विष्णु सभी हिंदू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण देवता हैं क्योंकि वे ब्रह्मांड के संरक्षक की भूमिका निभाते हैं। ब्रह्मांड को संरक्षित करने, ब्रह्मांड में होने वाली घटनाओं की देखभाल करने और अंततः संतुलन के लिए खतरा पैदा करने वाली किसी भी चीज को विफल करने का कार्य भगवान विष्णु के हाथों में ही होता है। ब्रह्मांड में विष्णु की मौजूदगी और उत्पत्ति सदियों से प्रमुख बहस का विषय है। ऐसे कई सिद्धांत मौजूद हैं जो विष्णु के अस्तित्व में आने के बारे में विभिन्न संभावनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रस्तुत करते हैं। सबसे लोकप्रिय कहानी विष्णु पुराण में देखने को मिलती है जो दावा करती है कि विष्णु हमेशा ब्रह्मांड में मौजूद रहे हैं। हालांकि, ऐसी कई अन्य कहानियां भी मौजूद हैं जिन्हें शैववाद और शक्तिवाद जैसे अन्य संप्रदायों द्वारा माना जाता है जहां संबंधित सर्वोच्च देवताओं ने विष्णु को बनाया था। आइए यहां हिंदू पौराणिक कथाओं के विभिन्न हिस्सों से संबंधित कुछ प्रमुख कहानियां बताई गई जो बताती हैं कि विष्णु कैसे अस्तित्व में आए।

विष्णु पुराण के अनुसार विष्णु का जन्म नहीं हुआ बल्कि वे एकमात्र निरंतर शक्ति है जो अनंत काल से अस्तित्व में है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु प्रलय के बाद भी मौजूद थे और उन्होंने ब्रह्मांड, ब्रह्मा और शिव को पुनः अस्तित्व प्रदान किया। चूंकि विष्णु ब्रह्मांड के संरक्षक हैं इसलिए ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने शेष सभी सृष्टि की सुविधा के लिए ब्रह्मा की रचना की, और फिर शिव को अराजकता के विनाशक के रूप में बनाया। माना जाता है कि इस प्रक्रिया में उनके साथ माता लक्ष्मी भी होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसरा विष्णु ने ब्रह्मा को अपने पेट से और शिव को उनके माथे से बनाया था। इसी क्रम में विष्णु ने लक्ष्मी को अपने बाएं हाथ से बनाया था। चूंकि वैष्णववाद संप्रदाय भगवान विष्णु के आसपास केंद्रित है, और चूंकि विष्णु ही इस विश्वास प्रणाली में एकमात्र शाश्वत ईष्वर है, इसलिए विष्णु की यह मूल कहानी शेष त्रिमूर्ति और लक्ष्मी के निर्माण की कहानी से अधिक विस्तृत मानी गई है।
शैव संप्रदाय या शिव पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के जन्म या उत्पत्ति के कारण देव आदि देव महादेव शिव है। षिव पुराण की पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव द्वारा ब्रह्मांड की रचना के साथ ही सृष्टि को आगे बढ़ाने और शून्य से संसार के विस्तार की ललक जागी महादेव शिव ने विचार माता आदि शक्ति के समक्ष अपने विचार प्रकट किये। जगत जननी माता पार्वती ने कहा प्रभु आपको अपने विचारों में संषय कैसा? आपके प्रत्येक विचार इस चिर ब्रह्ांड के भले और उत्थान के लिए ही होते हैं। माता आदि शक्ति के विचारों को जान भगवान महाषिव ने अमृत स्पर्ष के साथ अपने वामअंग छूआ और एक प्रकाषमान रोषन के साथ पूरे संसार का अंधकार दूर हो गया। भगवान आदिषंकर के समक्ष कमल नयन, चार भुजा वाले और कौस्तुभ मणि से सुशोभित एक अद्वतीय पुरूष खड़े थे। महाषिव ने समक्ष में खड़े तेजस्वी आभा से सुषोभित आलौकिक पुरूष की सर्वव्यप्तता को देखते हुए उन्हे विष्णु नाम प्रदान किया।
भक्त भगवान विष्णु के जन्म से जुड़ी विष्णु पुराण और शिवपुराण दोनों की ही कथाओं को सत्य मानते हैं। दरअसल इन पौराणिक कथाओं के मत भिन्न होने के बावजूद भी ये दोनों ही कथाएं सर्वव्यापी और शाश्वत मानी गई हैं। इन अलग-अलग कथाओं के पीछे सनातन धर्म के दो बेहद महत्वपूर्ण संप्रदायों को मानने वाले भक्तों की मान्यताएं है। वैष्णव संप्रदाय का पालन करने वाले भक्तों के लिए विष्णु पुराण में उल्लेखित भगवान विष्णु के जन्म की कथा अधिक महत्व रखती हैं वहीं शैव संप्रदाय में विश्वास रखने वाले भक्तों के लिए शिव पुराण में उल्लेखित कथा अधिक महत्वपूर्ण और शाश्वत मानी जाती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के आधार पर, भगवान विष्णु के दस माने जाते है, जो इस प्रकार हैं मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन, नरसिंह, परशुराम, बलराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण और आने वाले समय में कल्कि। दुनिया में प्रकट होने वाले इन अवतारों में से प्रत्येक अवतार के अलग-अलग इरादे और उद्देश्य रहे। मान्यता यह है कि जिस समय मानवता पर बुराई का प्रभाव बढ़ने लगता है, तब भगवान विष्णु अपने अवतार के माध्यम से धर्म की रक्षा के लिए दुनिया में प्रकट होते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के पहले तीन अवतार सत्य युग में उत्पन्न हुए थे जो मत्स्य, कूर्म और वराह में उत्पन्न हुए थे। वहीं अगले तीन अवतार वामन, नरसिंह और परशुराम त्रेता युग में प्रकट हुए थे। अगले दो अवतार द्वापर युग में प्रकट हुए हैं। भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि हैं जो कलियुग के अंत में प्रकट होंगे।
भगवान विष्णु का रंग या आभा नीलवर्ण या नीली है। भगवान विष्णु की यह अद्भुत आभा आकाश के रंग, उसके आलौकिक आयामों, बिजली, बारिश और प्रकृति के साथ उनके संबंधों को दर्शाता है। भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र में उन्हे एक चेहरे और चार भुजाओं के साथ दर्षाया जाता रहा है। भगवान विष्णु की दो मुद्राएं प्रमुख रूप से देखने को मिलती है एक खड़ी और दूसरी आराम करने वाली। वह प्रसिद्ध कौस्तुभ रत्न से बना एक हार पहनते हैं जो उसकी बाईं छाती पर टिका होता है उनके गले में वैजयंती नाम से फूलों और रत्नों की अन्यत्र मालाएं होती है। उनकी चार भुजाओं में क्रमशः शंख, चक्र, गदा और कमल हैं।