दशम भाव कुंडली के केंद्र भावों में से एक केंद्र स्थान है| यह अन्य दो केन्द्रों(चतुर्थ तथा सप्तम भाव) से अधिक बली भाव है| इस भाव से मुख्य रूप से कर्म, व्यवसाय, व राज्य का विचार किया जाता है| इन विषयों के अतिरिक्त सम्मान, पद-प्राप्ति, आज्ञा, अधिकार, यश, ऐश्वर्य, कीर्ति, अवनति, अपयश, राजपद, राजकीय सम्मान, नेतृत्व, आदि का विचार भी इसी भाव से किया जाता है| नवम स्थान(पिता) से द्वितीय(धन तथा मारक) होने के कारण यह भाव पिता के धन को भी दर्शाता है तथा पिता के लिए एक मारक भाव है| सप्तम भाव(जीवनसाथी) से चतुर्थ(माता) होने के कारण यह भाव जीवनसाथी की माँ अर्थात सास का प्रतीक भी है| फारसी में इस भाव को शाहखाने, बादशाहखाने कहते हैं| यह एक उपचय(वृद्धिकारक) भाव भी है|
कुंडली में यह भाव मध्याहन(Mid Noon) अथवा दक्षिण दिशा का प्रतीक है| मध्याहन में सूर्य अधिकतम ऊँचाई पर होने के कारण सबसे अधिक शक्तिशाली होता है| यही कारण है कि दशम भाव में बैठा सूर्य बहुत बलवान व राजयोग कारक माना गया है| क्योंकि यह भाव ऊँचाई को दर्शाता है इसलिए जीवन में मनुष्य की उन्नति का विचार भी इसी भाव से किया जाता है| व्यक्ति के गौरव, आचरण, सफलता, आकांशा, उत्तरदायित्व का विचार भी दशम भाव से किया जाता है| यह एक शुभ केंद्र भाव है इसलिए जब शुभ ग्रह इस भाव का स्वामी बनता है तो उसे केन्द्राधिपत्य दोष लगता है| लग्न से दशम भाव होने के कारण यह भाव मनुष्य की गतिविधियों और उसके क्रियाकलापों को सर्वाधिक प्रभावित तथा नियंत्रित करता है| इस भाव के कारक ग्रह सूर्य, गुरु, बुध व शनि हैं|
दशम भाव में स्थित ग्रह व आजीविका- दशम भाव मनुष्य के कर्मों से जुड़ा स्थान है अतः व्यक्ति की आजीविका से इसका प्रत्यक्ष संबंध है|
दशम भाव व राजयोग- दशम भाव का संबंध राज्य व राजसत्ता से है अतः यदि दशम भाव, दशमेश आदि बली हों और इन पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो व्यक्ति प्रसिद्द, सम्मानित, राजपत्रित अधिकारी, व उच्च पद पर आसीन होता है| ख़ासतौर पर यदि नवम व दशम भाव तथा इनके स्वामियों का परस्पर एक-दूसरे से संबंध हो व्यक्ति अपने जीवन में विशेष उन्नति करता है|
मान-सम्मान- दशम भाव का संबंध मान-सम्मान तथा यश व कीर्ति से है इसलिए जब लग्न, लग्नेश, दशम भाव, दशमेश बलवान हो तो मनुष्य को समाज में बहुत मान-सम्मान, ख्याति व यश प्राप्त होता है|
पिता की आर्थिक स्थिति- नवम भाव पिता का माना गया है| दशम भाव नवम भाव(पिता) से द्वितीय(धन) है अतः यह पिता की आर्थिक स्थिति को भी दर्शाता है| जब दशम भाव व उसका स्वामी बली अवस्था में हो तो व्यक्ति का पिता धनी व सुदृढ़ आर्थिक स्थिति वाला होता है|
पिता का अरिष्ट- दशम भाव नवम स्थान(पिता) से द्वितीय(मारक भाव) है अतः यह भाव पिता के अरिष्ट का सूचक भी है| दशम भाव के स्वामी की दशा-अंतर्दशा में पिता को शारीरिक कष्ट हो सकता है|
जीवनसाथी की माता तथा घरेलू स्थिति- सप्तम भाव जीवनसाथी का होता है| चतुर्थ भाव का संबंध माता और निवासस्थान से होता है| दशम भाव सप्तम स्थान(जीवनसाथी) से चतुर्थ(माता, निवास) है इसलिए यह जीवनसाथी की माता और उसकी पारिवारिक स्थिति(घर के हालात) को दर्शाता है| यदि अष्टम भाव के साथ-साथ दशम भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो जीवनसाथी एक सभ्य व सम्माननीय परिवार से संबंध रखता है|
विशेष नोट- किसी भी कुंडली में लग्न अर्थात प्रथम भाव उदय होने का स्थान है तथा सप्तम स्थान अस्त होने का स्थान माना गया है| इसी प्रकार जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव मध्यरात्रि या पाताल का प्रतीक है तो दशम स्थान ऊँचाई अर्थात आकाश को दर्शाता है| इससे यह सिद्ध हुआ कि दशम भाव का जीवन में प्राप्त होने वाली ऊंचाईयों(सफलता, मान-सम्मान, यश, प्रतिष्ठा) से घनिष्ठ संबंध है| ज्योतिष में केतु झंडा व ऊंचाई का कारक है| केतु की यह विशेषता होती है की यदि वह किसी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित ग्रह के साथ बैठा हो तो उस भाव तथा ग्रह को चौगुना बली कर देता है| जब भी दशमेश(दशम भाव का स्वामी) दशम भाव में अपनी उच्च राशि या स्वराशि में केतु के साथ बैठा हो और इन घटकों पर अन्य शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो इस स्थिति में दशम भाव अत्यंत बलवान हो जाता है और व्यक्ति महान शासक, राजपात्र अधिकारी, मंत्री, राजनेता, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति जैसे पद को सुशोभित करता है|