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द्वितीय भाव

द्वितीय भाव का परिचय- कुडंली का द्वितीय भाव किसी भी व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है| इसे धन भाव भी कहा जाता है| इस भाव से धन-धान्य, संपति, कुटम्ब, वाणी, नेत्र, भोजन मुख, विद्या, संचित धन, स्वर्ण, रजत आदि मूल्यवान वस्तुएं, वाक्पटुता, गायन कला तथा सत्य-असत्य भाषण आदि का विचार किया जाता है| द्वितीय भाव के अन्य नाम “धन” तथा “पणफर” हैं| इस भाव की दिशा ईशान कोण है| फारसी में इस भाव को चश्मखाने, मालखाने व गमतौलिखाने कहते हैं| भावत भावम सिद्धांत के अनुसार तृतीय भाव आयु का होता है| द्वितीय भाव तृतीय भाव से द्वादश होने के कारण आयु की हानि करता है अर्थात एक मारक भाव भी है| इसी प्रकार सप्तम भाव से अष्टम होने के कारण जीवनसाथी की मृत्यु का विचार भी इसी भाव से किया जाता है| क्योंकि सप्तम भाव जीवनसाथी का होता है| इस भाव का कारक ग्रह गुरु माना गया है|

द्वितीय भाव से धन का विचार क्यों?- द्वितीय भाव से धन का विचार क्यों किया जाता है, इस संबंध में तर्क यह है कि जिस प्रकार प्रथम भाव(लग्न) से चौथा भाव शरीर के रहने का स्थान अर्थात मनुष्य के घर अथवा निवास का होता है| उसी तरह एकादश भाव आमदनी का भाव है और उससे चौथा भाव यानि द्वितीय भाव उस आमदनी को सुरक्षित रखने(बैंक) का घर है इसलिए द्वितीय भाव से धन का विचार किया जाता है|

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द्वितीय भाव से निम्नलिखित विषयों का विचार किया जाता है-

  • कुमार अवस्था(बाल्य अवस्था)– लग्न से जन्मकालीन बातों का विचार किया जाता है| इसी आधार पर प्रथम भाव(लग्न) के तुरंत बाद आने के कारण द्वितीय भाव मनुष्य की कुमार अवस्था को दर्शाता है| यानी व्यक्ति की बाल्य अवस्था से इस भाव का घनिष्ठ संबंध होता है| कुमार अवस्था की बातें, प्रारंभिक शिक्षा व संस्कार इन सबका विचार द्वितीय भाव से किया जाता है| यदि द्वितीय भाव तथा द्वितीयेश पर सूर्य, शनि, राहु जैसे पृथकताजनक ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति किशोर अवस्था में ही अपने माता-पिता अथवा कुटम्ब से अलग रहता है|
  • रूप-लावण्य– प्रथम भाव व्यक्ति के सिर का प्रतिनिधित्व करता है तो द्वितीय भाव मनुष्य के मुख, मुख की शोभा, बनावट, कुरूपता आदि को दर्शाता है| यदि द्वितीय भाव का स्वामी बुध अथवा शुक्र हो और यह बली होकर अन्य शुभ ग्रहों से संबंधित हों तो मनुष्य सुन्दर मुख व नेत्रों वाला, शोभनीय तथा दर्शनीय होता है|
  • वाणी– वाणी का प्रयोग मुख द्वारा ही किया जाता है क्योंकि द्वितीय भाव मुख का है| अतः मनुष्य की वाणी का भी इस भाव से घनिष्ठ संबंध है| यदि द्वितीय भाव, द्वितीयेश तथा वाणी का कारक ग्रह बुध पाप ग्रहों द्वारा पीड़ित हो तो व्यक्ति को गूंगा अथवा अस्पष्ट वाणी वाला हो सकता है| इसके विपरीत इन घटकों पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य की वाणी ओजस्वी तथा प्रखर होती है|
  • संगीत व गायन कला– द्वितीय भाव का संबंध मनुष्य की वाणी से है इसलिए इस भाव का संबंध गायन अथवा संगीत कला से भी है| यदि द्वितीय भाव, पंचम भाव इनके अधिपति तथा शुक्र इन सब में किसी प्रकार शुभ संबंध युति अथवा दृष्टि द्वारा स्थापित होता हो तो मनुष्य संगीत व गायन विद्या में दक्ष होता है अर्थात उच्च कोटि का संगीतज्ञ होता है|
  • नेत्र– द्वितीय भाव का संबंध मनुष्य के नेत्रों से भी है| इस भाव से विशेषतः दाएं नेत्र का विचार किया जाता है| द्वितीय भाव में सूर्य अथवा चंद्रमा स्थित होकर पाप ग्रहों से पीड़ित हों अथवा द्वितीय भाव व द्वितीयेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो मनुष्य को नेत्रों के रोग होते हैं अर्थात नेत्रों की समस्याएं होती हैं| |
  • सन्यास– द्वितीय भाव धन तथा कुटुंब दोनों का प्रतिनिधि है| एक सन्यासी को धन तथा कुटम्ब से अधिक लगाव नहीं होता है| इसलिए जब कुंडली में अन्य सन्यासप्रद योगों के साथ द्वितीय भाव तथा द्वितीयेश पर सूर्य, शनि, राहु तथा द्वादशेश(बाहरवें भाव का स्वामी) का प्रभाव हो तो मनुष्य धन तथा कुटुंब से पृथक हो जाता है| इन दो वस्तुओं का त्याग ही प्रायः सन्यास का मुख्य प्रतीक माना जाता है|
  • मारक भाव– तृतीय भाव अष्टम से अष्टम भाव होने के कारण आयु को दर्शाता है| उस तृतीय भाव से द्वादश स्थान अर्थात द्वितीय स्थान आयु के नाश अथवा हानि का प्रतीक है इसलिए द्वितीय भाव को मारक भाव तथा इसके स्वामी को मारकेश कहा जाता है| सप्तमेश व द्वादशेश के अलावा द्वितीयेश की दशा व्यक्ति के प्राण ले सकती है|
  • प्रारंभिक शिक्षा– द्वितीय भाव का मनुष्य की कुमार अथवा किशोर अवस्था से गहन संबंध है इसलिए किसी भी व्यक्ति की प्रारंभिक शिक्षा भी इसी भाव से देखी जाती है|
  • आर्थिक स्थिति– किसी भी मनुष्य की आर्थिक स्थिति का विचार एकादश भाव के अतिरिक्त द्वितीय भाव से भी किया जाता है| जब द्वितीय भाव, एकादश भाव इनके अधिपति तथा गुरु बली हों व्यक्ति धनवान होता है| इसके विपरीत अगर यह घटक कमज़ोर हो तो मनुष्य को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है|
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