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नवम भाव

नवम भाव का परिचय

नवम भाव भाग्य, धर्म व यश का भाव होने के कारण किसी भी व्यक्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है| भाग्य पूर्व संचित कर्मों का परिणाम है| नवम भाव त्रिकोण स्थान कहलाता है| यह पंचम भाव से अधिक बलशाली होता है, अतः नवमेश, पंचमेश की अपेक्षा अधिक बलशाली माना जाता है| त्रिकोण भाव होने के साथ-साथ यह लक्ष्मी स्थान भी है इसलिए यह भाव अत्यंत शुभ है| इसका भावेश होने पर कोई भी ग्रह शुभफलदायी हो जाता है| फारसी में इस भाव को वेशखाने, नसीबखाने, बख्तखाने, परतमखाने कहते हैं| नवम स्थान पंचम भाव(पूर्व पुण्य) से पंचम है अतः यह भाव भी जातक के पूर्व पुण्यों से संबंधित है| नवम भाव गुरु स्थान भी कहलाता है क्योंकि यह गुरु का सूचक है| मनुष्य के जीवन में प्रथम गुरु उसका पिता होता है यही कारण है कि पिता का विचार भी नवम भाव से किया जाता है| श्रेष्ठ गुरु की प्राप्ति से व्यक्ति का भाग्योदय होता है इसलिए नवम भाव भाग्य स्थान भी कहलाता है|

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यदि कोई शुभ ग्रह केन्द्रेश होने के साथ-साथ नवमेश भी हो, तो उसका केन्द्राधिपत्य दोष नष्ट हो जाता है| इसी प्रकार कोई ग्रह त्रिकेश या त्रिषड्येश होने के साथ-साथ नवमेश भी हो, तो उसकी अशुभता में कमी आ जाती है| नवम भाव से भाग्य, धर्म, यश, प्रतिष्ठा, तीर्थयात्रा, गुरु, पिता, तपस्या, पुण्य, दान, भाग्योदय, उच्च शिक्षा, सदाचार, देवपूजा, सन्यास, देव मंदिर निर्माण, लंबी दूरी की यात्राएं, अंतर्ज्ञान, राजयोग, नितम्ब व जाँघों का विचार किया जाता है| सप्तम भाव(जीवनसाथी) से तृतीय(भ्राता) होने के कारण नवम स्थान साले, साली व देवर से संबंधित है| इस भाव के कारक ग्रह सूर्य तथा गुरु हैं|

नवम भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-

  • धार्मिक जीवन- जब लग्न या लग्नेश के साथ नवम भाव अथवा नवमेश का निकट संबंध हो तो मनुष्य के भाग्य और धर्म दोनों का उत्थान होता है| यदि चन्द्र तथा सूर्य से नवम भाव के स्वामी का संबंध चन्द्र व सूर्य अधिष्ठित राशियों के स्वामी से हो जाए तो मनुष्य का जीवन पूर्णतः धर्ममय हो जाता है| चाहे वह गृहस्थी हो या सन्यासी, ऐसा व्यक्ति ज्ञानियों में श्रेष्ठ जीवन वाला और मुक्ति प्राप्त करने वाला महात्मा होता है|
  • राज्यकृपा- नवम भाव को राज्यकृपा का भाव भी कहते हैं| यदि इस भाव का स्वामी राजकीय ग्रह सूर्य, चन्द्र अथवा गुरु हो और बलवान भी हो तो मनुष्य को राज्य(सरकार आदि) की ओर से विशेष कृपा प्राप्त होती है अर्थात वह व्यक्ति राज्य अधिकारी, उच्च पद पर आसीन सम्मानीय व्यक्ति होता है|
  • प्रभुकृपा- प्रभुकृपा का स्थान भी नवम भाव है| क्योंकि यह धर्म स्थान है और प्रभुकृपा के पात्र पुण्य कमाने वाले धार्मिक व्यक्ति ही हुआ करते हैं| इस भाव का स्वामी बलवान हो तथा शुभ ग्रहों से युक्त अथवा द्रष्ट होकर जिस शुभ भाव में स्थित हो जाता है, मनुष्य को अचानक प्रभुकृपा व दैवयोग से उसी भाव द्वारा निर्दिष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है| जैसे नवमेश बलवान होकर दशम भाव में हो तो राज्य प्राप्ति, चतुर्थ भाव में हो तो वाहन व घर की प्राप्ति, द्वितीय भाव में हो तो अचानक धन की प्राप्ति होती है|
  • राजयोग- पराशर ऋषि के अनुसार नवम भाव को कुंडली के सबसे शुभ भावों में से एक माना गया है| इस भाव के स्वामी का संबंध यदि दशम भाव व दशमेश के साथ हो तो मनुष्य अतीव भाग्यशाली, धनी, मानी तथा राजयोग भोगने वाला होता है| इसका कारण यह है कि दशम भाव केंद्र भावों में से सबसे प्रमुख तथा शक्तिशाली केंद्र है| यह एक विष्णु स्थान भी है| इसी प्रकार नवम भाव त्रिकोण भावों में सबसे प्रमुख व शक्तिशाली त्रिकोण है तथा यह एक लक्ष्मी स्थान है| क्योंकि भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रिय है इसलिए नवम भाव व नवमेश का संबंध दशम भाव तथा दशमेश से होना सर्वाधिक शुभ माना जाता है| इस प्रकार नवम व दशम भाव का परस्पर संबंध धर्मकर्माधिपति राजयोग को जन्म देता है|
  • कालपुरुष का नितम्ब व जांघ- नवम भाव का संबंध कालपुरुष के नितम्ब व जांघ से है| यदि नवम भाव, नवमेश, धनु राशि तथा गुरु पर पाप ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा हो तो मनुष्य के नितम्ब व जांघ में कष्ट व रोग होता है|
  • संतान प्राप्ति- नवम भाव पंचम स्थान(संतान भाव) से पंचम है अतः इसका संबंध भी संतान तथा संतानोत्पत्ति से है| यदि नवम भाव, नवमेश व गुरु बलवान हो तो मनुष्य को संतान की प्राप्ति अवश्य होती है| दूसरे शब्दों में कहें तो यह भाव संतान के मामले में पंचम भाव का सहायक भाव है|
  • भाग्य- नवम स्थान, पंचम भाव(पूर्व पुण्य) से पंचम है| पूर्व पुण्यों का विचार पंचम भाव से किया जाता है परंतु मनुष्य उन पूर्व पुण्यों को अच्छे रूप में भोगेगा अथवा बुरे रूप में इसका विचार नवम भाव से किया जाता है क्योंकि पूर्व जन्म के अच्छे या बुरे पूर्व पुण्यों का लेखा-जोखा ही भाग्य है और भाग्य का विचार नवम भाव से किया जाता है|
  • गुरु- जीवन को सफल बनाने हेतु आवश्यक मार्ग दर्शक गुरु है| नवम भाव गुरु स्थान है क्योंकि उसी के मार्गदर्शन से व्यक्ति सत्कर्मों द्वारा सतमार्ग पर चलकर अपने जीवन को सफल बना सकता है|
  • पिता- मनुष्य का पिता ही उसके आरंभिक जीवन में उसका मार्गदर्शन करता है| इसलिए पिता ही व्यक्ति के जीवन का वास्तविक एवं प्रथम गुरु है| यही कारण है कि नवम भाव पिता से संबंधित है|
  • देवालय निर्माण- क्योंकि नवम भाव धर्म से संबंधित है इसलिए यह देवालय व मंदिरों से भी जुड़ा हुआ है| गुरु मंदिर का कारक ग्रह है| यदि नवमेश लग्न व लग्नेश से संबंधित हो और गुरु ग्रह भी इस योग से संबंध बनाए तो व्यक्ति देवालयों व मंदिरों का निर्माण करवाता है|
  • दीर्घ यात्राएं-नवम भाव का संबंध लंबी दूरी की यात्राओं से है| तृतीय भाव छोटी यात्राओं से जुड़ा हुआ है| नवम भाव तृतीय भाव का ठीक विपरीत भाव है यानी ये तृतीय भाव से सप्तम है इसलिए उसका पूरक भाव है और व्यक्ति द्वारा की जाने वाली लंबी यात्राओं का सूचक है
  • धार्मिक व विदेश यात्रा- क्योंकि नवम भाव का संबंध लंबी दूरी की यात्राओं से है इसलिए यह विदेश यात्राओं का प्रतीक भी है| यदि तृतीय व द्वादश भाव का संबंध नवम स्थान से हो तो व्यक्ति अपने निवास से दूर यात्राएं कर सकता है| नवम स्थान धर्म का सूचक भी है अतः यह धार्मिक यात्राओं को भी दर्शाता है|
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