानें और गणेश विसर्जन के लिए शुभ मुुहूर्त 2024 सहित अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां।
गणेश विसर्जन सुबह के मुहूर्त 2024 – 09ः17 ए एम से 01ः53 पी एम (चर, लाभ, अमृत)
गणेश विसर्जन दोपहर के मुहूर्त 2024 – 03ः24 पी एम से 04ः56 पी एम (शुभ)
गणेश विसर्जन – 07ः56 पी एम से 09ः24 पी एम (लाभ)
गणेश विसर्जन रात के मुहूर्त 2024 – 10ः53 पी एम से 03ः18 ए एम, (शुभ, अमृत, चर) 18 सितम्बर
गणेश जी की प्रतिमा को जल स्त्रोत के पास स्थापित करें और उन्हें अपनी पूजा वेदी या किसी पवित्र स्थान पर रखें। (इस विशेष दिन पर गणेश प्रतिमाओं की पूजा की जाती है क्योंकि यह गणेश तत्व को आकर्षित करती है, जो पृथ्वी पर सर्वोच्च है) उन्हे एक सफेद रेशमी धोती और एक रेशमी शॉल पहनाएं। उनके सामने चावल के आटे से रंगोली भी बनाएं। (जब सफेद चींटियां आटा खाती हैं तो भक्त को अपार पुण्य मिलता है, ऐसा माना जाता है) उन्हें आभूषणों से अलंकृत किया जा सकता है और उनके ऊपर यज्ञोपवीत सफेद धागा बांधना चाहिए।
उन्हें दूर्वा घास और चमेली, कमल, दूधिया आदि फूलों की माला चढ़ाएं। उनके माथे पर लाल चंदन का टीका लगाना चाहिए। घी का दीपक जलाएं, धूप जलाएं गणेश जी की आरती करें। गणेश जी की आरती 2024 के पश्चात किसी भी शुभ चैघडिया मुहूर्त में गणेश जी का विसर्जन करें।
॥ ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ॥
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥
॥ ॐ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।