स्वाति (पुजारी, तलवार) (तुला राशि में 6°40 से 20°20′ तक)
रात्रि के आकाश में स्वाति नक्षत्र अर्क्टरस (अल्फा-बूटिस) नामक एक एकल तारे द्वारा प्रदर्शित होता है| यह बूटिस तारा समूह के अंतर्गत मुख्य तारा है| ज्योतिष शास्त्र में स्वाति नक्षत्र संपूर्ण रूप से तुला राशि में आता है| स्वाति का अर्थ “स्वतंत्र ” है। इस नक्षत्र का प्रतीक हवा में लहरता एक छोटा पौधा है जो लचीलेपन, चपलता व बेचैनी को दर्शाता है| इस नक्षत्र के अधिपति हवा के देवता वायु हैं जो इस नक्षत्र में जन्में लोगों को एक मजबूत व सौम्य प्रकृति प्रदान करते हैं। राहु इस नक्षत्र का स्वामी है जो गुप्त संभावनाओं को दर्शाता है| स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न लोग विनम्र होते हैं तथा महानता प्राप्ति हेतु उन्हें अपनी क्षमता के बारे में प्रायः सूचित करने की ज़रूरत होती है| वे नई जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं परंतु उन्हें दुविधा व टालमटोल से बचना चाहिए| स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न लोग कूटनीतिज्ञ होते हैं तथा संसार का संचालन करने के लिए वे अपनी आकर्षण शक्ति का उपयोग करते हैं। ऐसे लोगों का सामाजिक शिष्टाचार में दृढ विश्वास होता है तथा वे समाज के साथ तालमेल बनाने का प्रयास करते हैं| स्वाति नक्षत्र जीवन के उत्तरकाल में सफलता प्रदान कर सकता है| स्वाति नक्षत्र का सार संतुलन है तथा इस नक्षत्र में पैदा लोग किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए समय लगाते हैं|
सामान्य विशेषताएँ: दयालु, मधुर वाणी, मृदु भाषी, सकारात्मक परिणामों की आशा करने वाला, धर्मार्थ, कृपालु, स्वतंत्र, इच्छाओं को नियंत्रित करने वाला।
अनुवाद: “स्वतंत्र”
प्रतीक: हवा में लहरता एक छोटा पौधा, तलवार, मूंगा
पशु प्रतीक: भैंसा
अधिपति देव: हवा के देवता वायु
शासक ग्रह: राहु
राहु ग्रह के अधिपति देव: दुर्गा
प्रकृति: देव (देव तुल्य)
ढंग: दब्बू
संख्या: 15
लिंग: स्त्री
दोष: कफ
गुण: तामसिक
तत्व: अग्नि
प्रकृति: चर
पक्षी: मधुमक्खी
सामान्य नाम: जरुल
वानस्पतिक नाम: लैग्रास्ट्रोमिया स्पिशियोसा
बीज ध्वनि: रू, रे, रो, ता
ग्रह से संबंध: तुला राशि के स्वामी के रूप में शुक्र इस नक्षत्र से संबंधित है|
प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में विभाजित किया जाता है जिन्हें पद कहते हैं| स्वाति नक्षत्र के विभिन्न पदों में जन्म लेने वाले लोगों के अधिक विशिष्ट लक्षण होते हैं:

पद:
| प्रथम पद | तुला राशि का 6°40′ – 10°00′ भाग गुरु ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: रू सूचक शब्द: उदार-चित्त |
द्वितीय पद | तुला राशि का 10°00′ – 13°20′ भाग शनि ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: रे सूचक शब्द: स्थिरता |
तृतीय पद | तुला राशि का 13°20′ – 16°40′ भाग शनि ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: रो सूचक शब्द: सीखना |
चचतुर्थ पद | तुला राशि का 16°40′ to 20°00′ भाग गुरु ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: री सूचक शब्द: अनुकूलन क्षमता |
शक्ति: कोमल, नैतिक, व्यापार में अच्छा; व्यापार और वाणिज्य में चतुर, सत्य की खोज करने वाला, अध्ययनशील, नम्र, सच्चा, मानवीय, दूसरों की परवाह करने वाला, सटीक, मैत्रीपूर्ण, सकारात्मक दृष्टिकोण, अनुशासित, सद्भाव खोजने वाला, उदार, आध्यात्मिक संगठनों या मानवतावादी कार्यों के प्रति सक्रिय, धार्मिक या अच्छे लोगों की संगति में रहने वाला, वैज्ञानिक या दार्शनिक विचारों में रूचि, स्वतंत्र, यात्रा करने वाला, प्रभावशाली वाणी
कमजोरियाँ: अपनी सीमाओं को न जानने के कारण धन, पद व सम्मान की हानि, अतिव्ययी प्रकृति होने के कारण कर्जदार, संरक्षक लक्ष्यों के कारण असंतुष्ट, बेचैन, आलोचनात्मक, गलतियाँ निकलने वाला, परिवार की अधिक चिंता न करने वाला, शर्मीला, मठवासी, स्वयं को पृथक रखने वाला, गुप्त, अपनी इच्छाओं और यौन आवेगों को छुपाने वाला, असंगत लेकिन रचनात्मक विचारक, दूसरों के रंग में रंग जाने वाला, शीघ्र क्रोधी|
कार्यक्षेत्र: व्यापार और धंधा, खेल, गायक, संगीतकार जो वायु उपकरणों को बजाता है, आविष्कारक, स्वतंत्र
व्यवसायी, विमान-चालक, वैमानिकी, शोधकर्ता, सेवा से जुड़े कार्य, सॉफ्टवेयर उद्योग, शिक्षक, राजदूत, वकील, न्यायाधीश, राजनेता, संघ का नेता, राजनयिक, परिचारिका, योग प्रशिक्षक तथा लचीलेपन से जुड़े कार्य
स्वाति नक्षत्र में जन्में प्रसिद्ध लोग: चार्ली चैपलिन, हैरी ट्रूमैन, जॉर्ज हैरिसन, जेम्स डीन, हेंक आरोन, नेल्सन रॉकफेलर, व्हूपी गोल्डबर्ग
अनुकूल गतिविधियाँ: व्यवसाय और व्यापारिक अनुबंध, शिक्षा प्रारंभ करना, सामाजिक कार्यक्रम, सार्वजनिक कार्यक्रम, आर्थिक लेन-देन, श्वास संबंधी व्यायाम, ध्यान तथा कूटनीति व शांति से संबंधित गतिविधियाँ
प्रतिकूल गतिविधियाँ: उग्र या आक्रामक व्यवहार, यात्रा
पवित्र मंदिर: सिथ्थुक्कडु श्री प्रसन्ना कुंडलंभिगाई समेधा श्री ठांठरीश्वर शिव मंदिर श्री सुंदरराजा पेरुमल मंदिर
स्वाति नक्षत्र से संबंधित यह पवित्र मंदिर भारत में तमिलनाडु के पूंदमल्लि के निकट सिहथुक्कडु में स्थित है। यह स्थल श्री ठांठरीश्वर शिव मंदिर और श्री सुंदरराजा पेरुमल मंदिर को आपस जोड़ता है। स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न लोगों के लिए सिथ्थुक्कडु में भगवान शिव व भगवान महाविष्णु से संबंधित इन पवित्र मंदिरों के दर्शन करना महत्वपूर्ण है| स्वाति एक पवित्र शब्द है जिसमें भगवान शिव व विष्णु की एकल उर्जा निहित है| स्वाति नक्षत्र दिवस, सोमवार या द्वादशी (शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि) पर इन दोनों मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव व विष्णु की एकल कृपा व महत्वपूर्ण लाभकारी प्रभाव प्राप्त होते हैं|
श्री प्रसन्ना कुंडलंभिगाई समेधा श्री ठांठरीश्वर शिव मूर्ति भी एक पवित्र मंदिर है जो योग ज्योति ( एक ऊर्जा जो ध्वनि व प्रकाश के रूप प्रकट होती है) की कृपा प्रदान करता है| प्रकाश और ध्वनि का मिश्रण कुंडल योगम के नाम से जाना जाता है तथा इस मिश्रण के माध्यम से कुंडल ज्योति प्रकट होती है| स्वाति नक्षत्र दिवस पर सिथ्थुक्कडु शिव मंदिर में कुंडल ज्योति चमकती हुई नज़र आती है| स्वाति नक्षत्र दिवस पर इस पवित्र मंदिर में मिट्टी से निर्मित एक लघु दीपक जलाया जाता है जिससे कुंडल ज्योति की ऊर्जा संपूर्ण संसार को प्राप्त होती है|
सिथ्थुक्कडु के पवित्र मंदिर में कुबेर मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है| यह स्थल प्रचुर मात्रा में धन-संपदा प्रदान करता है| उन्होंने अपने दाहिने पैर के अंगूठे पर खड़े होकर हजारों वर्षों तक तपस्या की तथा कुंडलंभिगाई समेधा श्री ठांठरीश्वर की नागलिंग पुष्प द्वारा पूजा-अर्चना की थी| आंवले के अर्क द्वारा अभिषेक करने के पश्चात उन्होंने श्री सुंदरराजा पेरुमल मंदिर में भगवान महाविष्णु की पूजा-अर्चना की थी| इस पवित्र मन्दिर में महान भक्ति के साथ पूजा-अर्चना करने वालों को विपुल धन-संपदा के रूप में सहायता प्रदान करने का आशीर्वाद कुबेर मूर्ति जी को प्राप्त हुआ था|
स्वाति नक्षत्र में दिव्य वस्तुओं जैसे रुद्राक्ष के दाने, घंटियां, व पवित्र धागे की दिव्य उर्जा को अवशोषित करने व फैलाने की शक्ति निहित है| सिथ्थुक्कडु उन पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है जहां यह ऊर्जा आसानी से उपलब्ध है|
स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न लोगों के अतिरिक्त इस पवित्र मंदिर की यात्रा करने से उन लोगों को फायदा हो सकता है जिन्होंने अपने माता-पिता या पारिवारिक सदस्यों के आशीर्वाद के बिना विवाह किया है| साथ ही चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों व डॉक्टरों को भी यहाँ दर्शन करने से काफी लाभ हो सकता है|
स्वाति नक्षत्र में जन्में लोगों के लिए वेदों द्वारा निर्धारित धूप जरुल नामक जड़ी-बूटी से निर्मित है|
इस धूप को जलाना उस विशिष्ट नक्षत्र हेतु एक लघु यज्ञ अनुष्ठान करने के समान है| एक विशिष्ट जन्मनक्षत्र के निमित किए गए इस लघु अनुष्ठान द्वारा आप अपने ग्रहों की आन्तरिक उर्जा से जुड़कर सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में सक्षम होंगे|
एक विशिष्ट नक्षत्र दिवस पर अन्य नक्षत्र धूपों को जलाने से आप उस दिन के नक्षत्र की ऊर्जा से जुड़कर अनुकूल परिणाम प्राप्त करते हैं| आपको यह सलाह दी जाती है कि आप कम से कम अपने व्यक्तिगत नक्षत्र से जुड़ी धूप को प्रतिदिन जलाएं ताकि आपको उस नक्षत्र से जुड़ी सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती रहे|
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