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एकादश भाव

एकादश भाव का परिचय- एकादश स्थान ही वह स्थान है जिससे मनुष्य को जीवन में प्राप्त होने वाले सभी प्रकार के लाभ ज्ञात हो सकते हैं| इसलिए इसे लाभ स्थान भी कहा जाता है| एकादश भाव दशम स्थान(कर्म) से द्वितीय है| अतः कर्मों से प्राप्त होने वाले लाभ या आय एकादश भाव से देखे जाते हैं| मनुष्य को प्राप्त होने वाली प्राप्तियों के संबंध में एकादश भाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाव है| ये निज प्रयास या निजकर्मों द्वारा अर्जित व्यक्ति की उपलब्धियों की सूचना देता है फारसी में इस भाव को याप्ति खाने कहते हैं| यह भाव एक उपचय स्थान भी है| इस भाव की दिशा आग्नेय(South-East) है|

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भाव के रूप में एकादश स्थान को शुभ माना गया है| यह हमारे जीवन में वृद्धि का सूचक है| वैसे भी हिन्दू धर्म में 11 के अंक को शुभ व पवित्र माना जाता है| यही कारण है कि इस भाव में सभी ग्रह शुभ फलदायी माने गए हैं| मगर छठे भाव(रोग, शत्रु, चोट) से छठा होने के कारण के कारण इस भाव का स्वामी शारीरिक कष्ट भी प्रदान कर सकता है| इस भाव से आय, लाभ, वृद्धि, प्राप्ति, इच्छाओं की पूर्ति, बड़े भाई-बहन, पुत्रवधू या दामाद, चाचा, बुआ, मित्र, कामवासना, विशिष्ट सम्मान, कान, जांघ व कामवासना आदि का विचार किया जाता है| एकादश भाव चर लग्नों(1, 4, 7, 10) के लिए एक बाधक भाव भी माना जाता है। एकादश भाव में क्रूर(पाप) ग्रह विशेष शुभ फलदायी माने जाते हैं।

एकादश भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-

  • आय या लाभ- एकादश भाव व्यक्ति को मिलने वाले लाभ या उसकी आय का सूचक है| इस भाव में जिस भाव का स्वामी आकर बैठता है, उस भाव से प्राप्त होने वाली वस्तु की प्राप्ति व्यक्ति को होती है-
  • यदि इस भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति को राज्य व मान-सम्मान की प्राप्ति होती है|
  • यदि इस भाव में चन्द्र हो तो व्यक्ति को तरल पदार्थ, समुद्र, मोती, कृषि, जल आदि से लाभ होता है|
  • यदि मंगल इस भाव में हो तो व्यक्ति को साहस, निडरता, यंत्र, भूमि, अग्नि संबंधी कार्यों से लाभ मिलता है|
  • यदि बुध इस भाव में हो तो व्यक्ति को शिक्षण, लेखन व वाणी के द्वारा लाभ मिलता है|
  • यदि गुरु इस भाव में हो तो व्यक्ति को ज्ञान, साहित्य व धार्मिक गतिविधियों से लाभ प्राप्त होता है|
  • यदि शुक्र इस भाव में हो तो व्यक्ति को नाटक, नृत्य, संगीत, कला, सिनेमा, आभूषण आदि से लाभ मिलता है|
  • यदि शनि इस भाव में हो तो व्यक्ति को श्रम, कारखाने, कृषि, राजनीति, सन्यास व गूढ़ विद्याओं से लाभ मिलता है|
  • यदि, राहु-केतु इस भाव में हो तो सट्टे, लॉटरी, शेयर बाजार, तंत्र-मंत्र, गूढ़ ज्ञान आदि से लाभ मिलता है|
  • 2. प्राप्ति- एकादश भाव का संबंध प्राप्ति से है इसलिए किसी भी प्रकार की प्राप्ति का विचार इस भाव से किया जाता है|
    3. कीर्ति- दशम स्थान कर्म है और एकादश भाव दशम(कर्म) से द्वितीय(आय) है इसलिए यह व्यक्ति को मिलने वाली कीर्ति, यश व मान-सम्मान का प्रतीक है|
    4. बाहुल्य(plenty)– एकादश भाव बहुलतासे भी संबंधित है। जिस भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तो वह भाव तथा उसके स्वामी से संबंधित कारकत्वों में वृद्धि होती है, जैसे यदि पंचम भाव का स्वामी एकादश में हो तो मनुष्य की कई संताने होती हैं| इसी प्रकार द्वितीय भाव का स्वामी एकादश स्थान में हो तो मनुष्य के पास काफी रूपया-पैसा होता है|
    5. ज्येष्ठ भाई-बहन– एकादश स्थान से बड़े भाई-बहन का विचार भी किया जाता है। इस भाव पर शुभ या अशुभ ग्रहों का जैसा भी प्रभाव हो वैसे ही संबंध व्यक्ति के अपने बड़े भाई-बहन से होते हैं|
    6. शारीरिक कष्ट– एकादश भाव छठे भाव से छठा होने के कारण रोग को भी सूचित करता है। एकादश भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में मनुष्य को शारीरिक कष्ट हो सकता है|
    7. मित्र– मित्रों का विचार भी एकादश भाव से किया जाता है| व्यक्ति के मित्र किस प्रकार के होंगे तथा उनसे मनुष्य के संबंध कैसे रहेंगे आदि की जानकारी भी इसी भाव से प्राप्त होती है|
    8. बाधक स्थान– मेष, कर्क, तुला व मकर लग्नों (इन्हें चर लग्न भी कहते हैं।) के लिए एकादश भाव का स्वामी बाधकाधिपति होता है। अतः इन चर लग्नों में एकादशेश की दशा-अंतर्दशा में मनुष्य को बाधाओं व व्यवधानों का सामना करना पड़ सकता है|
    9. कामवासना– तृतीय, सप्तम तथा एकादश स्थान काम त्रिकोण माने जाते हैं अतः मनुष्य की कामवासना का विचार भी इस भाव से किया जाता है।
    10. आर्थिक स्थिति– द्वितीय भाव के साथ-साथ एकादश स्थान का भी मनुष्य की आर्थिक स्थिति से घनिष्ठ संबंध है। जब भी किसी जन्मकुंडली में द्वितीय भाव के साथ-साथ एकादश भाव मजबूत स्थिति में होता है तो व्यक्ति धनवान, यशस्वी तथा अनेक प्रकार की भौतिक सुख- सुविधाओं को भोगने वाला होता है।
    11. शारीरिक अंग– एकादश भाव मनुष्य की बाई भुजा, बांया कान तथा पैरों की पिंडलियों को दर्शाता है। जब भी इस भाव पर तथा इसके स्वामी पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है तो मनुष्य के बांये कान, बाई भुजा व पैर की पिंडलियों में कष्ट होता है।

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