चित्रा नक्षत्र (चमकदार) (कन्या राशि के 23°20′ से तुला राशि के 6°40′ तक)
चित्रा नक्षत्र स्पाइका (अल्फा-वर्जिनिस) नामक एक एकल तारे द्वारा प्रदर्शित होता है जो कन्या राशि में आता है| यह आकाश में सबसे उज्जवल तारों में से एक है। चित्रा का अर्थ “चमकदार” है। ज्योतिष में चित्रा नक्षत्र कन्या व तुला राशि के अंतर्गत आता है| इस नक्षत्र के अधिदेवता दैवीय वास्तुकार विश्वकर्मा हैं जो अभाव से नई चीजों का निर्माण करने की क्षमता प्रदान करते हैं। इस नक्षत्र में उत्पन्न लोग रूप, सौंदर्य, कला और संरचना से प्रभावित होते हैं। चित्रा नक्षत्र विपरीत लिंग को आकर्षित करने की क्षमता प्रदान करता है| विशेष रूप से तुला के चरणों में पैदा लोगों को यह अधिक प्रभावित करता है| इस नक्षत्र में पैदा लोग सद्भाव व पूर्णता की ख़ोज करते हैं लेकिन असंतुलन उन्हें अक्सर आसक्ति या कट्टर व्यवहार की ओर जाता है। चित्रा नक्षत्र में उत्पन्न लोग ऊपरी तौर पर व्यवस्थित दिखाई देने की कोशिश करते हैं लेकिन आंतरिक रूप से वे अव्यवस्थित या निराशावादी हो सकते हैं। यह नक्षत्र संदेह या अनिश्चितता दे सकता है लेकिन प्रेरणा और असाधारण अनुभव भी प्रदान करता है|
सामान्य विशेषताएँ: बुद्धिमान, कुशल, रचनात्मक, विद्वान, सामाजिक, आकर्षक, जन्मजात नेता
अनुवाद: “चमकदार”, “उज्जवल”
प्रतीक: एक उज्ज्वल आभूषण या चमकदार ज्योति
पशु प्रतीक: बाघिन
अधिपति देव: विश्वकर्मा, ब्रह्माण्ड के दैवीय वास्तुकार
शासक ग्रह: मंगल
मंगल ग्रह के अधिपति देव: मुरुगा
प्रकृति: राक्षस (दानव)
ढंग: सक्रिय
संख्या: 14
लिंग: स्त्री
दोष: पित
गुण: तामसिक
तत्व: अग्नि
प्रकृति: नरम, सौम्य व कोमल
पक्षी: कठफोड़वा
सामान्य नाम: वरुण
वानस्पतिक नाम: क्रैटवरेलिगिओसा
बीज ध्वनि: पे, पो, रा, री
ग्रह से संबंध: कन्या राशि के स्वामी के रूप में बुध व तुला राशि के स्वामी के रूप में शुक्र इस नक्षत्र से संबंधित है|
प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में विभाजित किया जाता है जिन्हें पद कहते हैं| चित्रा नक्षत्र के विभिन्न पदों में जन्म लेने वाले लोगों के अधिक विशिष्ट लक्षण होते हैं:

पद:
| प्रथम पद | कन्या राशि का 23°20′ – 26°40′ भाग सूर्य ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: पे सूचक शब्द: गुप्त |
द्वितीय पद | कन्या राशि का 26°40′ – 30°00′ भाग बुध ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: पो सूचक शब्द: अनुशासन |
तृतीय पद | तुला राशि का 00°00′ – 3°20′ भाग शुक्र ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: रा सूचक शब्द: संबंध |
चतुर्थ पद | तुला राशि का 3°20′ – 6°40′ भाग मंगल ग्रह द्वारा शासित ध्वनि: री सूचक शब्द: रहस्यमय |
शक्ति: आकर्षक, कलात्मक, महान प्रेमी, स्वतंत्र, जन्मजात नेता जो दूसरों के जीवन को प्रभावित करना चाहता है, मिलनसार, अनुभवी, महान उत्साही, सुरुचिपूर्ण, विज्ञ, प्रतिष्ठित, विवेकशील, उत्तम व्यवसायिक कौशल से युक्त, प्रसन्न, उत्तम वस्त्र पहनने वाला व साफ़-सुथरा रहने वाला, सुशिक्षित, दर्शन और सामाजिक विचारों के प्रति आकर्षित, अपनी जन्मभूमि से दूर या विदेश में उन्नति करने वाला, सिद्धहस्त, मूर्तिकला, मुद्रण संबंधी आदि कलाओं के प्रति अधिक रुझान, सक्षम डिज़ाइनर
कमजोरियाँ: स्वयं को श्रेष्ठ समझने वाला, अभिमानी, आसानी से ऊब जाने वाला, आत्म केंद्रित, रोमांच के प्रति आकर्षित, लापरवाह साथी, झगड़ालू, आलोचनात्मक, किसी व्यक्ति के दृष्टिकोण को चुनौती देने के लिए आतुर, भ्रष्ट, अनैतिक, धन संचय न करने वाला|
कार्यक्षेत्र: वास्तुकार, चित्रकार, मूर्तिकार, शिल्पी, वेश-भूषा सज्जाकार, सौन्दर्य-प्रसाधन सज्जाकार, रूप देने वाला
शल्य-चिकित्सक, फोटोग्राफर, चित्रात्मक कलाकार, संगीतकार, वक्ता, प्रसारित करनेवाला, व्यापार, आंतरिक सज्जाकार, आभूषण निर्माता, फेंग शुई विशेषज्ञ, आविष्कारक, कल-पुर्जे उत्पादन, निर्माणकर्त्ता, परिदृश्य वास्तुकार, चित्रकार, पटकथा लेखक, कला निर्देशक, नाटकशाला कलाकार, जैज़ संगीतकार, औषधि विशेषज्ञ, विज्ञापन, बहुमुखी प्रतिभा से संबंधित कोई भी कार्य
चित्रा नक्षत्र में जन्में प्रसिद्ध लोग: रिचर्ड चेम्बरलेन, विल्ट चेम्बरलेन, जॉर्ज बुश, ड्वाइट आयजनहोवर, मैरी एंटोनेट, सिडनी पोइटियर
अनुकूल गतिविधियां: स्वास्थ्य संरक्षण, नए वस्त्र ख़रीदना, घर की मरम्मत, घर की रचना, कला और शिल्प, यांत्रिक गतिविधियाँ, प्रदर्शन, साज-सज्जा, आध्यात्मिक अभ्यास, विपरीत लिंग से संबद्ध होना, दवाएँ तैयार करना, ऐसी गतिविधियाँ जिनमें प्रतिभा और वाक्पटुता की आवश्यकता हो।
प्रतिकूल गतिविधियां: विवाह, अन्वेषण या प्रत्यक्ष विरोध
पवित्र मंदिर: कुरुविठ्ठुरई श्री चित्रा रथ वल्लभ पेरुमल मंदिर
चित्रा नक्षत्र से संबंधित यह पवित्र मंदिर भारत में तमिलनाडु के मदुरै के निकट कुरुविठ्ठुरई में स्थित है। चित्रा नक्षत्र में पैदा हुए लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इस पवित्र मंदिर के दर्शन करके यहाँ पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए| यह मंदिर भगवान श्री विष्णु का निवास है जो यहाँ श्री चित्रा रथ वल्लभ पेरुमल के रूप में प्रकट हुए थे। इसके अतिरिक्त यहाँ श्री सुदर्शन पेरुमल व श्री गुरु भगवान का भी निवास है|
कुरुविठ्ठुरई में चित्रा रथ का बहुत अधिक महत्व है। विष्णुपति पर्व के दौरान चित्रा रथ का प्रयोग श्री महाविष्णु की शोभा यात्रा निकालने के लिए एक वाहन के रूप में किया जाता है| पृथ्वी पर दृश्य सात रंग तथा चित्रा नक्षत्र के तारा पुंजो में मौजूद सात हज़ार रंग इस रथ में निहित हैं। चित्रा नक्षत्र रंग व रूप के अर्थ को चित्रित करता है| चित्रा नक्षत्र संरचना व वल्लभ शाश्वतता का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्री महाविष्णु यह प्रकट करते हैं कि एक आध्यात्मिक शिक्षक के चरणों की सीमा अनन्त होती है।
यह स्थल कुरुविठ्ठुरई के नाम से प्रसिद्ध है तथा समस्त आध्यात्मिक शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण है| इस स्थल पर दैवीय शिक्षकों की हजारों प्रज्वलित ज्योति के दर्शन उत्सर्जित हुए थे। यही वह स्थल है जहाँ श्री बृहस्पति व श्री शुक्राचार्य समस्त शिक्षकों के प्रधान गुरु बन थे| शुक्राचार्य ने तिरुभुवन श्री वरदराज पेरूमल मंदिर में तथा उसी समय बृहस्पति ने श्री कुरुविठ्ठुरई मंदिर में तपस्या की थी| वे दोनों देवताओं व राक्षसों के बीच शांतिपूर्ण जीवन स्थापित करने हेतु श्री नारायणमूर्ति जी की पूजा-अर्चना कर रहे थे। इन दो मंदिरों को जोड़ने वाली नदी को भार्गास्पति कहा जाता है जो कि वैगई नदी का मूल स्रोत भी है। श्री नारायण मूर्ति जी ने नदी के ताल पर श्री शुक्राचार्य व श्री बृहस्पति जी को दर्शन दिए| उन दोनों को कलियुग के दौरान नव ग्रहों के रूप में प्रतिष्ठित होने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था|
इस मंदिर में सात प्रकार के अभिषेक होते हैं तथा सात विभिन्न प्रकार के फूलों की माला अर्पित की जाती है| इस मंदिर की यात्रा करने वाले उन समस्त लोगों को लाभ होगा यदि वे एक चंदन की पेटी या पीले थैले में अपनी जन्म कुंडली साथ लेकर आते हैं तथा इस मंदिर की 21 परिक्रमा करते हैं| इससे पूर्वजन्म के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है तथा नवग्रहों का आशीर्वाद प्राप्त होता है| यह पवित्र स्थल दुःख व अवसाद से ग्रसित लोगों की भी सहायता करेगा। चित्रा नक्षत्र में उत्पन्न लोगों को इस पवित्र मंदिर में सुगंधित व रंग-बिरंगे पुष्पों की माला अर्पित करने से बहुत लाभ मिलेगा|
चित्रा नक्षत्र में जन्में लोगों के लिए वेदों द्वारा निर्धारित धूप वरुण नामक जड़ी-बूटी से निर्मित है|
इस धूप को जलाना उस विशिष्ट नक्षत्र हेतु एक लघु यज्ञ अनुष्ठान करने के समान है| एक विशिष्ट जन्मनक्षत्र के निमित किए गए इस लघु अनुष्ठान द्वारा आप अपने ग्रहों की आन्तरिक उर्जा से जुड़कर सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में सक्षम होंगे|
एक विशिष्ट नक्षत्र दिवस पर अन्य नक्षत्र धूपों को जलाने से आप उस दिन के नक्षत्र की ऊर्जा से जुड़कर अनुकूल परिणाम प्राप्त करते हैं| आपको यह सलाह दी जाती है कि आप कम से कम अपने व्यक्तिगत नक्षत्र से जुड़ी धूप को प्रतिदिन जलाएं ताकि आपको उस नक्षत्र से जुड़ी सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती रहे|
खरीदने के लिए यहां क्लिक करें
| अश्विनी | मघा | मूल |
| भरणी | पूर्वाफाल्गुनी | पूर्वाषाढा |
| कृतिका | उत्तराफाल्गुनी | उत्तराषाढ़ा |
| रोहिणी | हस्त | श्रवण |
| मृगशिरा | चित्रा | धनिष्ठा |
| आर्द्रा | स्वाति | शतभिषा |
| पुनर्वसु | विशाखा | पूर्वाभाद्रपदा |
| पुष्य | अनुराधा | उत्तराभाद्रपद |
| अश्लेषा | ज्येष्ठा | रेवती |