सामान्य रूप से स्तोत्रम
स्तोत्रम का अर्थ है ‘प्रशंसा करना’ या ‘सराहना करना’। यह एक शब्द है जो मूल क्रिया स्तुति से लिया गया है।
‘स्तोत्रम’ वह है जो किसी एक देवता के गुणों की सराहना करते हुए उसे आह्वान करता है और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उनका आशीर्वाद मांगता है। यह आमतौर पर एक विशिष्ट देवता को समर्पित होता है, जैसे। राम रक्षा स्तोत्रम, सुब्रह्मन्य स्तोत्रम, नवग्रह-स्तोत्रम। हमारी वेबसाइट पर हिंदी में सभी 12 राशी के लिए अपना राशिफल पढ़ें।
राम रक्षा स्तोत्रम
राम रक्षा स्तोत्र शास्त्रीय रूप में बना है और यह वैदिक भजनों की तुलना में समझने में अपेक्षाकृत आसान है। आम लोगों के बीच लोकप्रिय, स्तोत्रम आसान काव्यात्मक मीटर में रचा गया है जो इसे संगीत के साथ जप और गायन के लिए उपयुक्त बनाता है।
राम रक्षा स्तोत्रम् एक प्रसिद्ध स्तोत्रम् है जिसे “आनंद रामायण” से लिया गया है और कहा जाता है कि इसे 14 वीं शताब्दी में संभवत: बुद्धकौशिक नामक एक संत ने रचा था।यह स्तोत्रम् मुसीबतों, खतरों से हमें बचाता है। ऐसा माना जाता है कि इसका पाठ जीवन में सभी सांसारिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक मुसीबतों से लड़ने के लिए एक व्यक्ति को सशक्त बनाता है।
इस स्तोत्र में एक पुत्र के रूप में अपनी माता के साथ, एक शिष्य के रूप में गुरु से, पति के रूप में सीता से राम के द्वारा साझा किया गया सबंध का वर्णन है । उनकी शारीरिक विशेषताओं, दयालु स्वभाव, पवित्र चरित्र और वीरतापूर्ण उपलब्धियों के बारे में विभिन्न किंवदंतियों के आधार पर भगवान राम के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख किया गया है| जबकि उन्हें आमंत्रित करते हुए अपने सभी अंगों सहित शरीर की रक्षा करने का अनुरोध किया गया है।
स्तोत्रम का यह भाग विशेष रूप से उपयोगी है क्योंकि यह भगवान राम के जीवन के बारे में छोटे लेकिन महत्वपूर्ण संकेत देता है। शरीर के सभी अंगों के संस्कृत नाम दिए गए हैं और इनमें से प्रत्येक की सुरक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना किया गया है इस तरह का आह्वान बहुत ही अनोखा है और अन्य प्रार्थनाओं में बहुत कम देखा जाता है।
इस स्तोत्रम में राम के जन्म से लेकर रावण पर उसके विजय तक के उनके जीवन के कई पहलुओं का पता चलता है|
रोज इस स्तोत्र का पारायण करने से जीवन में सभी सौभाग्य मिल सकता है| भगवान राम के कृपापात्र रूप का ध्यान करते हुए, हर रोज 7 या 11 बार इस स्तोत्र का पाठ करने की भी सलाह दी जाती है। विशेष रूप से ‘वसंत नवरात्रि’ के नौ दिनों में इस स्तोत्र का पाठ करने की परंपरा है।
राम रक्षा स्तोत्रम के लाभ
• जीवन में हम सामना करनेवाले सभी खतरों को नष्ट कर देता है
• हमें पुनर्जन्म से मुक्त करवाता है| मोक्ष प्रदान करता है |
• मृत्यु के भय को दूर करता है
• आनंद और स्वास्थ्य पूर्ण जीवन प्रदान करता है
राम रक्षा स्तोत्रम
विनियोग:
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः।
अथ ध्यानम्:
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्। वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम।
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम् ॥2॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम् ।स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥3॥
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥4॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥5॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥6॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥7॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।उरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥8॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः ।पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥9॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥10॥
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।न दृष्टुमति शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥11॥
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन् ।नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाऽभिरक्षितम् ।यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥13॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥14॥
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥15॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।अभिरामस्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः ॥16॥
तरुणौ रूप सम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥
शरण्यौ सर्र्र्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥19॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् ॥20॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः ॥21॥
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥22॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥23॥
इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयाऽन्वितः ।अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ॥24॥
रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥25॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥26॥
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥27॥
श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥28॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामिश्रीरामचन्द्रचरणौ वचंसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥29॥
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रःस्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयलुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥30॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनन्दनम् ॥31॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम ।कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥32॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥33॥
कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥34॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥35॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् । तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम् ॥36॥
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रामेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥37॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥38॥
॥ इति राम रक्षा स्तोत्र संपूर्णम॥