श्री दुर्गा सप्तशती के तेरहवें अध्याय को ‘क्षमा-स्तुति’ के रूप में जाना जाता है। यह अध्याय भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें देवी की महिमा, कृपा और उनकी अपार शक्ति का वर्णन किया गया है।
इस अध्याय में राजा सुरथ और वैश्य, जो अपने दुखों से व्यथित होकर देवी की शरण में गए थे, वे महर्षि मेधा के उपदेश से प्रेरित होकर भगवती दुर्गा की घोर तपस्या करते हैं। उनकी कठोर साधना से प्रसन्न होकर माँ भगवती प्रकट होती हैं और उन्हें वरदान देती हैं।
अध्याय का महत्व
भक्ति और तपस्या का प्रभाव – यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि यदि कोई सच्चे हृदय से देवी की उपासना करता है तो माँ अवश्य ही उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं।
देवी की असीम कृपा – इस अध्याय में देवी को प्रसन्न करने के लिए स्तुति की जाती है, जिससे भक्तों को आशीर्वाद मिलता है।
दुखों से मुक्ति – तेरहवें अध्याय का पाठ करने से सभी प्रकार के दुखों, शोक और क्लेशों से मुक्ति मिलती है।
सर्वत्र विजय – राजा सुरथ की भांति जो भी भक्त इस पाठ को श्रद्धा से करता है, उसे अपने जीवन में सफलता और विजय प्राप्त होती है।
चंडी पाठ में तेरहवें अध्याय का स्थान
श्री दुर्गा सप्तशती में कुल 700 श्लोक हैं, जिन्हें तीन चरित्रों में विभाजित किया गया है। तेरहवाँ अध्याय उत्तर चरित्र का अंतिम अध्याय है। इसे करने से देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं।
पाठ विधि
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
माँ दुर्गा का ध्यान करें और दीप जलाएँ।
तेरहवें अध्याय का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें।
पाठ के बाद देवी को नैवेद्य अर्पित करें और आरती करें।
अंत में देवी से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करें।
तेरहवाँ अध्याय भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी है। यह हमें सिखाता है कि माँ दुर्गा की सच्चे मन से उपासना करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। अतः जो भी व्यक्ति अपने जीवन में कष्टों से मुक्ति चाहता है, उसे इस अध्याय का नियमित पाठ करना चाहिए।