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प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत का परिचय– प्रदोष व्रत एक सर्वकार्य सिद्धि व पापनाशक व्रत है| प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी तिथि को यह व्रत किया जाता है| प्रदोष का सामान्य अर्थ रात का शुभारंभ माना जाता है अर्थात जब सूर्यास्त हो चुकने के बाद संध्याकाल आता है, तो रात्रि के प्रारंभ होने के पूर्व काल को प्रदोषकाल कहते हैं| यानी सूर्यास्त और रात्रि के संधिकाल को प्रदोषकाल माना जाता है| इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों ही समान रूप से कर सकते हैं, क्योंकि यह व्रत दोनों वर्गों के लिए समान रूप से पूर्ण फलदायी है| लेकिन यह व्रत स्त्रियाँ ही अधिक करती हैं|

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प्रदोष व्रत के प्रकार– त्रयोदशी तिथि के दिन जो वार पड़ता है, उसी के नाम पर प्रदोष का नामकरण किया जाता है, अतः वारों के अनुसार सात प्रदोष माने गए हैं| इनके व्रत फल भी अपनी अलग-अलग विशेषताएं लिए हुए हैं, प्रदोष के भेद व प्रत्येक प्रदोष व्रत की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • रवि प्रदोष- त्रयोदशी तिथि के दिन रविवार आने पर मनाया जाता है| हर प्रकार की सुख-समृधि, आजीवन आरोग्यता और दीर्घायु के लिए|
  • सोम प्रदोष- त्रयोदशी तिथि के दिन सोमवार आने पर मनाया जाता है| सर्व मनोकामनाओं की पूर्ति एवं अभीष्ट फलों की प्राप्ति के लिए|
  • मंगल प्रदोष- त्रयोदशी तिथि के दिन मंगलवार आने पर मनाया जाता है| पाप मुक्ति, उत्तम स्वास्थ्य व रोगों को कम करने के लिए|
  • बुध प्रदोष- त्रयोदशी तिथि के दिन बुधवार आने पर मनाया जाता है| सभी प्रकार की कामना सिद्धि और कष्टों को दूर करने के लिए|
  • गुरु प्रदोष- त्रयोदशी तिथि के दिन गुरुवार आने पर मनाया जाता है| शत्रु विनाश तथा प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्ति के लिए|
  • शुक्र प्रदोष- त्रयोदशी तिथि के दिन शुक्रवार आने पर मनाया जाता है| स्त्री के सौभाग्य, समृधि व कल्याण के लिए|
  • शनि प्रदोष- त्रयोदशी तिथि के दिन शनिवार आने पर मनाया जाता है| निर्धनता दूर करके समृधि एवं पुत्र प्राप्ति के लिए|
  • प्रदोष व्रत पूजन विधि– प्रदोष व्रत में पूजा करने की विधि इस प्रकार है-

  • यह व्रत प्रत्येक मास की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है|
  • व्रत वाले दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें|
  • इस व्रत के मुख्य देवता भगवान शिव हैं इसलिए प्रातः भगवान शंकर व माँ पार्वती का ध्यान पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से करें|
  • दिन भर निराहार संध्याकाल में पुनः स्नान करके स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण करें|
  • किसी शिव मंदिर अथवा निवास के पूजास्थल में ही पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि अथवा सामान्य विधि से भगवान शंकर का अभिषेक करें|
  • पूजन में भगवान शिव को चन्दन, बिल्वपत्र, आर्क पुष्प, धतूरा, नागकेशर व ऋतुफल फल अर्पित करें|
  • रुद्राक्ष माला से भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” की एक अथवा 17 माला का यथाशक्ति जाप करें|
  • मंत्र जाप के बाद अंत में कथा का श्रवण अथवा पाठ करके आरती करें|
  • इस दिन यदि हो सके तो किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा व अन्य सामग्री का दान करें|
  • इस व्रत में भोजन करना वर्जित है|
  • परंतु संध्याकाल में पूजन के बाद आप एक बार सात्विक भोजन अथवा फलाहार कर सकते हैं|
  • यदि आप किसी विशेष कार्य की सिद्धि करना चाहते हैं तो इस दिन संकल्प लेकर दिनभर निर्जला व्रत करके भगवान शिव का पूजन कार्य से प्रत्येक मनोकामना की शीघ्र पूर्ति हो जाती है|
  • प्रदोष व्रत से जुड़ी कथा– प्रदोष व्रत से संबंधित एक कथा का उल्लेख स्कन्द पुराण में इस प्रकार है-

    प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी विधवा हो गई| वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन निर्वाह करने लगी| वह प्रातःकाल अपने पुत्र को लेकर घर से निकलती और सांयकाल घर लौटती| एक दिन उसकी भेंट विदर्भ देश के राजकुमार से हुई| राजकुमार अपने पिता की मृत्यु हो जाने के शोक में मारा-मारा घूम रहा था| उसकी दशा देखकर ब्राह्मणी को बड़ी दया आई| वह उसे अपने साथ घर ले आई| उसने राजकुमार को अपने पुत्र के समान पाला| एक दिन वह ब्राह्मणी दोनों बालकों को लेकर शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई| ऋषि से भगवान शंकर के पूजन की विधि जानकार वह प्रदोष व्रत करने लगी|

    एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे| उन्होंने वहाँ गंधर्व-कन्याओं को क्रीडा करते देखा| उन्हें देखकर ब्राह्मण कुमार तो घर लौट आया किंतु राजकुमार “अंशुमती” नामक गंधर्व-कन्या से बात करने में लग गया| वह देर से घर लौटा| दूसरे दिन भी वह उसी स्थान पर पहुँच गया| अंशुमती वहां अपने माता-पिता के साथ बैठी हुई थी| माता-पिता ने उससे कहा कि हम भगवान शंकर की आज्ञा से अंशुमती का विवाह तुम्हारे साथ करेंगे| राजकुमार मान गया| विवाह हो गया| उसने गन्धर्वराज विद्रविक की विशाल सेना लेकर विदर्भ पर अधिकार कर लिया| राज्य प्राप्त कर वह अपनी माता स्वरुप उस ब्राह्मणी और भाई समान ब्राह्मण पुत्र को अपने साथ अपने राज्य लेकर आ गया| फिर वह सभी सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे| यह प्रदोष व्रत का ही फल था जो महर्षि शांडिल्य ने उस ब्राह्मणी को बताया था| ऐसा माना जाता है कि तब से ही प्रदोष व्रत करने की परंपरा चली है|

    प्रदोष व्रत का फल- प्रदोष व्रत का फल निम्नलिखित है-

  • शास्त्रों में कहा गया है कि रवि प्रदोष, सोम प्रदोष व शनि प्रदोष के व्रत को पूर्ण करने से अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है|
  • इस व्रत को करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलकर सहस्त्र गोदान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है|
  • सोम प्रदोष का व्रत भगवान शंकर की कृपा प्राप्त करने के साथ साथ विशेष पुण्य फलदायी माना गया है|
  • प्रदोष व्रत को करने से व्रती को भगवान शंकर की असीम अनुकंपा व आशीर्वाद प्राप्त होता है|
  • सर्वकार्य सिद्धि हेतु शास्त्रों में कहा गया है कि यदि कोई भी 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य और शीघ्रता से पूर्ण होती है|
  • शास्त्रानुसार समस्त प्रदोष व्रत धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष प्राप्ति के परम व प्रभावशाली साधन बताए गए हैं|
  • जो भी प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा-अर्चना एकाग्र चित होकर करता है, वह भौतिक जीवन में कार्यसिद्धि, ज्ञान, ऐश्वर्य, रोग मुक्ति तथा सुख भोग कर शिवलोक को प्राप्त होता है|
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