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सोमवार पूजा

भगवान शिव के लिए शुभ दिन सोमवार है। त्रिदेवों में से एक भगवान शिव है और जिन को प्रसन्न करने के लिए सोमवार का व्रत किया जाता है| ‘सोम’ शब्द के दो अर्थ हैं। एक अर्थ है कि “भगवान शिव पार्वती के साथ” और दूसरा है कि चंद्रमा| पार्वती समेत भगवान शिव की पूजा करने से समृद्ध जीवन पा सकते हैं|

सोमवार पूजा भगवान शिव के लिए अर्पित किया जाता है | सोमवार पूजा करने से, भगवान शिव की कृपा से शानदार जीवन प्राप्त कर सकते हैं| माना जाता है कि सोलह सोमवार का व्रत पूरे विधि विधान के साथ करने से मन की सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं

लंबे समय से सोमवार के दिन भगवान शिव का अभिषेक करने और फूल चढ़ाकर प्रार्थना करना दीप जलाने की परंपरा है। आज की पीढ़ी के लिए इस बारे में जानना जरूरी है। यदि आप वैदिक ज्योतिष के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो हमारी वेबसाइट पर जाएँ

Somvara Pooja

चन्द्र और सोमवार

एक बार जब चंद्र ने एक घातक बीमारी से पीड़ित थे जो भगवान शिव की ओर तपस्या कर रहे थे और भगवान शिव से चिकित्सा के लिए प्रार्थना करते थे, भगवान शिव की कृपा से ठीक हो गए। फिर चंद्र भी नवग्रहों में से एक बन गया। इसलिए किसी आदमी यदि सोमवार को व्रत का पालन करता है, तो उसका जीवन समृद्ध होगा।

सोमवार कथा-1

सीमांदिनी राजा चित्रवर्मन की इकलौती बेटी थीं जिन्होंने आर्यवर्धा पर शासन किया था। राजा चित्रवर्मन अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था| एक दिन उसने सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषियों को बुलाया और उनकी बेटी को जन्मकुंडली की भविष्यवाणी करने का आदेश दिया। कहा गया था कि उसकी बेटी की कुंडली में दोष के कारण पति नहीं होगा|

राजा इस समस्या के समाधान की तलाश में भटकता रहा। इससे उबरने के लिए उसे जो तरकीब निकाली, वह सोमवार को उपवास थी।

उस दिन से सीमांदिनी ने सोमवार का उपवास क्रम से करने लगी | परिणामस्वरूप, सीमांदिनी का विवाह नलन के पोते, इंद्रसेन के बेटे चंदरांगधन से हुआ|

एक दिन दोस्तों के साथ नदी में तैर रहे चंदरांगधन पानी में डूब गए। यह समाचार जानकार उसे पाने से बचाने के लिए वहाँ के सभी लोग दूंढ़ने लगे | लेकिन वह मिला नहीं| फिर भी सीमांदिनी दृढ़ मन से सोमवार व्रत कर रही थी | उस का फल उसे एक दिन मिला।
अचानक एक दिन उसका पति चंदरांगधन, जो डूब गया था, वापस आ गया। उन्होंने कहा कि वह कुछ नागर द्वारा उठाए गए थे जो डूब गए थे और उन्होंने सोमवार के उपवास के बारे में सुना था कि और कु छ दिनों तक उनके साथ रहकर उन्हें वापस ला गए थे|

अवलोकन करने का तरीका

सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं| स्नान करने के बाद गंगा जल या जल पूरे घर में छिड़कें| घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूजन तैयारी के बाद भगवान का अभिषेक, बिल्व के पत्तों को अर्पित करते हुए पूजा, मंत्र पारायणकरें| पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें। तत्पश्चात आरती कर प्रसाद वितरण करें। इसके बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।

शक्तिशाली सोमवार व्रत

सोमवार का व्रत लगातार कर सकते हैं | यह व्रत रखना पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए भी विशेष होगा।

सोमवार को की गई पूजा में चावल, घी, दाल, हलवा, नारियल और केला को औषधि के रूप में बनाना है। शिवनाम का पाठ करके कपूर आरती दिखाना विशेष है।

सोमवार पूजा के बाद बुजुर्ग दंपति को पार्वती परमेस्वरन के रूप में मर्यादा करना अच्छा होता है और उन्हें चंदन और केसर अर्पित करते हैं, उन्हें नए कपड़े, फल, पूजा के साथ सुपारी, देते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

सोमवार पूजा के महिमा

जो इस व्रत का पालन करता है, उसे इस संसार में बहुत से सुखों का आनंद प्राप्त होता है और अंत में कैलाशम में पहुंच जाता है। चंद् ने इस व्रत का अवलोकन किया और उसे “नवग्रहों में एक स्थान” मिला। उन्होंने भगवान गौरी-शंकर को प्रणाम किया और निवेदन किया कि इस व्रत को सोम व्रत कहा जाए (चन्द्रमा के नामों में से एक सोम है। देवी उमा के साथ भगवान शिव के नाम में से एक सोम भी हैं) और जो भी इस व्रत का पालन करता है, उसे अच्छा फल मिल सकता है। प्रभु की कृपा से भौतिक कामनाएं और अंत में मुक्ति मिलने की भाग्य पा सकते हैं। इस व्रत को पूरी ईमानदारी से करने पर शिव-शक्ति का आशीर्वाद मिलता है।

सोमवार पूजा करके व्रत पालन करने से बिछुडे दम्पति फिर जोड़ा जा सकते हैं | व्यापार धंधों के कारण जो कोग दूर रहते हैं और एक साथ आने की इच्छा रखते हैं, सोमवार को सांबा परमेस्वर के स्मरण में इस सोमवार व्रत का पालन करने से दूर के पति-पत्नी और रिश्तेदारों से एक साथ रह सकते हैं।

सोमवार व्रत की पौराणिक कथा

सोमवार व्रतकथा- किसी एक समय में अमरपुर नामक नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक जाकर भी वह व्यापार करता रहता धा| इसलिए उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में और नहर के बाहर भी उस व्यापारी का सभी लोग मान-सम्मान करते थे। इतना सबकुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का बहुत दिन से संतान प्राप्त न मिला था ।

दिन-रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा। पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था। सायंकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था।

उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।’

भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- ‘हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है।’ इसके बावजूद पार्वती जी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा- ‘नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी। यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार आपका विधिवत व्रत रखता है और पूजा-अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है। आपको इसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान देना ही होगा।’

पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- ‘तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा।’ उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई।

भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गईं। बहुत धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया गया।

व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम सिरंजीवी रखा जिसका मतलब है कि अमर|

जब सिरंजीवी अमर 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ। व्यापारी ने सिरंजीवी के मामा चंद को बुलाया और कहा कि सिरंजीवी को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ। सिरंजीवी अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया। रास्ते में जहाँ भी सिरंजीवी और चंद रात्रि विश्राम के लिए ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे।

लंबी यात्रा के बाद सिरंजीवी और चंद एक नगर में पहुंचे। उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दे। इससे उसकी बदनामी होगी।

वर के पिता ने सिरंजीवी को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा।

वर के पिता ने इसी संबंध में सिरंजीवी और चंद से बात की। चंद ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली।सिरंजीवी को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी चंद्रिका से विवाह करा दिया गया। राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया।

सिरंजीवी जब लौट रहा था तो सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- ‘राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है।’

जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर सिरंजीवी अपने मामा चंद के साथ वाराणसी पहुं च गया। सिरंजीवी ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया।
जब सिरंजीवी की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात सिरंजीवी अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही सिरंजीवी के प्राण-पखेरू उड़ गए। सूर्योदय पर मामासिरंजीवी को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे।

मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वती जी ने भगवान से कहा- ‘प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें।’

भगवान शिव ने पार्वती जी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर सिरंजीबी को देखा तो पार्वती जी से बोले- ‘पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई।’

पार्वती जी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- ‘हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है।’

पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा। शिक्षा समाप्त करके सिरंजीवी र मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां सिरंजीवी का विवाह हुआ था। उस नगर में भी सिरंजीवी ने यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा।

राजा ने सिरंजीवी को तुरंत पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा सिरंजीवी र और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।

रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा। चंद ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी। अपने बेटे सिरंजीवी के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।

व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे।

व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- ‘हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।’ व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ।

सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं। शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

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