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उत्तराषाढ़ा नक्षत्र

उत्तराषाढ़ा (26°40′ धनु राशि से 10°00′ मकर राशि तक)

ज्योतिष में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र धनु व मकर राशि के अंतर्गत आता है| रात्रि को आकाश में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र सिग्मा, ताऊ, फी व जीटा सगीट्टारी तारों के रूप में दिखाई देता है| उत्तराषाढ़ा नक्षत्र मानवता के लिए गहन ईमानदारी व लगाव रखता है| इस नक्षत्र के अधिपति दस विश्वदेवा हैं जो धर्म के देवता माने जाते हैं। इस प्रकार इस नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति में जीवन के प्रति महान आकांक्षाएं व एक आशावादी दृष्टिकोण हो सकता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र नेतृत्व, उपलब्धि व कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता का समर्थन करता है। उन्हें स्वयं पर अतिरिक्त दबाव डालने या निरंतर उत्तेजना से ग्रस्त होने से बचना चाहिए। यह नक्षत्र परंपरा के प्रति महान सम्मान व नए उद्यमों की शुरुआत करने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण रखता है।

सामान्य विशेषताएँ: आध्यात्मिक रहस्यों को जानने की प्यास, किसी भी कार्य में संपूर्ण रूप से भाग लेकर कुछ ज्ञानवर्धक पहलुओं की ख़ोज करने वाला, आज्ञाकारी, सदाचार के नियमों का पालन करने वाला, आभारी, अनेक मित्रों वाला, उपकार चुकाने वाला, सबका पसंदीदा
अनुवाद: अजेय, अपराजित, अंतिम विजय
प्रतीक: हाथी दांत, एक पलंग का फट्टा
पशु प्रतीक: एक नर नेवला
अधिपति देव: दस विश्वदेवा, धर्म के देवता
शासक ग्रह: सूर्य
सूर्य ग्रह के अधिपति देव: शिव
प्रकृति: मनुष्य (मानव)
ढंग: संतुलित
संख्या: 21 (यह संख्या सहस्त्रार चक्र व सार्वभौमिक परिप्रेक्ष्य से संबंधित है|)
लिंग: स्त्री
दोष: कफ
गुण: सात्विक
तत्व: वायु
प्रकृति: स्थिर (ध्रुव)
पक्षी: सारस
सामान्य नाम: कटहल
वानस्पतिक नाम: आर्टोकार्पस इन्टेग्रिफोलिया
बीज ध्वनि: भे, जो, जा, जी
ग्रह से संबंध: धनु राशि के स्वामी के रूप में गुरु इस नक्षत्र से संबंधित है जो विस्तार देता है| मकर राशि के स्वामी के रूप में शनि इस नक्षत्र से संबंधित है जो व्यावहारिकता देता है|

uttarashadha-nakshatra

प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में विभाजित किया जाता है जिन्हें पद कहते हैं| उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के विभिन्न पदों में जन्म लेने वाले लोगों के अधिक विशिष्ट लक्षण होते हैं:

पद:

प्रथम पद धनु राशि का 26°40′ – 30°00′ भाग गुरु ग्रह द्वारा शासित
ध्वनि: भे
सूचक शब्द: विस्तार
द्वितीय पद मकर राशि का 00°00′ – 03°20′ भाग शनि ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: जो घ
सूचक शब्द: अभिव्यक्ति
तृतीय पद मकर राशि का 03°20′ – 06°40′ भाग शनि ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: जा
सूचक शब्द: सहयोग
चतुर्थ पद मकर राशि का 06°40′ – 10°00′ भाग गुरु ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: जी
सूचक शब्द: संतुलन

शक्ति: धार्मिक, बुद्धिमान, मज़ेदार, नेतृत्व के गुणों से भरपूर, उत्तम राजनेता, सबका पसंदीदा, मित्रों के प्रति समर्पित- दूसरों के साथ संबंध रखने वाला, आभारी, उच्च लक्ष्यों सहित आदर्शवादी, दयालु, मृदु, कुछ विशिष्ट ज्ञान रखता है जो उन्हें दूसरों से अलग करता है, कुछ नया सीखने में दिलचस्पी रखता है, ज्ञानार्जन हेतु पढाई का शौक, यात्रा के माध्यम से लाभ प्राप्त करने वाला, सहिष्णु, निष्पक्ष और न्यायप्रिय, सहानुभूति से भरा, साथियों को समर्पित, उत्तम शिष्टाचार से युक्त, नेतृत्व कौशल से भरपूर, दूसरों की सराहना चाहने वाला

कमजोरियाँ: अनेक विवाह या विवाह जैसे संबंध, अत्यधिक चिंतित, जिद्दी, स्वयं में आसक्त, अनेक बार निवास स्थल बदलने वाला, जीवन में विपत्तियों से ग्रसित, लगातार सक्रिय , उदासीन, शुरु किए गए कार्य को समाप्त करने में विफल।

कार्यक्षेत्र: महान जिम्मेदारी और नैतिक प्रकृति से जुड़े कार्य, शोधकर्ता, वैज्ञानिक, सैन्य कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, सरकारी कार्यकर्ता, उपदेशक, पुजारी, परामर्शदाता, ज्योतिषी, वकील, न्यायाधीश, मनोवैज्ञानिक, अश्व-संबंधी व्यवसाय, खोजकर्ता, पहलवान, खिलाड़ी, शिकारी, मुक्केबाज, व्यावसायिक अधिकारी, प्राधिकारी, सुरक्षाकर्मी, वनपाल, निर्माण उद्योग, समग्र चिकित्सक

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्में प्रसिद्ध लोग: अब्राहम लिंकन, रॉबर्ट कैनेडी, जॉर्ज वॉशिंगटन, जॉन लेनन, ब्रैड पिट, बिली हॉलिडे

अनुकूल गतिविधियां: यह किसी भी कार्य की शुरूआत करने के लिए सर्वश्रेष्ठ नक्षत्रों में से एक है, घटनाओं की योजना बनाना, आध्यात्मिक गतिविधियाँ, अनुष्ठान, विवेक का उपयोग करना, व्यवसायिक मामले, अनुबंध पर हस्ताक्षर करना, पदोन्नति, अधिकारियों से व्यवहार करना, कलात्मक कार्य, भवन की नींव रखना, नए घर में जाना, विवाह, राजनीति व कानूनी मामले

प्रतिकूल गतिविधियां: यात्रा, अनैतिक कार्य, आपराधिक गतिविधियाँ, आवेशपूर्ण कार्यकलाप, कठोर व्यवहार, निष्कर्ष

पवित्र मंदिर: कीजहपपूणगुडी श्री मीनाक्षी सामेधा श्री सुंदरेश्वर मंदिर

यह पवित्र मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य में मदुरै के निकट कीजहपपूणगुडी में स्थित है। कीजह का अर्थ “छिपा हुआ नहीं” है जबकि पूणगुडी शब्द एक मंदिर को दर्शाता है जहां पुष्प पूर्व दिशा में उगते हैं। यह पवित्र मंदिर उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की उर्जा से संबंधित है| उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दिवस पर जीव समाधि (अब तक ध्यान) में स्थित सिद्धों के दर्शन करना शुभ होता है। इससे किसी भी व्यक्ति को धन-संपति व संतुलित जीवन की प्राप्ति होगी तथा उसके आध्यात्मिक अभ्यास को बल मिलेगा|

पंगुनी उथिराम (16 दिसंबर से 15 जनवरी के मध्य आने वाला उत्तराषाढ़ा दिवस) पर्व भगवान शिव, भगवान विष्णु, भगवान मुरुगा आदि देवों का उनकी पत्नियों के साथ विवाह होने का प्रसिद्ध दिन है| उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दिवस पर एक और महत्वपूर्ण विवाह संपन्न हुआ था| श्री मीनाक्षी अम्भिगई का विवाह भी चित्तिरई उथिराम (16 जनवरी से 15 फरवरी) पर्व पर संपन्न हुआ था। मीनाक्षी देवी ने मीनाक्षी नामक मनुष्य रूप लेकर महेश्वरन से विवाह किया था| उन्होंने भगवान शिव से अर्धनारीश्वर (शिव और पार्वती का एकल स्वरुप) शक्ति की उर्जा से युक्त नाम आशीर्वाद रूप में प्रदान करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उन्हें श्री मीनाक्षी सुंदरेश्वर यह पवित्र नाम प्रदान किया|

इस मंदिर में भगवान शिव और देवी मीनाक्षी श्री मीनाक्षी सामेधा श्री सुंदरेश्वर के रूप में प्रकट होकर दिव्य अनुग्रह प्रदान करते हैं। कीजहपपूणगुडी में स्थित भगवान शिव का यह पवित्र मंदिर वैवाहिक सुख हेतु शुभ ऊर्जा प्रदान करता है। इस पवित्र स्थल पर विवाह अनुष्ठान संपन्न के लिए उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दिवस सबसे अनुकूल दिन है। स्त्रियाँ नए विवाह सूत्र को बंधवाने हेतु इस मंदिर की यात्रा करती हैं| यह उनके वैवाहिक जीवन की रक्षा करता है और उन्हें दीर्घायु प्रदान करता है| युगल भी अपने विवाह दिवस पर इस मंदिर की यात्रा करते हैं तथा एक-दूसरे को फूलों की माला पहनाते हैं|

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे लोगों को नित्य इस मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए| चित्तिरई माह के दौरान इस मंदिर की यात्रा करना विशेष रूप से लाभप्रद है| अन्य नक्षत्रों में जन्मे लोग भी अपने लंबे और सुखी विवाहित जीवन हेतु उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दिवस पर इस मंदिर के दर्शन करके पूजा-अर्चना द्वारा दिव्य आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं|

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में जन्में लोगों के लिए वेदों द्वारा निर्धारित धूप कटहल नामक जड़ी-बूटी से निर्मित है|

इस धूप को जलाना उस विशिष्ट नक्षत्र हेतु एक लघु यज्ञ अनुष्ठान करने के समान है| एक विशिष्ट जन्मनक्षत्र के निमित किए गए इस लघु अनुष्ठान द्वारा आप अपने ग्रहों की आन्तरिक उर्जा से जुड़कर सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में सक्षम होंगे|

एक विशिष्ट नक्षत्र दिवस पर अन्य नक्षत्र धूपों को जलाने से आप उस दिन के नक्षत्र की ऊर्जा से जुड़कर अनुकूल परिणाम प्राप्त करते हैं| आपको यह सलाह दी जाती है कि आप कम से कम अपने व्यक्तिगत नक्षत्र से जुड़ी धूप को प्रतिदिन जलाएं ताकि आपको उस नक्षत्र से जुड़ी सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती रहे|

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