हिंदू पंचांग में अमावस्या को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह तिथि हर माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम रात को आती है, जब चंद्रमा पूर्णतः लुप्त हो जाता है। अमावस्या का दिन पितृ तर्पण, कर्म शुद्धि, दान, और अध्यात्मिक साधना के लिए विशेष रूप से शुभ होता है।
आइए जानते हैं 2025 की सभी अमावस्या तिथियाँ, उनका अध्यात्मिक महत्व, और किस दिन कौन-सी अमावस्या क्यों खास हैः-
प्रमुख अमावस्याओं का महत्व
मौनी अमावस्या (29 जनवरी)
यह मौन रहने, ध्यान, गंगा स्नान और तपस्या का विशेष दिन है। माना जाता है कि इस दिन मौन व्रत और पुण्य कार्य करने से हजारों यज्ञों के बराबर फल मिलता है।
शनि अमावस्या (29 मार्च व 22 अगस्त)
शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या को शनि अमावस्या कहते हैं। यह दिन शनि दोष, साढ़ेसाती, कालसर्प या पितृदोष के उपाय के लिए अत्यंत प्रभावशाली होता है।
भौमवती अमावस्या (27 मई व 21 अक्टूबर)
मंगलवार को पड़ने वाली अमावस्या। इसमें पितरों के तर्पण के साथ-साथ मंगल ग्रह की बाधाओं के निवारण के लिए विशेष पूजा की जाती है।
वैशाख अमावस्या (27 अप्रैल)
यह दान, स्नान, और पितृ पूजन के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। इसे ष्धर्मदायिनी अमावस्याष् भी कहा जाता है।
हरियाली अमावस्या (24 जुलाई)
श्रावण मास में आने वाली इस अमावस्या को हरियाली के प्रतीक रूप में मनाया जाता है। वृक्षारोपण, पितृ तर्पण और व्रत का बड़ा महत्व होता है।
महालय अमावस्या (21 सितंबर)
यह पितृपक्ष की अंतिम तिथि होती है। इस दिन किया गया श्राद्ध समस्त पितरों तक पहुँचता है और उनका आशीर्वाद घर को समृद्ध करता है।
अमावस्या पर क्या करें?
तिल और जल से पितरों का तर्पण करें
किसी पवित्र नदी में स्नान करें
काले तिल, वस्त्र, भोजन, दक्षिणा का दान करें
मौन व्रत, ध्यान और गायत्री मंत्र – महामृत्युंजय जप करें
ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन करवाएं
अमावस्या पर क्या न करें?
किसी का अपमान या बुरा सोचना
बाल काटना, नाखून काटना, झूठ बोलना
भारी लेन-देन या नया कार्य आरंभ
मांस, मदिरा, तामसिक भोजन से बचें
अमावस्या क्यों खास है?
हर अमावस्या हमें जीवन में ध्यान, आत्मशुद्धि और पितृ कृतज्ञता की याद दिलाती है। यह दिन आत्मिक शांति और पूर्वजों से जुड़े रिश्तों को सम्मान देने का अवसर होता है। इस दिन की गई पूजा और दान कर्म संतुलन के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं।
2025 की अमावस्याएं जीवन को आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाने के कई अवसर लाती हैं। यदि हम हर अमावस्या को ध्यान, तप और श्रद्धा के साथ मनाएं, तो न केवल पितृदोष शांत होता है, बल्कि जीवन में शांति, समृद्धि और सुख भी आता है।