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दुर्गा चालीसा के दैनिक पाठ से दूर होती है ये समस्याएं मिलती है सफलता

देवी दुर्गा दिव्य शक्तियों (सकारात्मक ऊर्जा) का प्रतीक हैं जिन्हें दिव्य शक्ति (स्त्री ऊर्जाध्शक्ति) के रूप में जाना जाता है जिसका उपयोग बुराई और दुष्टता की नकारात्मक शक्तियों के खिलाफ किया जाता है। वह अपने भक्तों को बुरी शक्तियों से बचाती हैं और उनकी रक्षा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा देवी लक्ष्मी, काली और सरस्वती की शक्तियों का संयुक्त रूप हैं। देवी दुर्गा सर्वोच्च सत्ता की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जो सृष्टि में नैतिक व्यवस्था और धार्मिकता को बनाए रखती है। संस्कृत शब्द दुर्ग का अर्थ है किला या ऐसा स्थान जो संरक्षित हो और जिस तक किसी भी नकारात्मकता का पहुंचना कठिन हो। दुर्गा, जिन्हें दिव्य शक्ति भी कहा जाता है, बुरी शक्तियों (नकारात्मक ऊर्जा और बुराइयों- अहंकार, ईर्ष्या, पूर्वाग्रह, घृणा, क्रोध, लालच और स्वार्थ) को नष्ट करके मानव जाति को बुराई और दुख से बचाती है।

 दुर्गा स्वरूप का अर्थ

देवी दुर्गा को एक योद्धा महिला के रूप में दर्शाया गया है, जिसके आठ हाथों में विभिन्न प्रकार के हथियार हैं, जो मुद्राएं हैं जो उनकी शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके पहले ऊपरी दाहिने हाथ में चक्र धर्म, कर्तव्य और धार्मिकता का प्रतीक है। उनके पहले ऊपरी बाएं हाथ में शंख खुशी का प्रतीक है। जो हमें बताता है कि हमे अपना कर्तव्य खुशी से निभाना चाहिए न कि नाराजगी के साथ। उनके दूसरे दाहिने निचले हाथ में तलवार बुराइयों के उन्मूलन का प्रतीक है। अर्थात हमे अपने बुरे गुणों को मिटाना चाहिए। उनके दूसरे बाएं निचले हाथ में धनुष और बाण भगवान राम जैसे चरित्र का प्रतीक है। जब हम अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हैं तो हमें अपना चरित्र नहीं खोना चाहिए।

 दुर्गा चलीसा के लाभ

दुर्गा चालीसा एक छंद आधारित प्रार्थना है। यदि व्यक्ति प्रतिदिन और विशेष रूप से नवरात्रि में दुर्गा चालीसा का पाठ करता है तो मां दुर्गा सदैव भक्त और परिवार पर अपनी कृपा बनाए रखती हैं। दुर्गा चालीसा देवी दुर्गा को समर्पित है। दुर्गा चालीसा में शक्ति, साहस, सुंदरता, दिव्य माँ के अवतार, राक्षसों से लड़ाई, देवी दुर्गा के स्वरूप का वर्णन किया गया है। देवी दुर्गा तीनों लोकों को प्रकाशित करती हैं। माता का माथा चंद्रमा के समान चमक रहा है और आंखें क्रोध से लाल हैं। माँ का रूप मनमोहक होता है और माँ के दर्शन सभी को आनंद प्रदान करते हैं। सभी शक्तियाँ माँ दुर्गा में निहित हैं और दुनिया को भोजन और धन से पोषित करती हैं। माँ दुर्गा की कृपा से अमरपुरी तथा अन्य लोक दुःख रहित रहते हैं। योगी, देवता, ऋषि कहते हैं कि माँ दुर्गा की शक्ति के बिना योग और परमात्मा से मिलन नहीं हो सकता। शंकरचार्य ने तपस्या की और काम तथा क्रोध पर विजय प्राप्त की।

 दुर्गा चालीसा पाठ

 नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

 

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

 

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

 

तुम संसार शक्ति लै कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

 

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

 

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

 

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

 

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।

परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

 

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

 

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

 

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

 

श्री भैरव तारा जग तारिणी।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

 

केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

 

कर में खप्पर खड्ग विराजै।

जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

 

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहुंलोक में डंका बाजत॥

 

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

 

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

 

परी गाढ़ संतन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

 

अमरपुरी अरु बासव लोका।

तब महिमा सब रहें अशोका॥

 

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

 

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

 

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

 

शंकर आचारज तप कीनो।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

 

शक्ति रूप का मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछितायो॥

 

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

 

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

 

आशा तृष्णा निपट सतावें।

रिपू मुरख मौही डरपावे॥

 

शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

 

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥

 

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।

सब सुख भोग परमपद पावै॥

 

देवीदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

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