भारतीय ज्योतिष शास्त्र में विवाह एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय माना गया है। विवाह से जुड़ी कई तरह की संभावनाएं और योग कुंडली में देखे जाते हैं, जिनमें से एक है ष्प्रेम विवाह योगष्। आज के युग में जहां प्रेम विवाह की संख्या बढ़ रही है, वहां यह जानना अत्यंत आवश्यक हो गया है कि किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रेम विवाह के योग हैं या नहीं। आइए विस्तार से समझते हैं कि प्रेम विवाह योग क्या होता है, इसके ज्योतिषीय संकेत कौन से हैं, और कौन-कौन से ग्रह इसे प्रभावित करते हैं।
प्रेम विवाह योग क्या है?
जब दो व्यक्ति एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और सामाजिक रीति-रिवाजों के अंतर्गत विवाह करते हैं, तो उसे प्रेम विवाह कहा जाता है। कुंडली में जब ग्रहों का ऐसा विशेष संयोग बनता है कि जातक अपने जीवनसाथी को स्वयं चुनता है और पारंपरिक व्यवस्था के बजाय प्रेम के आधार पर विवाह करता है, तो इसे प्रेम विवाह योग कहते हैं।
1. पंचम भाव की भूमिका
पंचम भाव प्रेम और रोमांस का भाव होता है। अगर यह भाव मजबूत हो और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो जातक के जीवन में प्रेम संबंध बनने की संभावना रहती है। यदि पंचम भाव पर शुक्र, चंद्रमा, बुध या गुरु की दृष्टि हो, तो यह प्रेम के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है। पंचम भाव का स्वामी सप्तम भाव (विवाह का भाव) से संबंध बनाए तो प्रेम विवाह की संभावना प्रबल हो जाती है।
2. सप्तम भाव और उसका स्वामी
सप्तम भाव विवाह का घर होता है। अगर सप्तम भाव का स्वामी पंचम, एकादश या नवम भाव में स्थित हो या इन भावों के स्वामी से संबंध बनाता हो, तो जातक अपने जीवनसाथी का चुनाव स्वयं करता है। सप्तम भाव में शुक्र की उपस्थिति या इसकी दृष्टि प्रेम विवाह को और भी बल देती है।
3. शुक्र की स्थिति
शुक्र प्रेम, आकर्षण, विवाह और भोग-विलास का कारक ग्रह है। शुक्र यदि उच्च का हो, पंचम या सप्तम भाव में हो या इनसे संबंध बनाता हो, तो यह प्रेम विवाह का योग देता है। कुंभ, तुला या मीन राशि में स्थित शुक्र जातक को स्वतंत्र सोच और प्रेम विवाह की ओर झुकाव देता है।
4. चंद्रमा और बुध का योगदान
चंद्रमा भावनाओं का कारक है और बुध संवाद का ग्रह है। इन दोनों ग्रहों की सहभागिता या युति व्यक्ति को प्रेम संबंधों में अधिक सक्रिय बनाती है। विशेषकर यदि पंचम या सप्तम भाव में इनकी युति हो, तो प्रेम विवाह की संभावनाएं और अधिक प्रबल होती हैं।
5. ग्रहों का आपसी दृष्टि संबंध
यदि पंचम भाव का स्वामी सप्तम भाव के स्वामी के साथ युति करे या दृष्टि संपर्क में हो, तो यह प्रेम विवाह का विशेष योग बनाता है। साथ ही, यदि नवांश कुंडली में भी ऐसा संबंध दोहराया जाए, तो प्रेम विवाह की पुष्टि मानी जाती है। कुछ विशेष योग जो प्रेम विवाह का संकेत देते हैं। शुक्र और मंगल की युति या दृष्टि संबंध, यदि यह पंचम, सप्तम या नवम भाव में हो तो यह अत्यधिक प्रेम और आकर्षण का संकेत देता है। पंचमेश और सप्तमेश का आपसी संबंधरू युति, दृष्टि या परस्पर भाव विनिमय हो तो जातक प्रेम विवाह करता है। चंद्रमा का संबंध बुध या शुक्र सेरू विशेष रूप से जब यह संबंध पंचम या सप्तम भाव में हो, तो जातक प्रेमी स्वभाव का होता है। राहु का प्रभाव, यदि राहु पंचम भाव या शुक्र के साथ युति करे तो जातक सामाजिक परंपराओं को तोड़कर विवाह कर सकता है।
हालांकि कुंडली में प्रेम विवाह के योग हों, फिर भी कई बार कुछ ग्रहों की अशुभ दृष्टि या स्थिति बाधाएं उत्पन्न कर सकती है।
शनि की पंचम या सप्तम भाव पर दृष्टि प्रेम संबंधों में देरी या विघ्न ला सकती है।
मंगल दोष (मांगलिक दोष) यदि बिना उपाय के हो, तो विवाह में अड़चन आती है।
राहु या केतु की अत्यधिक उपस्थिति भ्रम और गलत निर्णय की स्थिति पैदा कर सकती है।
प्रेम विवाह योग को कैसे मजबूत करें?
यदि जातक की कुंडली में प्रेम विवाह के हल्के संकेत हों या बाधाएं हों, तो कुछ उपाय अपनाकर योग को मजबूत किया जा सकता है।
शुक्र और पंचम भाव को मजबूत करने के लिए शुक्रवार का व्रत करें।
‘कात्यायनी मंत्र’ या ‘गौरी व्रत’ का पालन लड़कियों के लिए शुभ होता है।
शिव-पार्वती की पूजा विशेष रूप से सोमवार को करने से विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं।
शुभ मुहूर्त में रुद्राभिषेक कराना भी फायदेमंद होता है।
प्रेम विवाह आज के समय में एक सामान्य बात होती जा रही है, लेकिन इसके पीछे कुंडली में बने योगों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रेम विवाह के प्रबल योग हैं, तो वह अपने जीवनसाथी को स्वयं चुनने में सक्षम होता है। ऐसे योगों की पहचान एक अनुभवी ज्योतिषाचार्य द्वारा की जानी चाहिए ताकि सही मार्गदर्शन मिल सके।
यदि आप जानना चाहते हैं कि आपकी कुंडली में प्रेम विवाह के योग हैं या नहीं, तो अपनी जन्मकुंडली का विश्लेषण किसी विशेषज्ञ से अवश्य कराएं। इससे न केवल आपको स्पष्टता मिलेगी बल्कि अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों को भी सही दिशा मिल सकेगी।