नवरात्रि शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों ‘नव’ व ‘रात्रि’ से मिलकर बना है। भारतीय संस्कृति के अनुसार “दुर्गा” शब्द का अर्थ जीवन से दुखों को मिटाने वाली यानि दुर्गति का शमन करने वाली देवी से है। नवरात्रि, मां दुर्गा को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। इसे समस्त भारतवर्ष में अत्यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के नौ दिव्य रूपों की पूजा-अर्चना व आराधना की जाती है। भारतीय संस्कृति में शक्ति की उपासना माँ दुर्गा के रूप में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि संपूर्ण संसार की उत्पति का मूल कारण शक्ति ही है जिसका सृजन ब्रह्मा, विष्णु, महेश अर्थात त्रिदेवों ने मिलकर किया था। इसलिए वास्तव में देवी दुर्गा में त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की शक्तियाँ समाहित हैं। यही कारण है कि नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की आराधना तथा पूजा-पाठ करने से ब्रह्मा, विष्णु व महेश यानि त्रिदेवों की पूजा एक साथ हो जाती है। इस दौरान कन्या पूजन करने का भी विशेष महत्व है।
ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम भगवान श्रीराम ने इस नवरात्रि पूजा को आरंभ किया था ताकि वे लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त कर सकें। नवरात्रि पर्व मनाने के पीछे कुछ पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनका विवरण इस प्रकार है:-
प्राचीन धर्मग्रंथों के अनुसार लंका युद्ध के दौरान ब्रह्माजी ने भगवान श्रीराम से रावण का वध करने के लिए दुर्गा देवी का पूजन करके उन्हें प्रसन्न करने को कहा। ब्रह्माजी ने भगवान राम की सहायता करने के उद्देश्य से चंडी पूजन और हवन हेतु अनोखे 108 नीलकमल की व्यवस्था भी करवा दी। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए माँ दुर्गा का चंडी पाठ शुरू कर दिया था। इन्द्रदेव ने पवन के माध्यम से यह बात श्रीराम तक पहुँचा दी कि रावण भी अपनी विजय हेतु चंडी पाठ कर रहा है।
रावण ने अपनी मायावी विद्या के द्वारा भगवान राम के पूजास्थल पर रखी सामग्री में से एक नीलकमल ग़ायब करवा दिया जिससे श्रीराम की पूजा बाधित हो जाए। भगवान राम को जब अपना यह संकल्प टूटता नज़र आया तो सभी में इस बात का भय व्याप्त हो गया कि कहीं माँ दुर्गा क्रोधित न हो जाएँ। तभी श्रीराम को याद आया कि उन्हें कमल नयन नवकंज लोचन भी कहते हैं तो क्यों न उस नीलकमल की पूर्ति हेतु वह अपना एक नेत्र देवी की पूजा में समर्पित कर दें। भगवान श्रीराम ने जैसे ही एक तीर के द्वारा अपने नेत्र को निकालना चाहा तभी माँ दुर्गा प्रकट हुईं वह भगवान राम के इस त्याग से प्रसन्न थी और उन्होंने श्रीराम को रावण के विरुद्ध युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान किया।
वही दूसरी ओर रावण की पूजा भंग करने के उद्देश्य से हनुमान जी एक ब्राह्मण बालक का रूप धारण करके उसके पूजास्थल पर पहुँच गए तथा पूजा कर रहे ब्राह्मणों के द्वारा उन्होंने एक श्लोक जयादेवी भूर्तिहरिणी में हरिणी के स्थान पर करिणी उच्चारित करवा दिया। हरिणी का मतलब होता है “भक्त की पीड़ा हरने वाली” और करिणी का अर्थ होता है “पीड़ा देने वाली”। मंत्र का गलत उच्चारण देखकर माँ दुर्गा रावण की पूजा से कुपित हो गई और उन्होंने रावण को श्राप दिया जिससे रावण का सर्वनाश हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार दानव महिषासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं ने उसे अजेय व अमर रहने का वरदान दिया। उस वरदान को प्राप्त करने के बाद महिषासुर का अहंकार जाग गया और उसने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। महिषासुर ने सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण और अन्य देवताओं के भी समस्त अधिकार छीन लिए और स्वयं स्वर्गलोक का स्वामी बन बैठा।
विवश होकर देवताओं को महिषासुर के भय से पृथ्वी पर शरण लेनी पड़ी। तब महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर सभी देवताओं ने माँ दुर्गा की स्तुति की जिससे देवी प्रकट हुई। महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित किए और वह अधिक बलवान हो गईं। नौ दिनों तक उनका महिषासुर से युद्ध चला था और अन्त में महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा महिषासुर मर्दिनी के नाम से प्रसिद्द हुई। मान्यता है कि नौ दिनों तक चले इस युद्ध से प्रेरित होकर मनुष्यों द्वारा नवरात्रि पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई ताकि वे भी देवी के इन विशिष्ट नौ दिनों में उनकी पूजा-अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें और अपने अंदर स्थित महिषासुर रुपी बुराईयों का अंत कर सकें।
आप सभी को एस्ट्रोवेद की तरफ से नवरात्रि की ढेरों शुभकामनाएँ!