छठे भाव का परिचय– छठा भाव एक अशुभ स्थान माना जाता है| तीन सर्वाधिक अशुभ स्थानों, अर्थात षष्ठ, अष्टम व द्वादश स्थान में षष्ठ भाव द्वितीय स्तर पर आता है| अष्टम स्थान सर्वाधिक अशुभ है, इसके पश्चात षष्ठ तथा अंत में द्वादश स्थान अशुभ होता है| इसलिए छठे भाव को दुष्ट स्थान अर्थात अशुभ स्थान कहते हैं| जिन रोगों से जातक अपने जीवन में पीड़ित होगा उनका फलादेश षष्ठ भाव से किया जा सकता है| रोगसूचक होने से छठे भाव को रोग भाव या रोग स्थान भी कहा जाता है| इस भाव से ऋण का विचार भी किया जाता है| वे ऋण जिनसे मनुष्य अपने जीवनकाल में ग्रस्त हो सकता है, छठे भाव से ज्ञात हो सकते हैं| अतः इसे ऋण भाव कहा जाता है| षष्ठ स्थान व्यक्ति के संभावित शत्रुओं का भी सूचक है, इसलिए इसे शत्रु स्थान भी कहते हैं| शत्रु या रोग हमें हानि पहुंचाते हैं| इस दृष्टि से यह भाव अपनों का का प्रतिनिधित्व न करके परायों का प्रतिनिधित्व करता है|
इस भाव से मुख्यता शत्रु, रोग, चोट, कष्ट, ऋण, चोरी, संघर्ष, हिंसा, बदनामी, परिश्रम, विवाद-मुकदमेंबाजी, शोक, आंतें, नाभि प्रदेश, आदि का विचार किया जाता है| माता के भाव चतुर्थ से तृतीय होने के कारण माता के छोटे भाई-बहन अर्थात मामा, मौसी व ननिहाल का विचार इसी भाव से किया जाता है| इसी प्रकार पंचम भाव से द्वितीय(धन) होने के कारण संतान के धन का विचार भी इसी भाव से होता है| सप्तम(जीवनसाथी) से द्वादश भाव होने के कारण यह भाव जीवनसाथी के अनिष्ट को भी दर्शाता है| छठे भाव को त्रिषडाय(3,6,11) भावों में से एक माना जाता है| इस भाव का स्वामी अशुभ माना जाता है तथा जिस अन्य भाव में बैठता है उसकी हानि करता है| यह एक उपचय भाव भी है| इससे व्यक्ति की नौकरी का विचार भी किया जाता है| इस भाव के कारक ग्रह मंगल तथा शनि हैं|
छठे भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-
चोट- छठे भाव से चोट, घाव आदि का विचार किया जाता है जो रोग अथवा कष्ट का ही रूप है| छठे तथा एकादश भाव के स्वामी का काम चोट अथवा क्षति पहुँचाना है| ग्रहों में मंगल व केतु चोट पहुँचाने वाले हिंसात्मक ग्रह हैं| जब भी छठे भाव का स्वामी, मंगल तथा केतु किसी भाव अथवा भावेश को पीड़ित करते हैं तो उस भाव से संबंधित अंग में चोट लगने का खतरा रहता है| जैसे यदि यह घटक लग्न तथा लग्नेश को पीड़ित करें तो व्यक्ति के सिर पर चोट लगने की आशंका होती है|
रोग- छठा भाव रोग को भी सूचित करता है| शनि तथा राहु रोग कारक ग्रह माने गए हैं| यदि किसी कुंडली में छठे भाव का स्वामी, शनि, राहु का सामूहिक प्रभाव किसी भाव विशेष पर पड़ता हो तो मनुष्य को उस भाव से प्रदर्शित होने वाले अंग में रोग होता है|
ऋण- कर्ज अथवा ऋण का विचार भी इसी भाव से किया जाता है| जब लग्न, द्वितीय तथा द्वादश भाव पाप प्रभाव में हों और छठे भाव के स्वामी का संबंध द्वितीय भाव तथा उसके स्वामी से हो तो व्यक्ति की आय कम और खर्चा ज्यादा होता है जिसके चलते वह ऋण लेता है|
विपरीत राजयोग- राजयोग दो प्रकार का होता है- सामान्य राजयोग तथा विपरीत राजयोग| सामान्य राजयोग तब बनता है जब शुभ भावों के स्वामियों का परस्पर संबंध होता है और संबंध बनाने वाले ग्रह बलवान होते हैं| परंतु विपरीत राजयोग तब बनता है जब अशुभ भावों के स्वामियों का परस्पर संबंध होता है| विपरीत राजयोग का फल धन की दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है| छठा भाव के अतिरिक्त अष्टम तथा द्वादश भाव अशुभ भाव हैं इसलिए जब भी छठे भाव का स्वामी अष्टम या द्वादश भाव में जाकर बैठता है और केवल पाप प्रभाव में होता है तो वह विपरीत राजयोग कहलाता है| इसके पीछे तर्क यह है कि जब दो नकारात्मक चीजें मिलती हैं तो वह सकारात्मक परिणाम देने लगती हैं| जैसे गणित के अनुसार जब दो नकारात्मक चीजें मिलती हैं तो सकारात्मक हो जाती हैं| ठीक वैसे ही जब एक अशुभ भाव का स्वामी दूसरे अशुभ भाव में जाकर बैठता है तो उसकी अशुभता नष्ट हो जाती है तथा वह सकारात्मक परिणाम देने लगता है|
मामा-मौसी- छठा भाव चतुर्थ भाव(माता) से तृतीय(छोटे भाई-बहन) होने के कारण मामा तथा मौसी का प्रतिनिधित्व करता है| अतः इस भाव से हमें माता के भाई-बहन तथा उनके परिवार की जानकारी भी प्राप्त होती है|
विरोध अथवा शत्रुता- छठे भाव से विरोधी या शत्रु का विचार भी किया जाता है| जब इस भाव में किसी दूसरे भाव का स्वामी आकर बैठता है तो उस भाव स्वामी से प्रदर्शित व्यक्ति से मनुष्य का विरोध अथवा शत्रुता होती है| उदहारण के लिए यदि नवम भाव का स्वामी छठे भाव में आकर बैठता है तो मनुष्य का अपने पिता से विरोध या शत्रुता होगी|
चोरी- छठे भाव एक चोर्य स्थान अर्थात चोरी से सम्बंधित भाव है| मंगल ग्रह चोरी का कारक है| छठा भाव पीड़ा का है और चोरी भी मनुष्य को पीड़ा पहुँचाती है| यदि मंगल छठे भाव का स्वामी होकर द्वीतीय भाव(धन) व द्वितीयेश से संबंध बनाएं तो मनुष्य का धन चोरी होने की संभावना बढ़ जाती है|
नाभि प्रदेश- छठा भाव काल पुरुष का नाभि प्रदेश माना गया है अतः यह भाव आंत(intestine), गुर्दे(kidney) आदि का प्रतिनिधित्व करता है| यदि छठे भाव तथा इसके स्वामी पर पाप प्रभाव हो तो मनुष्य को आंत(intestine) तथा गुर्दे (kidney) से संबंधित रोग होते हैं|
न्यायालय- छठे भाव का संबंध कोर्ट-कचहरी, विवाद तथा मुकदमेंबाजी से है अतः किसी भी प्रकार की अदालती कारवाई, कोर्ट केस, न्यायिक मामलों का विचार छठे भाव से किया जाता है| यही कारण है कि शनि जोकि न्यायधीश है इस भाव का कारक ग्रह माना गया है|
जीवनसाथी का अरिष्ट या उससे अलगाव- छठा भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से द्वादश भाव(हानि) है अर्थात यह जीवनसाथी को शारीरिक कष्ट तथा उससे अलगाव अर्थात तलाक़ का सूचक भी है| जब भी सप्तम भाव का स्वामी तथा विवाह कारक ग्रह शुक्र अथवा गुरु का संबंध छठे भाव से बनता है तो व्यक्ति का अपने जीवनसाथी से अलगाव या तलाक हो सकता है| छठे भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में जीवनसाथी को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं|
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