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यंत्रों के चमत्कारिक लाभ

मनुष्य को ईश्वर से जोड़ने की अनेक विधाएं हैं, इन्ही में यंत्र विधा भी एक है। ईश्वर की कृपा प्राप्ति के जिन अनेक मार्गों के बारे में हमारे पवित्र ग्रंथों में बताया गया है, उनमें यंत्र प्रयोग भी एक विशेष मार्ग है। हिन्दू धर्म पूरे संसार भर में सर्वाधिक व्यापक और सर्वोच्च धार्मिक प्रवृति का माना जाता है। हम इतने अधिक धार्मिक प्रवृति के हैं कि अपने चारों ओर आराध्य देवों को विभिन्न रूपों में देखते हैं। पवित्र प्रतिमाओं को देव-देवी का स्वरुप मानकर पूजते हैं, बड़े बड़े पर्वतों को भी विशेष देव या देवी का स्वरुप मानकर श्रद्धा से भर उठते हैं, नदियों को देवियों के रूप में पूजते हैं। ऐसी विलक्षण स्थिति अन्य किसी देश अथवा धर्म में देखने को नहीं मिलती है। यंत्रों को भी हम साक्षात् देव विग्रह समझकर श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास से पूजते हैं। यह हमारी आस्था एवं विश्वास का ही चमत्कार है कि जिसे हम देव समझकर पूजने लगते हैं, उससे हमें वैसे ही परिणाम प्राप्त होते हैं। यही कारण है कि देवालयों में हमें अलौकिक आभा के दर्शन होते हैं। यंत्र शक्ति से संबंधित विषय इतना अधिक विशाल है कि उसके बारे में गहराई तक जान लेना असंभव दिखाई पड़ता है किन्तु इतना सत्य है कि यंत्र पूजा से यंत्र शक्ति के चमत्कारिक परिणामों की प्राप्ति अवश्य होती है। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही विभिन्न प्रकार के यंत्रों की विधि-विधान से पूजा की जाती रही है। यंत्रों का प्रयोग सदियों पूर्व से होता आया है। यह तब जितने प्रभावी थे, उतने ही अब भी प्रभावी हैं। यंत्रों को साक्षात् ईश्वर का विग्रह माना जाता है। विभिन्न यंत्रों में उनके देवी व देवताओं की शक्ति का भंडार होता है। इसलिए यंत्रों की पूजा-अर्चना साक्षात् ईश्वर की साधना समझी जाती है। यंत्र दो प्रकार के होते हैं- एक वे यंत्र हैं जो प्राचीन काल से हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में बताए गए हैं, इन्हें पारंपरिक यंत्र भी कहा जा सकता है जैसे कि श्री यंत्र, कनकधारा यंत्र आदि। दूसरे प्रकार के यंत्र स्वनिर्मित होते हैं। ऐसे यंत्रों में विभिन्न संख्याओं को लिखा जाता है। प्रत्येक संख्या का एक अधिपति देव होता है। इस प्रकार के यंत्रों में विभिन्न खाने बने होते हैं। जब इन खानों में विभिन्न संख्याओं को लिखा जाता है तो उस खाने में अंक के अधिष्ठाता देव की शक्ति स्थापित हो जाती है। जब पूरा यंत्र लिख लिया जाता है तो वह यंत्र एक शक्ति पुंज बन जाता है। प्राचीन समय में यंत्रों को भोजपत्र पर लिखा जाता था। परंतु आधुनिक काल में यंत्रों को ताम्र पत्ती पर लिखा जाने लगा है। विभिन्न यंत्रों की जानकारी निम्नलिखित है-

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  • श्रीयंत्र, कुबेर यंत्र, कनकधारा यंत्र, धनदा यंत्र- इन यंत्रों का प्रयोग धन प्राप्ति, सुख-समृद्धि एवं वैभव प्राप्त हेतु किया जाता है।
  • श्री गणेश सिद्धि यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग कामनाओं की पूर्ति, विघ्न बाधाओं से मुक्ति तथा सुख समृद्धि हेतु किया जाता है।
  • श्री नव दुर्गा यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग आर्थिक समृद्धि, विवाह बाधा, शत्रु बाधा, संतान बाधा तथा रोगमुक्ति के लिए किया जाता है।
  • श्री शिव यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग दाम्पत्य सुख, शीघ्र विवाह, आरोग्य लाभ तथा आर्थिक संकटों से मुक्ति हेतु किया जाता है।
  • श्री संतान गोपाल यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है।
  • व्यापार वृद्धि यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग व्यापार वृद्धि, व्यापार बाधा मुक्ति तथा आर्थिक समृद्धि के लिए किया जाता है।
  • श्री सुदर्शन वास्तुदोष निवारक मंत्र- इस यंत्र का प्रयोग वास्तुदोष के निवारण एवं भवन प्राप्ति हेतु किया जाता है।
  • श्री महामृत्युंजय यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग रोग मुक्ति, विशेष कार्य सिद्धि तथा अकाल मृत्यु से सुरक्षा हेतु किया जाता है।
  • कालसर्प योग यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग कालसर्प योग, पितृ दोष तथा राहु-केतु के कष्टों से मुक्ति हेतु किया जाता है।
  • श्री हनुमंत यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग ऊपरी बाधा, शत्रु निवारण, बल-आरोग्य व आत्मबल की प्राप्ति हेतु किया जाता है।
  • श्री बगलामुखी यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग शत्रु बाधा, पारिवारिक क्लेश, रोग, कोर्ट-केस आदि से मुक्ति के लिए किया जाता है।
  • श्री सिद्ध बीसा यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग समस्त कार्यों की सिद्धि हेतु किया जाता है।
  • वाहन दुर्घटनानाशक यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग वाहन रक्षा, शारीरिक सुरक्षा तथा वाहन दुर्घटना से बचने हेतु किया जाता है।
  • श्री नवग्रह यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग नवग्रहों के कष्टों से मुक्ति एवं नवग्रह कृपा प्राप्ति हेतु किया जाता है।
  • श्री सरस्वती यंत्र- इस यंत्र का प्रयोग विद्या प्राप्ति, सुख-समृद्धि एवं रोजगार की प्राप्ति हेतु किया जाता है।
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