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क्यों मनाई जाती है नवरात्रि

नवरात्रि का महत्व-

नवरात्रि शब्‍द संस्‍कृत भाषा के दो शब्‍दों ‘नव’ व ‘रात्रि’ से मिलकर बना है। भारतीय संस्‍कृति के अनुसार “दुर्गा” शब्द  का अर्थ जीवन से दुखों को मिटाने वाली यानि दुर्गति का शमन करने वाली देवी से है। नवरात्रि, मां दुर्गा को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। इसे समस्त भारतवर्ष में अत्‍यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ दिव्‍य रूपों की पूजा-अर्चना व आराधना की जाती है। भारतीय संस्‍कृति में शक्ति की उपासना माँ दुर्गा के रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि संपूर्ण संसार की उत्पति का मूल कारण शक्ति ही है जिसका सृजन ब्रह्मा, विष्‍णु, महेश अर्थात त्रिदेवों ने मिलकर किया था। इसलिए वास्‍तव में देवी दुर्गा में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्‍णु, महेश) की शक्तियाँ समाहित हैं। यही कारण है कि  नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की आराधना तथा पूजा-पाठ करने से ब्रह्मा, विष्‍णु व महेश यानि त्रिदेवों की पूजा एक साथ हो जाती है। इस दौरान कन्या पूजन करने का भी विशेष महत्व है।

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  • नवरात्रि शब्‍द से नौ विशेष रात्रियों का बोध होता है। इन रात्रियों को सिद्ध रात्रियों के रूप में भी देखा जाता है क्‍योंकि भारतीय तंत्र शास्‍त्र में “रात्रि” सिद्धि की प्रतीक मानी गई है। मान्‍यता है कि इन विशेष नौ रात्रियों में तंत्र-मंत्र संबंधी साधना व अन्य धार्मिक अनुष्ठान करने पर अन्‍य दिनों की तुलना में शीघ्र सिद्धियाँ प्राप्‍त हो जाती हैं। इसलिए नवरात्रि की ये अवधि तंत्र-मंत्र साधना तथा अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी विशेष उपयोगी व शक्तिशाली मानी गई है।
  • नवरात्रि के प्रथम तीन दिनों के समूह को माँ दुर्गा को समर्पित किया गया हैं जो कि शक्ति और ऊर्जा से संबंधित  देवी हैं। ऐसा माना जाता है कि इन तीन दिनों में माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य को असीम शक्ति व उर्जा की प्राप्ति होती है। जिसकी मदद से वह अपने जीवन में मनचाहे कार्यों में सफलता प्राप्‍त कर सकता है।
  • नवरात्रि के दूसरे तीन दिनों के समूह को देवी लक्ष्‍मी को समर्पित किया गया है जो कि धन और समृद्धि की देवी है। मान्‍यता है कि  इन तीन दिनों में माँ लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से घर में कभी भी धन व समृद्धि की कमी नहीं होती तथा मनुष्य के सभी आर्थिक संकट दूर होते हैं।
  • नवरात्रि के अंतिम तीन दिनों के समूह को देवी सरस्‍वती को समर्पित किया गया है और ऐसा माना जाता है कि इन तीन दिनों में माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना करने से भौतिक व अध्‍यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है, जो कि जीवन काे उचित दिशा में ले जाने के लिए आवश्यक है।
  • नवरात्रि के अंतिम तीन दिन माँ सरस्‍वती को इसीलिए समर्पित किए गए हैं ताकि पहले तीन दिनों में प्राप्‍त होने वाली उर्जा व शक्ति तथा दूसरे तीन दिनों में प्राप्‍त होने वाली समृद्धि व धन को न्‍यायपूर्ण तरीके से केवल ज्ञान के माध्यम से ही नियंत्रण में रखा जा सकता है और यह ज्ञान मनुष्य को माँ सरस्वती की कृपा से ही प्राप्त होता है क्योंकि हिन्‍दु धर्म के अनुसार माँ सरस्‍वती, ज्ञान व बुद्धि प्रदाता देवी हैं।

आख़िर कब से मनाया जाने लगा नवरात्रि का पर्व?

ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम भगवान श्रीराम ने इस नवरात्रि पूजा को आरंभ किया था ताकि वे लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्‍त कर सकें। नवरात्रि पर्व मनाने के पीछे कुछ पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनका विवरण इस प्रकार है:-

नवरात्रि से संबंधित कुछ कथाएँ-

प्राचीन धर्मग्रंथों के अनुसार लंका युद्ध के दौरान ब्रह्माजी ने भगवान श्रीराम से रावण का वध करने के लिए दुर्गा देवी का पूजन करके उन्हें प्रसन्न करने को कहा। ब्रह्माजी ने भगवान राम की सहायता करने के उद्देश्य से चंडी पूजन और हवन हेतु अनोखे 108 नीलकमल की व्यवस्था भी करवा दी। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए माँ दुर्गा का चंडी पाठ शुरू कर दिया था।  इन्द्रदेव ने पवन के माध्यम से यह बात श्रीराम तक पहुँचा दी कि रावण भी अपनी विजय हेतु चंडी पाठ कर रहा है।

रावण ने अपनी मायावी विद्या के द्वारा भगवान राम के पूजास्थल पर रखी सामग्री में से एक नीलकमल ग़ायब करवा दिया जिससे श्रीराम की पूजा बाधित हो जाए। भगवान राम को जब अपना यह संकल्प टूटता नज़र आया तो सभी में इस बात का भय व्याप्त हो गया कि कहीं माँ दुर्गा क्रोधित न हो जाएँ। तभी श्रीराम को याद आया कि उन्हें कमल नयन नवकंज लोचन भी कहते हैं तो क्यों न उस नीलकमल की पूर्ति हेतु वह अपना एक नेत्र देवी की पूजा में समर्पित कर दें। भगवान श्रीराम ने जैसे ही एक तीर के द्वारा अपने नेत्र को निकालना चाहा तभी माँ दुर्गा प्रकट हुईं वह भगवान राम के इस त्याग से प्रसन्न थी और उन्होंने श्रीराम को रावण के विरुद्ध युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान किया।

वही दूसरी ओर रावण की पूजा भंग करने के उद्देश्य से हनुमान जी एक ब्राह्मण बालक का रूप धारण करके उसके पूजास्थल पर पहुँच गए तथा पूजा कर रहे ब्राह्मणों के द्वारा उन्होंने एक श्लोक जयादेवी भूर्तिहरिणी में हरिणी के स्थान पर करिणी उच्चारित करवा दिया। हरिणी का मतलब होता है “भक्त की पीड़ा हरने वाली” और करिणी का अर्थ होता है “पीड़ा देने वाली”। मंत्र का गलत उच्चारण देखकर माँ दुर्गा रावण की पूजा से कुपित हो गई और उन्होंने रावण को श्राप दिया जिससे रावण का सर्वनाश हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार दानव महिषासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं ने उसे अजेय व अमर रहने का वरदान दिया। उस वरदान को प्राप्त करने के बाद महिषासुर का अहंकार जाग गया और उसने अपनी शक्तियों का  दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। महिषासुर ने सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण और अन्य देवताओं के भी समस्त अधिकार छीन लिए और स्वयं स्वर्गलोक का स्वामी बन बैठा।

विवश होकर देवताओं को महिषासुर के भय से पृथ्वी पर शरण लेनी पड़ी। तब महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर सभी देवताओं ने माँ दुर्गा की स्तुति की जिससे देवी प्रकट हुई। महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित किए और वह अधिक बलवान हो गईं। नौ दिनों तक उनका महिषासुर से युद्ध चला था और अन्त में महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा महिषासुर मर्दिनी के नाम से प्रसिद्द हुई। मान्‍यता है कि नौ दिनों तक चले इस युद्ध से प्रेरित होकर मनुष्यों द्वारा नवरात्रि पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई ताकि वे भी देवी के इन विशिष्ट नौ दिनों में उनकी पूजा-अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें और अपने अंदर स्थित महिषासुर रुपी बुराईयों का अंत कर सकें।

आप सभी को एस्ट्रोवेद की तरफ से नवरात्रि की ढेरों शुभकामनाएँ!

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