पुष्य (पोषण प्रदाता) (कर्क राशि में 3°20′ से 16°40′ कर्क राशि तक)
पुष्य नक्षत्र संपूर्ण रूप से कर्क राशि में स्थित है तथा इसमें थीटा, गामा व एटा- कंक्री नामक तारों का समावेश है| पुष्य का अर्थ “पोषण प्रदाता” है जो इस नक्षत्र के सार को अभिव्यक्त करता है। इस नक्षत्र का प्रतीक एक गाय का थन है जो पुनः पोषण का प्रतीक है| वैदिक परंपरा में गाय का सम्मान किया गया है तथा यह प्रजनन क्षमता व उत्पादकता का प्रतिनिधित्व करती है। देवगुरु बृहस्पति इस नक्षत्र के अधिपति देव हैं जो परोपकारिता के गुण प्रदान करता है जबकि इस नक्षत्र के स्वामी शनि प्रतिबद्धता व व्यावहारिकता से संबंधित हैं| इस नक्षत्र में पैदा हुए लोगों में परिवार, घर व समाज के प्रति गहरी समझ होती है| इसके अतिरिक्त उत्तम भोजन व सामाजिक आनंद के प्रति भी आत्मीयता होती है| उन्हें जीवन में एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है अन्यथा वे बहुत सहज या कठोर हो सकते हैं| पुष्य समस्त नक्षत्रों में सबसे सौम्य है तथा आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए एक अनुकूल नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र में उत्पन्न हुए लोग भरोसेमंद, उदार, सुरक्षात्मक व शांत होते हैं।
सामान्य विशेषताएँ: विभिन्न विषयों का जानकार; प्रशंसनीय; राग के नियंत्रण में; धनवान और धर्मार्थ कार्यों में रूचि|
अनुवाद: “पोषण प्रदाता”
प्रतीक: एक गाय का थन; फूल; वृत्त
पशु प्रतीक: एक बकरा
अधिपति देव: बृहस्पति, गुरु का एक रूप जो पवित्र वाणी व प्रार्थना के देव हैं|
शासक ग्रह: शनि
शनि ग्रह के अधिपति देव: हनुमान जी
प्रकृति: देवता (देव समान)
ढंग: दब्बू
संख्या: 8
लिंग: पुरुष
दोष: पित्त
गुण: तामसिक
तत्व: जल
प्रकृति: हल्का व तीव्र
पक्षी: समुद्री पक्षी
सामान्य नाम: पवित्र अंजीर
वानस्पतिक नाम: पीपल
बीज ध्वनि: हु, हे, हो, डा
ग्रह से संबंध: कर्क राशि के स्वामी के रूप में चंद्र व अधिपति देव के रूप में बृहस्पति इस नक्षत्र से संबंधित है|
प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में विभाजित किया जाता है जिन्हें पद कहते हैं| पुष्य नक्षत्र के विभिन्न पदों में जन्म लेने वाले लोगों के अधिक विशिष्ट लक्षण होते हैं:

पद:
| प्रथम पद | कर्क राशि का 3° 20′- 6° 40′ भाग सूर्य ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: हु सूचक शब्द: उपलब्धि |
द्वितीय पद | कर्क राशि का 6° 40′ to 10° 00′ भाग बुध ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: हे सूचक शब्द: सेवा |
तृतीय पद | कर्क राशि का 10° 00′ – 13° 20′ भाग शुक्र ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: हो सूचक शब्द: विलासिता |
चतुर्थ पद | कर्क राशि का 13° 20′ -16° 40′ भाग मंगल ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: डा सूचक शब्द: गुप्त |
शक्ति: आध्यात्मिक, सहज ज्ञान युक्त, बुद्धिमान, विद्वान, आवेशपूर्ण, रचनात्मक, सहायक, आकर्षक, सम्मानित, सामाजिक रूप से निपुण, समावेशी, नि:स्वार्थ, परोपकारी, मानवीय, स्वतंत्र, पोषण, परामर्शदाता, वित्तीय विशेषज्ञ, लोकहित के लिए लड़ने वाला|
कमजोरियाँ: जिद्दी, स्वार्थी, अभिमानी, बहुत बातूनी, कट्टरपंथी, रूढ़िवादी, अति संवेदनशील, स्वयं पर संदेह करने वाला, भक्ति कभी कभी शोषण में बदल सकती है, गलत लोगों पर विश्वास करके आसानी से धोखा खाने वाला, असुरक्षित भाव|
कार्यक्षेत्र: राजनेता, रेस्तरां से जुड़े कार्यक्षेत्र, आहार प्रबन्ध, खाद्य या पेय उद्योग, होटल, मेजबान / परिचारिका, दूध संबंधी उद्योग, परामर्शदाता, मनोवैज्ञानिक, पादरी, पुजारी, आध्यात्मिक सलाहकार, दान संबंधी कार्य, शिक्षक, बाल-संरक्षण से जुड़े कार्य, कारीगर, अचल संपत्ति से जुड़े कार्य, किसान, जल संबंधी उद्योग, रूढ़िवादी या पारंपरिक धर्मों से संबंधित कार्य|
पुष्य नक्षत्र में जन्में प्रसिद्ध लोग: मिखाइल गोर्बाचेव, क्लिंट ईस्टवुड, टॉम हैंक्स, डेन क्वायल, मैरी टायलर मूर, जिमी हेंड्रिक्स
अनुकूल गतिविधियां: किसी भी नए कार्य की शुरुआत; भवन की नींव रखना, उत्सव, सभा, कल्पनाशील गतिविधियाँ, संगीत, नृत्य, यात्रा, वित्तीय नियोजन, कानूनी सहायता प्राप्त करना, विरोधियों का सामना करना, पाक-कला, बागवानी, बच्चों से जुड़े कार्य, पालतू जानवर ख़रीदना या उनकी देखभाल करना, उपचार व पोषण संबंधी गतिविधियाँ, मार्गदर्शन प्राप्त करना, धार्मिक व आध्यात्मिक कार्य|
प्रतिकूल गतिविधियां: कठोर व्यवहार से जुड़ी गतिविधियाँ तथा विवाह या समारोह
पवित्र मंदिर: विलंकुलम श्री अक्षयपुरीश्वर
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पुष्य नक्षत्र से संबंधित यह मंदिर भारत में तमिलनाडु के पेरावोरानी के निकट तंजावूर में स्थित है। पुष्य नक्षत्र में पैदा हुए लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इस पवित्र मंदिर के दर्शन करके यहाँ पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए|
पुष्य नक्षत्र भगवान श्री शनिश्वर से संबंधित है| सिद्धों के अनुसार पुष्य का आंतरिक अर्थ “भगवान के गौरवशाली चरणों के माध्यम से स्नेह प्राप्त करना है।” पौराणिक कथाओं के अनुसार मृत्यु के देवता यमराज ने श्री शनिश्वर को ठोकर मारी जिससे उनका एक पैर विकलांग हो गया था| श्री शनिश्वर ने पैर की इस चोट को सहन किया तथा अपने रोग के उपचार हेतु उन्होंने अन्न की भिक्षा मांगनी शुरु की| उन्होंने भिक्षा से प्राप्त अन्न को पकाकर गरीबों में बांटा| इसके अतिरिक्त उन्होंने विलंकुलम के पवित्र मंदिर में भगवान शिव को भोग चढ़ाकर पूजा-अर्चना की| श्री शनिश्वर को इस मंदिर से शिव कृपा प्राप्त हुई तथा उनका पैर ठीक हो गया। पुष्य नक्षत्र में पैदा हुए लोगों को इस मंदिर के दर्शन करने से भगवान श्री शनिश्वर का स्नेह प्राप्त होता है| यह वो स्थान है जहाँ भगवान शिव स्वयं श्री अक्षयपुरीश्वर के रूप में प्रकट हुए थे| वह श्री शनिश्वर की सहायता करने के लिए यहाँ उपस्थित थे तथा वह हमेशा इस मंदिर में उपस्थित होते हैं। पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न लोग यदि इस तीर्थस्थल पर जाकर पूजा-अर्चना करते हैं तो उन्हें असीम भाग्य व कृपा की प्राप्ति होती है| वे यहाँ आसानी से अपनी तपस्या का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
श्री शनिश्वर दीर्घायु प्रदान कर सकते हैं तथा समस्त चिंताओं को दूर कर सकते हैं। शनि की महादशा या अंतर्दशा के दौरान पूर्वजन्म के बुरे प्रभावों से बचने के लिए इस स्थल पर पूजा-अर्चना करके भोग अर्पित करना विशेष रूप से फायदेमंद है| पुष्य नक्षत्र में पैदा लोगों को वर्ष में एक बार इस मंदिर के दर्शन करके बाँए से दाएँ आठ परिक्रमा करनी चाहिए| ऐसा करने से शनि ग्रह से संबंधित समस्त बाधाओं का नाश होगा|
इस पवित्र स्थल पर भगवान श्री शनिश्वर को चंदन के लेप द्वारा अभिषेक करके तिल से बनी मिठाई अर्पित करने की सलाह दी जाती है। मंदिर में ग़रीब लोगों को मीठा भोजन देना भी शनि की पीड़ा से मुक्त होने का एक कारगर उपाय है| अप्रत्याशित स्वास्थ्य समस्याएं, जीर्ण रोग व स्वास्थ्य उपचार के कारण उत्पन्न हुई कर्ज की बड़ी समस्याओं को विलंकुलम भगवान श्री शनिश्वर जी के इस मंदिर में भोग चढ़ाकर समाप्त किया जा सकता है।
पुष्य नक्षत्र में जन्में लोगों के लिए वेदों द्वारा निर्धारित धूप पीपल नामक जड़ी-बूटी से निर्मित है|
इस धूप को जलाना उस विशिष्ट नक्षत्र हेतु एक लघु यज्ञ अनुष्ठान करने के समान है| एक विशिष्ट जन्मनक्षत्र के निमित किए गए इस लघु अनुष्ठान द्वारा आप अपने ग्रहों की आन्तरिक उर्जा से जुड़कर सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में सक्षम होंगे|
एक विशिष्ट नक्षत्र दिवस पर अन्य नक्षत्र धूपों को जलाने से आप उस दिन के नक्षत्र की ऊर्जा से जुड़कर अनुकूल परिणाम प्राप्त करते हैं| आपको यह सलाह दी जाती है कि आप कम से कम अपने व्यक्तिगत नक्षत्र से जुड़ी धूप को प्रतिदिन जलाएं ताकि आपको उस नक्षत्र से जुड़ी सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती रहे|
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