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समय कम है तो कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें | Kunjika Stotram

कुंजिका का शाब्दिक अर्थ है “कुछ अतिवृद्धि या विकास या बढ़ती हुई चीज़ों से छिपी हुई चीज़।” सिद्ध का अर्थ है पूर्णता। स्तोत्र का अर्थ गीत है। पूर्णता का गीत। यह चंडी, नवावर्ण मंत्र, जीवन शक्ति का सार है|

श्री कुंजिका स्तोत्र का उल्लेख दुर्गा सप्तशती में मिलता है। श्री कुंजिका स्तोत्र, माता पार्वती को भगवान शिव ने समझाया था। भगवान शिव मानव कल्याण के लिए दुर्गा सप्तशती के मूल मंत्र का खुलासा करते हैं। श्री कुंजिका स्तोत्र देवी का सबसे शक्तिशाली और पसंदीदा स्तोत्र है। चंडी मार्ग / देवी महात्म्य के पाठ से पहले सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का जाप किया जाता है। भक्तों का मानना ​​है कि सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का सिर्फ एक पाठ पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर है और यह भी कि कुंजिका स्तोत्र को पढ़े बिना देवी महात्म्य का पाठ पूर्ण परिणाम नहीं देगा। यदि हम विश्वास, एकाग्रता और भक्ति के साथ हर दिन श्री कुंजिका स्तोत्र का जप करें तो देवी दुर्गा हमारी रक्षा करती हैं और सभी प्रकार की शक्तियां (सिद्धि) हमें प्राप्त होती हैं । कुंजिका स्तोत्र को पढ़ने मात्र से दुर्गा सप्तशती पढ़ने का लाभ मिल सकता है।

kunjika stotram

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। इस स्तोत्र का पाठ जीवन में आने वाले दुखों और विघ्नों को दूर करने वाला है। यदि आप किसी समस्या से जूझ रहे हैं और कोई रास्ता सूझ नहीं रहा हो तो इस स्तोत्र को जाप कीजिये| आप अपने जीवन में सामना करनेवाले समस्याओं को हल पाने और समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, कार्यक्षेत्र, विद्या, वैवाहिक समस्या से निवारण, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो मां दुर्गा के इस सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें। 
श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र प्रस्तुत है

शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥

अथ मंत्र:-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।”
॥ इति मंत्रः॥

“नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥2॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥5॥
धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

। इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।

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