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महालय पक्ष 2025 – दिन-प्रतिदिन पितृ तिथि विवरण

महालय पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं, हिन्दू पंचांग के अनुसार वह पवित्र काल होता है जब पितृगण पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए तर्पण और श्राद्ध को ग्रहण करते हैं। यह पक्ष पूर्णिमा के बाद भाद्रपद शुक्ल से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक चलता है। वर्ष 2025 में महालय पक्ष की शुरुआत बुधवार, 3 सितंबर से होगी और समापन बुधवार, 17 सितंबर को महालय अमावस्या (सर्वपितृ श्राद्ध) पर होगा। इन 15 दिनों में हर दिन किसी विशिष्ट तिथि को दिवंगत हुए पितरों का श्राद्ध किया जाता है।

 

महालय पक्ष 2025 – दिनवार श्राद्ध तिथि सूची

1. प्रतिपदा श्राद्ध – 3 सितंबर (बुधवार)

उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि को हुई हो।

विशेषकर छोटे भाई-बहन या किसी कन्या का श्राद्ध इस दिन होता है।

 

2. द्वितीया श्राद्ध – 4 सितंबर (गुरुवार)

द्वितीया को जिन पितरों की मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध किया जाता है।

साथ ही सौतेले या ममेरे-चचेरे रिश्ते वाले पितरों का भी इस दिन तर्पण होता है।

 

3. तृतीया श्राद्ध – 5 सितंबर (शुक्रवार)

इस दिन उन पितरों का श्राद्ध जो बहन, भाभी, ताई, बुआ जैसी स्त्रियाँ रही हों।

 

4. चतुर्थी श्राद्ध – 6 सितंबर (शनिवार)

उन बालकों या युवाओं का श्राद्ध जिनकी मृत्यु अविवाहित अवस्था में हुई।

 

5. पंचमी श्राद्ध – 7 सितंबर (रविवार)

विशेष रूप से मातृश्राद्ध के लिए माना गया दिन।

जिन माताओं, दादी, नानी आदि की मृत्यु पंचमी को हुई हो।

 

6. षष्ठी श्राद्ध – 8 सितंबर (सोमवार)

उन पितरों का श्राद्ध जिनका धार्मिक, तपस्वी या ब्राह्मणिक जीवन रहा हो।

 

7. सप्तमी श्राद्ध – 9 सितंबर (मंगलवार)

जिन माताओं, मौसियों या बहनों की मृत्यु सप्तमी को हुई हो, उनका तर्पण।

 

8. अष्टमी श्राद्ध – 10 सितंबर (बुधवार)

वीरगति को प्राप्त व्यक्ति, युद्ध या दुर्घटना में मरे लोगों का श्राद्ध।

 

9. नवमी श्राद्ध – 11 सितंबर (गुरुवार)

इस दिन स्त्रियों, विशेषकर जिनका पति जीवित हो, उनका श्राद्ध किया जाता है।

इसे और्वश्राद्ध भी कहा जाता है।

 

10. दशमी श्राद्ध – 12 सितंबर (शुक्रवार)

सामान्य पुरुषों का श्राद्ध जो दशमी को दिवंगत हुए हों।

 

11. एकादशी श्राद्ध – 13 सितंबर (शनिवार)

जिन व्यक्तियों ने योग, साधना, ब्रह्मचर्य जीवन जिया हो, उनका तर्पण।

इस दिन सन्यासी या त्यागी पितरों का भी स्मरण होता है।

 

12. द्वादशी श्राद्ध – 14 सितंबर (रविवार)

बाल ब्रह्मचारी, संतानहीन पुरुषों का श्राद्ध।

विशेष रूप से उन लोगों का जिनका वंश आगे नहीं चला।

 

13. त्रयोदशी श्राद्ध – 15 सितंबर (सोमवार)

बेकाल मृत्यु (अकस्मात, आत्महत्या या दुर्घटना) से मरे पितरों का श्राद्ध।

 

14. चतुर्दशी श्राद्ध – 16 सितंबर (मंगलवार)

इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जो हिंसक मृत्यु, जंगल, युद्ध या जलसमाधि में मरे हों।

इसे घातक श्राद्ध भी कहा जाता है।

 

15. महालय अमावस्या (सर्वपितृ श्राद्ध) – 17 सितंबर (बुधवार)

यह सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।

जिनको अपने पितरों की तिथि नहीं पता या विशेष कारणों से पूर्व दिन श्राद्ध नहीं कर सके दृ वे इसी दिन तर्पण कर सकते हैं।

इसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है, और मान्यता है कि इस दिन सभी पितृ आत्माएं संतुष्ट हो जाती हैं।

 

विशेष बातें ध्यान रखने योग्य

श्राद्ध हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके किया जाता है।

कुशा, तिल, जल और पिंड का प्रयोग पवित्र भाव से करें।

कौए को भोजन कराना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि उसे यमराज का वाहन और पितृगण का दूत माना गया है।

महालय पक्ष सिर्फ एक कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मा से आत्मा का जुड़ाव है। ये 15 दिन हमें हमारे अस्तित्व की जड़ों से जोड़ते हैं। हर दिन का अपना महत्व है और हर पितृ की आत्मा अपनी पहचान के अनुसार तर्पण और श्रद्धा चाहती है। जो पितरों को भुला देता है, उसकी पीढ़ियाँ कमजोर होती जाती हैं। और जो पितरों को स्मरण करता है, वह वंश में पुण्य और प्रगति की ऊर्जा बहा देता है।

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