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प्रथम भाव

प्रथम भाव जन्मकुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव है| इसे लग्न भी कहा जाता है| लग्न का अर्थ है-लगा हुआ युक्त अथवा संलग्न| किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि विद्यमान होती है, वही उस व्यक्ति की लग्न बन जाती है| लग्न क्यों महत्वपूर्ण है? इसलिए क्योंकि इसी राशि विशेष के काल में जन्म लेकर एक शिशु माँ के गर्भ से बाहर आता है और जिस क्षण वह बाहर आता है, उसी क्षण वह आकाश में स्थित राशि, नक्षत्र व ग्रहों की विशेष स्थिति का प्रभाव ग्रहण करता है| क्योंकि जन्म के समय जिस राशि के तारे पूर्वी क्षितिज पर उदय होते हैं, वही प्रथम भाव में स्थापित की जाती है| इसके पश्चात ही यह ज्ञात होता है कि अन्य राशियाँ किन भावों में स्थित होंगी| कुंडली में लग्न का उतना ही महत्व है जितना एक मानचित्र में चुम्बकीय उत्तर दिशा का| जिस प्रकार किसी स्थान के मानचित्र को उत्तर दिशानुसार निर्धारित करते हैं, उसी प्रकार जन्मकालीन आकाशीय मानचित्र(जन्मकुंडली) को पूर्वी क्षितिज पर उदयरत तारों व उनके अंशों के अनुसार निर्धारित किया जाता है| यही से कुंडली का प्रारंभ होता है| बिना लग्न के जन्मकुंडली अर्थहीन है|

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प्रथम भाव को लग्न, आत्मा, शरीर, होरा, उदय, आदि, के नाम से भी जाना जाता है| इस भाव से व्यक्ति के शरीर, रूप, रंग, आकृति, स्वभाव, ज्ञान, बल, सुख, यश, गौरव, आयु तथा मानसिक स्तर का विचार किया जाता है| लग्न को भावों में विशिष्ट श्रेणी प्रदान की गई है| लग्न एक केंद्र भी है, तो त्रिकोण भी| लग्न भाव का स्वामी(लग्नेश), चाहे वह नैसर्गिक पापी ग्रह हो या शुभ ग्रह, हमेशा शुभ ही माना जाता है| अतः लग्न व लग्नेश को फलित ज्योतिष में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है| इस भाव का कारक ग्रह सूर्य है, क्योंकि सूर्य ही जातक का जनक व उसकी आत्मा का अधिष्ठाता है|

प्रथम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-

  • शरीर- शरीर का मोटा या दुबला होना जलीय एवं शुष्क ग्रहों और राशियों पर निर्भर करता है| अर्थात जब जलीय ग्रहों का संबंध अन्य ग्रहों की अपेक्षा प्रथम भाव पर अधिक पड़ता है तब जातक का शरीर मोटा होता है| परंतु अगर शुष्क ग्रहों और राशियों का संबंध लग्न पर अधिक पड़ता है तब जातक का शरीर दुबला होता है|
  • कद- लग्न पर जब शनि, राहु, बुध, गुरु आदि दीर्घ ग्रह एवं राशियों का प्रभाव पड़ता है तब जातक का शरीर लंबा होता है| परंतु जब मंगल, शुक्र आदि छोटे कद वाले ग्रह एवं राशियों का प्रभाव प्रथम भाव पर पड़ता है, तब व्यक्ति का कद छोटा होता है|
  • बालारिष्ट- प्रथम भाव व्यक्ति की शैशव अवस्था(बाल अवस्था) का प्रतीक है| अतः यदि लग्न के साथ-साथ लग्नेश व चन्द्र पर पाप व क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य को बाल्य अवस्था में शारीरिक कष्ट होने की संभावना होती है| अगर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो बालारिष्ट से बचाव होता है|
  • स्वभाव- मनुष्य के स्वभाव का विचार लग्न, लग्नेश, चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा चन्द्र से किया जाता है| किसी भी मनुष्य के स्वभाव का आकंलन करने में लग्न का बहुत महत्व होता है| इसका कारण यह है कि चतुर्थ भाव व्यक्ति के मन तथा हृदय से संबंधित है, ह्रदय तथा मन का प्रभाव मनुष्य के स्वभाव पर पूर्ण रूप से पड़ता है| चंद्रमा मन का प्रतीक है, मन से स्वभाव जुड़ा हुआ होता है| लग्न मनुष्य का सर्वस्व है, यह उसके सिर तथा विचार शक्ति को दर्शाता है| इसलिए जब चतुर्थ भाव, चतुर्थेश, चन्द्र, लग्न व लग्नेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तो व्यक्ति अच्छे स्वभाव वाला, सात्विक, दयालु तथा मिलनसार होता है| इसके विपरीत जब इन घटकों पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तब व्यक्ति क्रूर तथा दुष्ट स्वभाव का होता है|
  • जन्मकालीन स्थिति- लग्न तथा लग्नेश पर जैसे ग्रहों का प्रभाव होता है मनुष्य को उसी प्रकार की पारिवारिक स्थिति, कुल, सुख-दुःख आदि की प्राप्ति होती है| यदि लग्न, लग्नेश, चन्द्र, सूर्य तथा इनके अधिपतियों पर गुरु और शुक्र जैसे ब्राह्मण ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का जन्म ब्राह्मण कुल में होता है| यदि इन घटकों पर सूर्य तथा मंगल जैसे क्षत्रिय ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का जन्म क्षत्रिय कुल में होता है| यदि अधिकांश पर बुध तथा चन्द्र जैसे वैश्य ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य का जन्म वैश्य कुल में होता है| यदि अधिकांश पर शनि का प्रभाव हो तो शुद्र कुल में जन्म होता है| यदि अधिकांश घटकों पर राहु-केतु का प्रभाव हो तो मनुष्य का जन्म गैर हिन्दू जातियों में होने की संभावना होती है|
  • आयु- प्रथम भाव का मनुष्य की आयु से भी घनिष्ठ संबंध है| जब लग्न, लग्नेश के साथ-साथ चन्द्र, सूर्य, शनि, तृतीय तथा अष्टम भाव व इनके स्वामी बली हों तो मनुष्य की आयु में वृद्धि होती है और उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है| इसके विपरीत यदि इन पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो अथवा यह घटक कमजोर हों तो व्यक्ति की अल्पायु होती है|
  • आजीविका- इसका विचार दशम भाव के अतिरिक्त लग्न से भी किया जाता है| कारण यह है कि लग्न मनुष्य का सर्वस्व है, वह धन है और धन कमाने वाला भी है| इसलिए सुदर्शन पद्दति के अनुसार लग्न, लग्नेश, चन्द्र, सूर्य और इनके अधिपति ग्रहों पर जिन-जिन ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा हो तो मनुष्य की आजीविका उसी ग्रह से संबंधित होती है|
  • लग्नाधियोग- यदि प्रथम भाव के अतिरिक्त द्वितीय तथा द्वादश भाव पर भी शुभ ग्रहों का युति अथवा दृष्टि द्वारा प्रभाव हो तो लग्नाधियोग का निर्माण होता है| क्योंकि इस अवस्था में शुभ ग्रहों का प्रभाव लग्न और उससे द्वितीय तथा द्वादश भाव पर भी पड़ता है| अतः लग्न बली हो जाता है और व्यक्ति को जीवन में धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है|
  • मान-सम्मान- यदि लग्न, लग्नेश, चन्द्र, सूर्य, दशम भाव तथा इनके अधिपति बली अवस्था में हों तो मनुष्य को जीवन में बहुत मान-सम्मान की प्राप्ति होती है| क्योंकि प्रथम भाव मनुष्य के मान-सम्मान, गौरव, यश तथा कीर्ति का प्रतीक है|
  • राज्य से अधिकार प्राप्ति- यदि लग्न लग्नेश, चन्द्र, सूर्य, दशम भाव तथा इनके अधिपतियों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य अत्यंत बलवान, सत्ताधारी, उच्च अधिकारी, तथा राज्य कृपा प्राप्त व्यक्ति होता है| क्योंकि लग्न, लग्नेश का बली होना मनुष्य को सम्मान, सता, शक्ति तथा राज्य कृपा प्रदान करता है|
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