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श्री जगन्नाथ जी की आरती और पूजन विधि, भक्ति से भरने वाला अनुभव

भगवान श्री जगन्नाथ जी को भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण का संयुक्त स्वरूप माना जाता है। पुरी (ओडिशा) स्थित जगन्नाथ धाम भारत के चार धामों में से एक है और हर वर्ष वहां होने वाली रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है।

श्री जगन्नाथ की पूजा श्रद्धा, प्रेम और समर्पण से की जाती है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे हृदय से की गई आरती और पूजन से भक्त को जीवन के सभी दुखों से मुक्ति मिलती है और भगवत कृपा सदैव बनी रहती है।

 

जगन्नाथ पूजन का महत्व

भगवान जगन्नाथ का अर्थ ही होता है – “संपूर्ण जगत के नाथ”

इनकी पूजा से विष्णु, श्रीकृष्ण और बलराम – तीनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

यह पूजा विशेष रूप से पाप नाशक, कर्म सुधारक और भाग्य चमकाने वाली मानी जाती है।

श्रीजगन्नाथ जी की आराधना से भक्ति, समर्पण और जीवन में संतुलन आता है।

 

जगन्नाथ पूजन विधि व सामग्री 

भगवान श्री जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमा या चित्र

फूल, तुलसी दल, धूप, दीपक, चंदन

भोग (खीर, फल, मिश्री, या चप्पन भोग)

गंगाजल, अक्षत (चावल), कपूर, नारियल

 

पूजा की विधि

स्नान और शुद्धता – प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, पूजा स्थान को साफ करें।

दीप प्रज्ज्वलन – घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं।

आवाहन – ओम श्री जगन्नाथाय नमः” मंत्र से भगवान का ध्यान करें।

अर्चना – पुष्प, अक्षत, चंदन और तुलसी अर्पित करें।

भोग अर्पण – अपनी क्षमता अनुसार भोग लगाएं कृ विशेषतः खीर या फल।

टारती – कपूर जलाकर आरती करें (नीचे दी गई आरती का पाठ करें)।

प्रार्थना और क्षमा याचना – अंत में भगवान से आशीर्वाद और क्षमा मांगें।

 

श्री जगन्नाथ जी की आरती

जय जगन्नाथ स्वामी, नयन पथगामी भव!

बलभद्र साथे सुभद्रा, मधुर मूरत भव॥

रत्न सिंहासन विराजे, चरणों में कमल अर्पित॥

गगन मुरली मधुर बाजे, मनमोहक मुख हर्षित॥

भक्तों की पीड़ा हरते, करुणा के तुम सागर॥

ममता से भरपूर हृदय, भव से तारो नर॥

शंख चक्र गदा पद्मधारी, पीताम्बर तन साज॥

प्रेम से जो भजें तुम्हें, हरते उनके काज॥

जय जगन्नाथ स्वामी, नयन पथगामी भव॥

आरती करते समय घंटी बजाएं, दीपक घुमाएं और “जय जगन्नाथ” का सस्वर जाप करें।

 

विशेष अवसर पर पूजन फल

भगवान जगन्नाथ जी की आरती और पूजन न केवल धार्मिक कर्म है, बल्कि आत्मा की गहराइयों को छूने वाला अनुभव है। जब भक्त श्रद्धा से “जय जगन्नाथ” कहता है, तब प्रभु स्वयं उसके जीवन का रथ खींचने लगते हैं।

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