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तिरुवन्नामलई अरुणाचलेश्वर मंदिर का इतिहास

तिरुवन्नामलई स्थित अरुणाचलेश्वर मंदिर दक्षिण भारत का एक प्राचीन और प्रमुख शिव मंदिर है। यह मंदिर तमिलनाडु राज्य में स्थित है और इसे शिवजी के पांच तत्वों (पंचभूत) में से अग्नि तत्व का प्रतीक माना जाता है। अरुणाचल पर्वत के निकट स्थित यह मंदिर हिन्दू धर्म में गहरी आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। इसे “अग्नि स्थल” के रूप में जाना जाता है, जहाँ भगवान शिव की अग्नि रूप में पूजा की जाती है। मंदिर की पौराणिक कथाएँ, स्थापत्य कला और धार्मिक महत्त्व इसे विश्वभर के भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बनाते हैं।

पौराणिक और धार्मिक महत्त्व

अरुणाचलेश्वर मंदिर से जुड़ी कई महत्वपूर्ण पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध है भगवान शिव का अग्नि स्तम्भ रूप में प्रकट होना। यह कथा भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच उत्पन्न श्रेष्ठता के विवाद से संबंधित है। कथा के अनुसार, दोनों देवता यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि उनमें से कौन महान है। इस विवाद को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने एक अनंत अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट होकर अपनी महिमा का परिचय दिया।

भगवान विष्णु ने वराह (सूअर) का रूप धारण कर धरती की गहराइयों तक जाने का प्रयास किया, जबकि भगवान ब्रह्मा ने हंस का रूप लेकर स्तम्भ के शिखर तक पहुँचने की कोशिश की। परंतु दोनों ही असफल रहे और उन्हें यह समझ में आ गया कि शिव अनंत और असीम हैं। यही अग्नि रूप अरुणाचल पर्वत के रूप में प्रकट हुआ, जिसे शिव के अग्नि लिंग के रूप में पूजा जाता है।

मंदिर की स्थापत्य कला

अरुणाचलेश्वर मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में हुआ है, जो दक्षिण भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह विशाल मंदिर 25 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है, और इसके कई गोपुरम (मंदिर के प्रवेश द्वारों पर स्थित ऊंचे टॉवर) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। इनमें से मुख्य राजगोपुरम है, जो लगभग 66 मीटर ऊँचा है। यह मंदिर का सबसे प्रमुख और भव्य प्रवेश द्वार है और इस पर अद्वितीय नक्काशी और मूर्तियों का काम किया गया है।

मंदिर परिसर में कई मंडप (स्तंभों पर बने हॉल) और जलाशय भी हैं। इनमें से 1000-स्तंभ मंडप (अयिराम कली मंडपम) मंदिर की विशालता और भव्यता का प्रतीक है। इसके अलावा, मंदिर के चारों ओर बड़े-बड़े प्राचीर बने हुए हैं, जो इसे एक किले जैसा स्वरूप प्रदान करते हैं।

पंचभूत स्थल

अरुणाचलेश्वर मंदिर पंचभूत स्थलों में से एक है, जहाँ भगवान शिव को पाँच प्राकृतिक तत्वों के रूप में पूजा जाता है। ये पाँच स्थल हैंरू

कांचीपुरम का एकाम्बरेश्वर मंदिर – पृथ्वी तत्व
तिरुवनैकवल का जम्बुकेश्वर मंदिर – जल तत्व
तिरुवन्नामलई का अरुणाचलेश्वर मंदिर – अग्नि तत्व
श्रीकालहस्ती का श्रीकालहस्तेश्वर मंदिर – वायु तत्व
चिदंबरम का नटराज मंदिर – आकाश तत्व
अरुणाचलेश्वर मंदिर विशेष रूप से अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, जो शिव के रूप में ऊर्जा और परिवर्तन का प्रतीक है। यह मंदिर अग्नि के शुद्धिकरण और आत्मज्ञान के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

प्रमुख उत्सव

मंदिर में वर्षभर कई धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव मनाए जाते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है कार्तिगई दीपम। यह पर्व कार्तिक महीने (नवंबर-दिसंबर) में मनाया जाता है। इस दिन अरुणाचल पर्वत के शिखर पर एक विशाल दीप जलाया जाता है, जिसे देखने के लिए लाखों भक्त एकत्र होते हैं। इस दीप को भगवान शिव के अग्नि रूप का प्रतीक माना जाता है, और इसे देखने मात्र से भक्तों को अनंत आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।

इसके अलावा, पूर्णिमा के दिन गिरिवलम (पर्वत की परिक्रमा) करने की परंपरा भी यहाँ अत्यधिक प्रचलित है। अरुणाचल पर्वत की 14 किलोमीटर लंबी परिक्रमा करते हुए श्रद्धालु भगवान शिव की महिमा का गान करते हैं और यह मान्यता है कि इस परिक्रमा से जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आध्यात्मिक महत्त्व

तिरुवन्नामलई का अरुणाचलेश्वर मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इसे आत्मज्ञान का केंद्र भी माना जाता है। यहाँ के पर्वत और मंदिर के प्रति श्रद्धा रखने वाले संतों में प्रमुख नाम है श्री रमण महर्षि का। रमण महर्षि ने अपने जीवन का अधिकांश समय अरुणाचल पर्वत के चरणों में ध्यान साधना में बिताया। उनके अनुसार, अरुणाचल पर्वत स्वयं भगवान शिव का जीवंत स्वरूप है और यह आत्मज्ञान प्राप्त करने का अद्वितीय साधन है।

निष्कर्ष

तिरुवन्नामलई का अरुणाचलेश्वर मंदिर अपनी धार्मिक, ऐतिहासिक, और आध्यात्मिक महत्ता के कारण न केवल तमिलनाडु, बल्कि पूरे भारत में अत्यंत पूजनीय है। यह मंदिर भगवान शिव के अग्नि स्वरूप की आराधना का प्रमुख स्थल है, जहाँ भक्तों को आत्मशुद्धि, आत्मज्ञान, और मोक्ष प्राप्ति की अनुभूति होती है। मंदिर की विशालता, स्थापत्य कला, और पौराणिक कथाएँ इसे दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक बनाती हैं।

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