AstroVed Menu
AstroVed
search
HI language
x
cart-added The item has been added to your cart.
x

भगवान मुरुगन के छह चेहरे

भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को कई नामों से जाना जाता है, स्वामीनाथ, मुरुगन, मुरुगा, कुमार, स्कंद, शंमुख, आदि। भगवान कार्तिकेय को सुब्रमण्यम के नाम से भी जाना जाता है जो दक्षिण भारतीय राज्यों में एक प्रचलित नाम है। पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार कार्तिकेय युद्ध के देवता है और बुद्धि, रिद्धि सिद्धि के दाता गणेश के बड़े भाई हैं। तमिलनाडु और भारत के कुछ अन्य स्थानों को छोड़कर वे भारत के अन्य हिस्सों में अपने भाई की तरह लोकप्रिय नहीं हैं। फिर भी, वह कई दिव्य गुणों के साथ एक अत्यधिक सुशोभित और शक्तिशाली भगवान हैं।
six faces of lord muruga

कार्तिकेय का जन्म

भगवान शिव देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उनसे शादी की, समय के साथ, माता पार्वती ने मार्गशिरा महीने की पहली छमाही के छठे दिन, माता पार्वती ने एक पुत्र को जन्म दिया। इसलिए उस दिन को स्कंद षष्ठी के नाम से जाना जाता है। जन्म के समय भी, कार्तिकेय के हाथों में शक्ति, शूल और महास्त्र के दिव्य हथियार थे। उनके जन्म की खबर सुनकर, कृतिकाएं और देवदूतों ने उन्हें वरदान और शक्ति प्रदान की।

कार्तिकेय के 6 मुख और उनका अर्थ

1. प्रथम मुख प्रकाश की किरणें बिखेरता है और दुनिया के घने अंधेरे को दूर करता है।
2. कार्तिकेय का द्वतीय मुख. अपने उन भक्तों पर प्रेम और आनन्द से उनकी स्तुति करते हैं, 3. तीसरा चेहरा उन ब्राह्मणों के बलिदान को देखता है जो कठोर वैदिक परंपराओं से विचलित हुए बिना अपने मार्ग पर अडिग रहते है।
4. कार्तिकेय का चैथा मुख पूर्णिमा जैसा एक चेहरा है, जो दुनिया के सभी हिस्सों को रोशन करता है, ऋषियों के मन को रोशन करता है ताकि वे छिपे हुए सत्य की खोज कर सकें।
5. भगवान कार्तिकेया का एक मुख अपने शत्रुओं का नाश करता है और
6. भगवान कार्तिकेया का छठा मुख अपनी युवा पत्नी, शिकार जनजाति की सुंदर बेटी पर प्यार से मुस्कुराता है।

कार्तिकेय का स्वरूप और अर्थ

यदि आप कार्तिकेय की मूर्ति को देखें, तो वह एक ओर भाला लिए हुए है। इसे वेल भी कहा जाता है। यह त्रिशूल के समान दिखाई देता है लेकिन यह त्रिशूल नहीं है, बल्कि यह कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है। कार्तिकेय दूसरी ओर, एक छोटा झंडा लेकर चलते है जिस पर एक मुर्गा मौजूद होता है। महाशक्तिशाली राक्षस तारकासुर जो अहंकार का प्रतीक है उसे परास्त करने के कारण उनके ध्वज पर मुर्गी या मुर्गा प्रतीक स्वरूप बना होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि तारकारसुर कार्तिकेय द्वारा पराजित होने के बाद मुर्गी या मुर्गा बन गया। तारक को युद्ध में हराने के बाद, कार्तिकेय ने अपनी जान बख्श दी और उससे पूछा कि वह क्या वरदान चाहता है। तारक ने हमेशा भगवान के चरणों में रहने की प्रार्थना की, और इसलिए भगवान कार्तिकेय ने उन्हें अपने ध्वज पर प्रतीक बनाया। इसका अर्थ यह भी है कि अहंकार को हमेशा वश में रखना चाहिए। जीवन के लिए अहंकार जरूरी है, लेकिन इसे अपने वश में रखना चाहिए।

तारकासुर वध

तारकासुर नाम का एक असुर, जिसे भगवान ब्रह्मा ने वरदान दिया था कि वह केवल भगवान शिव के समान शक्तिशाली व्यक्ति द्वारा मारा जाएगा और भगवान शिव का पुत्र ही भगवान शिव के समान बलवान होगा। यह सती की मृत्यु के तुरंत बाद की घटना है, इसलिए तारकासुर ने यह मान लिया कि शिव उदास थे और वे दोबारा शादी नहीं करेंगे। इस बात से अंहकार में चूर तारकासुर का आतंक बढ़ता ही गया। तारकासुर जानता था कि भगवान शिव एक तपस्वी है और उन्होंने सोचा कि वह शादी नहीं करेंगे या उनके बच्चे नहीं होंगे। इसलिए, वह अजेय होगा। लेकिन देवताओं की विनती और माता पार्वती की घोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और तारकासुर वध के उद्देश्य से भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ। अंत में एक भीषण युद्ध के दौरान भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर को परास्त कर सृष्टि को उसके आतंक से मुक्त करवाया।

नवीनतम ब्लॉग्स

  • ज्योतिषीय उपायों में छुपा है आपकी आर्थिक समस्याओं का समाधान
    आज की दुनिया में, आर्थिक स्थिरता एक शांतिपूर्ण और सफल जीवन के प्रमुख पहलुओं में से एक है। फिर भी कई लोग कड़ी मेहनत के बावजूद लगातार आर्थिक परेशानियों, कर्ज या बचत की कमी का सामना करते हैं। अगर यह आपको परिचित लगता है, तो इसका कारण न केवल बाहरी परिस्थितियों में बल्कि आपकी कुंडली […]13...
  • ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की भूमिका और कुंडली में प्रभाव
    भारतीय वैदिक ज्योतिष में ग्रहों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में स्थित ग्रहों की स्थिति उसके जीवन के हर पहलू – जैसे स्वभाव, स्वास्थ्य, शिक्षा, विवाह, करियर, धन, संतान और आध्यात्मिकता पर गहरा प्रभाव डालती है।   जन्मकुंडली में ग्रहों की भूमिका जब कोई व्यक्ति जन्म लेता […]13...
  • पंचमुखी रुद्राक्ष का महत्व, लाभ और पहनने की विधि
    भारतीय संस्कृति और अध्यात्म में रुद्राक्ष को दिव्य मणि कहा गया है। इसे भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। रुद्राक्ष की हर मुखी के अलग-अलग गुण और प्रभाव होते हैं। इनमें से पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे आम और अत्यंत शुभ माने जाने वाले रुद्राक्षों में से एक है। यह न केवल आध्यात्मिक साधना में सहायक […]13...