तृतीय भाव का परिचय– तृतीय भाव प्रथम उपचय स्थान है| यह अपोक्लिम भावों की श्रेणी में भी आता है| उपचय स्थान का अर्थ है वृद्धि या बढोतरी का स्थान| इस भाव से जातक के अनुज सहोदरों के संबंध में ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है| यदि 12 भावों को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष इन चार भागों में बाँटा जाए तो तृतीय भाव काम त्रिकोण में आता है| इसके अतिरिक्त सप्तम तथा एकादश भाव भी काम त्रिकोण के अंतर्गत आते हैं| इस प्रकार तृतीय, सप्तम तथा एकादश यह तीनों भाव मिलकर काम त्रिकोण का निर्माण करते हैं|
तृतीय भाव पराक्रम, बाहुबल एवं छोटे भाई-बहनों का प्रतिनिधित्व करता है| इस भाव के अन्य नाम सहज, पराक्रम, सहोदर हैं| तृतीय भाव से व्यक्ति के पराक्रम, बाहुबल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, मित्रता, निजत्व, धैर्य, शौर्य, लेखन, छोटी यात्राएं, दांया कान, दायीं भुजा, परिश्रम आदि का विचार किया जाता है| अष्टम से अष्टम होने के कारण तृतीय भाव व्यक्ति की आयु तथा चौथे भाव से द्वादश भाव होने से माता की मृत्यु का विचार भी तृतीय भाव से किया जाता है| अष्टम भाव से अष्टम होने के कारण तृतीय भाव के स्वामी को भावेश के रूप में अशुभ माना जाता है| इस भाव का कारक ग्रह मंगल है
तृतीय भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-
निजत्व– मनुष्य अपने विचारों तथा भावनाओं को क्रियात्मक रूप देने के लिए बहुधा अपनी भुजाओं का प्रयोग करता है| तृतीय भाव मनुष्य की भुजाओं से जुड़ा है इसलिए तृतीय भाव का निज(Self) से निकट संबंध है| लग्नेश भी स्वयं का प्रतिनिधित्व करता है| इसलिए लग्नेश और तृतीयेश जन्मकुंडली में जिस भाव व भावेश पर अपना प्रभाव डाल रहे हों व्यक्ति उस भाव से संबंधित कार्यों को स्वयं की इच्छा से करने के लिए प्रेरित होगा|
मित्रता– तृतीय भाव तथा उसका स्वामी मित्र व मित्रता का प्रतीक भी होता है| तृतीयेश का संबंध जैसे भाव व ग्रहों से होगा, मनुष्य के मित्र भी उसी कोटि के होंगे| उदहारण के रूप में यदि तृतीय भाव व तृतीयेश का संबंध नवम भाव, नवमेश व गुरु से हो तो मनुष्य साधु संतों की संगति में अधिक रहेगा|
लेखन कला– तृतीय भाव मनुष्य का हाथ है इसलिए इसका संबंध लेखन क्षेत्र से भी जुड़ा हुआ है| यदि तृतीय भाव व इसके स्वामी का लग्न, लग्नेश, दशम भाव, दशमेश, सूर्य, चंद्र व द्वितीयेश से किसी भी प्रकार का संबंध हो तो व्यक्ति लेखन कला के द्वारा धनार्जन करता है तथा एक सफल लेखक होता है|
अनुसंधान(गहन ख़ोज)– अष्टम भाव गहन ख़ोज व अनुसंधान से संबंधित भाव है| तृतीय भाव अष्टम भाव से अष्टम है इसलिए तृतीय भाव भी गहन ख़ोज व अनुसंधान से जुड़ा भाव हुआ| पंचम भाव बुद्धि व बुद्धिमता का भाव है| तृतीयेश और अष्टमेश जब भी पंचम भाव व पंचमेश से संबंध बनाते हैं तो मनुष्य महान अनुसंधानकर्ता व गहन विचारक होता है| वह अपनी ख़ोज तथा अनुसंधान से ख्याति व प्रसिद्धि प्राप्त करता है|
पराक्रम– तृतीय भाव साहस व पराक्रम का प्रतीक भी है इसलिए जब भी तृतीय भाव व मंगल बली हो तो मनुष्य विशेष पराक्रमी, निडर व साहसी होता है| तृतीय भाव में पाप ग्रह शुभ माने जाते हैं क्योंकि यह व्यक्ति को अच्छी संघर्ष क्षमता प्रदान करते हैं| तृतीय भाव में विशेषतः केतु बहुत ही शुभफलदायक होता है क्योंकि ज्योतिष में यह झंडे(ध्वज) का प्रतीक है| इसलिए मनुष्य को उच्च कोटि का साहस व निडरता प्रदान करता है|
छोटे भाई-बहन– तृतीय भाव से किसी भी व्यक्ति के छोटे भाई-बहन का विचार किया जाता है| मंगल इस भाव का कारक ग्रह है इसलिए जब भी तृतीय भाव, तृतीयेश व मंगल पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति के छोटे भाई-बहन जीवन में तरक्की करते हैं और उनसे व्यक्ति के संबंध अच्छे होते हैं| इसके विपरीत यदि इन घटकों पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति के छोटे भाई-बहनों को जीवन में कष्ट होता है और व्यक्ति के संबंध भी उनसे मधुर नही रहते| इस भाव से मनुष्य के छोटे भाई-बहनों की संख्या का विचार भी किया जाता है|
शारीरिक सामर्थ्य– तृतीय भाव दर्शाता है कि कोई भी व्यक्ति शारीरिक रूप से कितना समर्थ है तथा वह कितना शारीरिक तनाव सहन कर सकता है|
छोटी यात्राएं– नवम भाव के अतिरिक्त तृतीय भाव का संबंध भी यात्राओं से है| फर्क इतना है कि नवम भाव से लंबी दूरी की यात्राओं का विचार किया जाता है जबकि तृतीय भाव से छोटी-छोटी यात्राओं को देखा जाता है|
मातृ आरिष्ट– तृतीय भाव चतुर्थ भाव से द्वादश स्थान(हानि स्थान) है इसलिए इस भाव से माता को होने वाले कष्ट का विचार भी किया जाता है| इस भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में व्यक्ति की माता को शारीरिक कष्ट हो सकता है|
आयु– तृतीय भाव अष्टम भाव से अष्टम होने के कारण मनुष्य की आयु से भी संबंधित है| इसलिए किसी भी व्यक्ति की आयु का आकलन करते समय लग्न, लग्नेश, अष्टम भाव, अष्टमेश के साथ-साथ तृतीय भाव व तृतीयेश का विचार करना भी अत्यंत आवश्यक है| जब किसी भी कुडंली में यह घटक बली होते हैं तो मनुष्य दीर्घायु होता है|
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