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कृष्ण जन्माष्टमी 2025 – श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्व

कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे गोकुलाष्टमी या कृष्णाष्टमी भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की स्मृति में मनाया जाने वाला एक अत्यंत पावन पर्व है। यह दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में यह पर्व अत्यंत शुभ योगों के साथ मनाया जाएगा।

 कृष्ण जन्माष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

तारीख – शनिवार, 16 अगस्त 2025

अष्टमी तिथि प्रारंभ – 16 अगस्त, दोपहर 12ः41 बजे

अष्टमी तिथि समाप्त – 17 अगस्त, दोपहर 03ः19 बजे

निशिता पूजन मुहूर्त (मध्यरात्रि पूजा) – 16 अगस्त, रात 11ः56 बजे से 12ः41 बजे तक

यह दिन और रात्रि विशेष रूप से भक्तिभाव, व्रत, कीर्तन और श्रीकृष्ण लीला के रंग में रंगा रहता है।

 भगवान श्रीकृष्ण का जन्म – पौराणिक पृष्ठभूमि

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस की जेल में देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में हुआ था। उनके जन्म का उद्देश्य धरती पर अधर्म का नाश और धर्म की पुनः स्थापना करना था। कंस, जो कि देवकी का भाई था, को आकाशवाणी द्वारा यह चेतावनी दी गई थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा।

कृष्ण जन्म के बाद, वसुदेव उन्हें टोकरी में रखकर यमुना पार गोकुल ले गए और नंद बाबा व यशोदा को सौंप दिया। वहीं से भगवान की बाल लीलाएं शुरू हुईं जैसे – माखन चोरी, गोवर्धन पूजा, कालिया नाग वध, और रासलीलाएं।

 

धार्मिक महत्व

कृष्ण जन्माष्टमी केवल भगवान के जन्म की स्मृति नहीं है, बल्कि यह दिन भक्ति योग, कर्म योग और ज्ञान योग का भी प्रतीक है। श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से जीवन जीने की कला सिखाई कर्म करो, फल की चिंता मत करो।

यह पर्व यह भी सिखाता है कि जीवन में जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब श्रीकृष्ण जैसे अवतारों का प्राकट्य होगा।

 

पूजन विधि

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रत और पूजन का विशेष महत्व होता है। पूजा विधि इस प्रकार है।

प्रातः स्नान कर केशव व्रत का संकल्प लें।

दिन भर उपवास रखें (निर्जला या फलाहार)।

रात्रि में श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप को झूले में विराजमान करें।

पंचामृत से अभिषेक करें और वस्त्र, आभूषण, माखन-मिश्री अर्पित करें।

रात 12 बजे (निशिता काल) भगवान का जन्मोत्सव मनाएं।

मंत्र, भजन, आरती और झूला उत्सव करें।

अगली सुबह व्रत का पारण करें।

 

जन्माष्टमी के प्रमुख आयोजन

मथुरा, वृंदावन, गोकुल, और द्वारका में इस दिन भव्य झांकियाँ, रासलीला और संकीर्तन होते हैं।

इस्कॉन मंदिरों में विदेशी भक्त भी पूरी श्रद्धा से जन्माष्टमी मनाते हैं।

दही-हांडी उत्सव महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर भारत के कई हिस्सों में बड़े उल्लास से मनाया जाता है, जिसमें श्रीकृष्ण की माखन चोरी की लीला का जीवंत चित्रण किया जाता है।

 

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से जन्माष्टमी 2025

2025 की कृष्ण जन्माष्टमी शनिवार को पड़ रही है जो शनिदेव का दिन है और शनिदेव को भगवान श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त माना जाता है। साथ ही यह व्रत करने से पाप ग्रहों के दोष भी शांत होते हैं। इस दिन किया गया संकल्प विशेष रूप से फलदायी होता है।

 

जन्माष्टमी व्रत के लाभ

मनोकामनाओं की पूर्ति

बच्चों की रक्षा और सुखद भविष्य

विवाह, संतान और सुख-समृद्धि में वृद्धि

मन और चित्त की शुद्धि

आध्यात्मिक उन्नति और कर्म योग की समझ

 

कृष्ण जन्माष्टमी – आध्यात्मिक प्रेरणा

श्रीकृष्ण का जीवन हर युग के लिए मार्गदर्शक है, चाहे वह बाल लीलाएं हों या महाभारत का धर्म युद्ध, या फिर गीता उपदेश।

वे प्रेम के देवता हैं, नीति के ज्ञाता हैं और धर्म के रक्षक हैं। जन्माष्टमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मा के पुनर्जागरण का दिन है।

कृष्ण जन्माष्टमी 2025 का यह पर्व हमें श्रीकृष्ण की शिक्षाओं, भक्ति, और नीति से जोड़ता है। यह दिन हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, यदि हम सत्य, प्रेम और भक्ति के मार्ग पर हैं, तो भगवान हमारे साथ हैं।

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