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आदित्य हृदय स्तोत्र

सूर्य-भगवान के लिए एक और महत्वपूर्ण भजन आदित्य हृदय है, जो इस लेख का विषय है। यह एक स्तोत्र, या एक पवित्र भजन है, जो भगवान आदित्य को समर्पित है।

सूर्य भगवान के अनेक नाम होते हैं | उनमें से एक है आदित्य | उसकी महीमा और प्रसंसा करनेवाले स्तोत्रों में आदित्य हृदय स्तोत्र एक है|

हमारी संस्कृति में अक्सर यह पाया जाता है कि प्रकृति की शक्तियों को देवताओं के रूप में हवा, पानी, पृथ्वी, अग्नि आदि की तरह पूजा जाता है। इन देवताओं में से एक सूर्य है, जो हमारे सूर्य का अधिष्ठाता देवता है, जिसे आदित्य (उनके अदिति के पुत्र होने के कारण) के रूप में भी जाना जाता है, जिन्हें पृथ्वी पर जीवन के निर्वाहक के रूप में पूजा जाता है। Astrology in Hindi – एस्ट्रोवेड पर जाने एस्ट्रोलॉजी, राशिफल, ज्योतिष और ज्योतिष शास्त्र से जुड़ी सभी जानकारियां

आदित्य हृदय कहानि

कहा जाता है कि यह स्तोत्र ऋषि अगस्त्य ने राम को सिखाया| जिसका किवदंती इस प्रकार होता है कि:

रामायण में राम और रावण के बीच लड़ाई का समय था। रावण को हारने के लिए राम ने रावण के खिलाफ सभी प्रकार के हथियारों को इस्तेमाल किया, लेकिन सब व्यर्थ हो गया । राक्षसों का अधिपति अजेय लगता है। राम, भगवान के अवतार होने पर भी उस समय एक सामान्य इंसान होने के कारण, मानसिक और शारीरिक रूप से थकान से पीड़ित हुआ । वह अपने शत्रु को देखता है, जो युद्ध के लिए तैयार है, और चिंता उसके माथे को पार कर जाती है।

aditya hridaya stotra in hindi

इस समय, जैसे ही देवता आकाश से देखते हैं, ऋषि अगस्त्य राम के सामने प्रकट होते हैं और राम को फिर से जीवंत करने और युद्ध के परिणाम को तेज करने के उद्देश्य से, भगवान सूर्य को यह प्रार्थना सिखाते हैं, और जल्द ही गायब हो जाते हैं। राम अगस्त्य से प्रार्थना प्राप्त करते हैं, और इसे पढ़ने पर सक्रिय हो जाते हैं। वह अपना धनुष उठाता है और अंतिम टकराव की तैयारी करता है। रावण पर जीत पाता है|

इसकी संरचना

आदित्य हृदय का नाम इसलिए रखा गया है, क्योंकि रामायण के महान टीकाकार, श्री गोविंदराज के अनुसार, यह ‘प्रार्थना जो भगवान आदित्य के हृदय को प्रसन्न करती है’ – आदित्य मनः-प्रसादकम इत्यार्थः।

जो चीज इस संरचना को अद्वितीय बनाती है वह है पाठ के पहले और बाद में देवता और फलश्रुति की महिमा की उपस्थिति – एक विशेषता जो शायद ही कभी किसी अन्य भजन में देखी जाती है।

पाठ के लाभ

जैसा कि पहले बताया गया है, आदित्य हृदय ने इसके लाभों को सूचीबद्ध किया है – अगस्त्य ने राम को स्तोत्र के लाभों के बारे में बताते हुए कहा, “यह आदित्य हृदय में सभी दुश्मनों को परास्त करने, जीत प्रदान करने और अपने अनंत शुभता, अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु दिलाता है और सभी प्रकार की आशीर्वाद देने की शक्ति इसमें है।

आदित्य हृदय का पाठ करने के बाद, अगस्त्य ने राम से वादा किया, “खतरे के समय, भय या अनिश्चितता के स्थानों में, जो कोई भी इस भजन का पाठ करता है, वह दुख में नहीं पड़ता। इस स्तोत्र का जप तीन बार भगवान आदित्य को पूर्ण भक्ति के साथ करने पर, आपको विजय प्राप्त होगी। आप अगले ही पल रावण को हरा देंगे, हे राम!

इसका अर्थ है इस स्तोत्र के जप की प्रभावशीलता और यह भक्त के मन में जो विश्वास पैदा करता है, वह कुछ ऐसा है जो राम में लगभग तुरंत ही प्रकट हो जाता है। हम भी इसे पाठ करने पर शत्रु पर जीत पा सकते हैं| सभी कार्यों में जय प्राप्त कर सकते हैं|

कांची के महान ऋषि, श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने आदित्य हृदय स्तोत्र को महान मंत्र शक्ति के साथ एक पाठ के रूप में निर्धारित किया। फलश्रुति में ऋषि अगस्त्य द्वारा बताए गए अनुसार इसका नियमित पाठ करने से अच्छा स्वास्थ्य, दीर्घायु, दुखों का नाश और मन की शांति सुनिश्चित होती है।

आदित्य हृदय स्तोत्र

विनियोग

ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो
भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास

ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।

ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।

करन्यास

ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवरवते अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादि अंगन्यास

ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।
इस प्रकार न्यास करके निम्नांकित मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

आदित्य हृदय स्तोत्र

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥॥
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥॥

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥॥
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥॥

।।संपूर्ण ।।

श्री रामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।

‘सबके हृदय में रमण करने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो। वत्स इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।’

‘इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है’आदित्यहृदय’। यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्ष्य और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।’

‘भगवान सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित हैं। ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं। तुम इनका पूजन करो।’

‘सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं।’

‘ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज हैं।’

यह अदितिपुत्र, जगत को उत्पन्न करने वाले, सर्वव्यापक, आकाश में विचरने वाले,पोषण करने वाले, प्रकाशमान, सुर्वणसदृश, प्रकाशक,ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज, रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले, दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले, हजारों किरणों से सुशोभित, अन्धकार का नाश करने वाले, कल्याण के उदगमस्थान, भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने वाले, किरण धारण करने वाले, ब्रह्मा,स्वभाव से ही सुख देने वाले, गर्मी पैदा करने वाल, दिनकर,सबकी स्तुति के पात्र, अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले, आनन्दस्वरूप एवं व्यापक, शीत का नाश करने वाले, आकाश के स्वामी, अन्धकार को नष्ट करने वाले, ऋग, यजुः और सामवेद के पारगामी, घनी वृष्टि के कारण, जल को उत्पन्न करने वाले, आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले, घाम उत्पन्न करने वाले,किरणसमूह को धारण करने वाले, मौत के कारण, भूरे रंग वाले, सबको ताप देने वाले, त्रिकालदर्शी, सर्वस्वरूप, लाल रंगवाले, सबकी उत्पत्ति के कारण, नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, जगत की रक्षा करने वाले, तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त हैं। इन सभी गुणों और नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव! आपको नमस्कार है।’

‘पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरि अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।’

‘आप जय स्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता है। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध है, आपको नमस्कार है।’

आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा हैं, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।’

आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।’

‘आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं, आपका स्वरूप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।’

‘आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।’

‘रघुनन्दन ये भगवान सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।’

‘ये सब भूतों में अन्तर्यामीरूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।’

देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।’

‘राघव विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।’

‘इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्य हृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।’

‘महाबाहो तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे।’ यह कहकर अगस्त्य जी जैसे आये थे, उसी प्रकार चले गये।

उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।

उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की ओर देखा और निशाचराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा ‘रघुनन्दन अब जल्दी करो’।

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