आसमाई की पूजा वैशाख, आषाढ़ और माघ, के तीनों महीनों में से रविवार की तिथि के दिन की जाती है। आसमाई पूजा के महत्व की बात करें तो यह किसी कार्य को सिद्धि करने के लिये की जाती है और मान्यताओं के अनुसार इस पूजा के फल स्वरूप उसका कार्य सिद्ध होता है। देष के कई हिस्सों में यह पूजा साल में एक, दो या तीन बार भी की जाती है। सासमाई पूजा के साथ ही बाराजीत (बारह आदित्य) की पूजा भी की जाती है। सामान्यतौर पर पुत्र की माता ही आसमाई का व्रत करती है। इस व्रत को धारण करने वाले श्रद्धालु अलोना अर्थात बिना नमक का भोजन करते हैं।
आसमाई व्रत के दिन पुत्रवती महिलाएं पान के पत्ते पर गोपी चंदन अथवा श्रीखंड चंदन से पुतली बनाती है। इन पत्तों पर चार कड़ियां स्थापित की जाती हैं। महिलाएं सुन्दर अल्पना बनाकर उस पर कलश रखती हैं। इस व्रत का पालन करने वाली महिलाएं गोटियों वाला मांगलिक सूत्र पहन कर आसमाई को भोग लगाती हैं इस दौरान अन्य महिलाओं को भेट भी दी जाती हैं। इस व्रत में व्रती मीठा अथवा बिना नमक का भोजन करती है।
आसमाई की कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक राजा था। उसका एक पुत्र था। इकलौता पुत्र होने के कारण वह अपने माता-पिता का बहुत लाडला था इसलिए वह बहुत अधिक मस्ती किया करता था। वह अपने राज्य के कुओं व जलघटो पर बैठ जाता और लड़कियां अपने जल पात्र में जल भरकर घर जाने लगतीं तो गुलेल से पत्थर मारकर उनके घड़े फोड़ देता था। राज्य की जनता ने राजा के पास जाकर राजकुमार के आचरण की शिकायत की तब राजा ने कहा “अब से कोई मिट्टी का घड़ा लेकर पानी भरने न जाया करे। जिनके यहां तांबे-पीतल के घड़े नही हैं, वे हमारे यहां से घड़े ले लें।
जब लड़कियां और महिलाएं तांबे-पीतल के घड़े से पानी भरकर लाने लगीं, तब राजकुमार लोहे और कांच के कंकरों से उनके घड़े फोड़ने लगा। लोगों ने एकत्र होकर राजा से फिर कहा कि अब तो हम आप के राज्य से चले जाएंगे। या तो राजकुमार को राज्य से बाहर भेजो, राजा ने किसी तरह पीड़ित लोगों को समझाकर भेज दिया।
राजकुमार उस समय आखेट पर गया हुआ था। तब राजा ने अपने सिपाहियों को एक पत्र देकर राजकुमार को देश निकाला देने का आदेश दिया जब राजकुमार वापस आये तब सिपाहियों ने उन्हे राजा का आदेश दिखाकर देष छोडकर जाने को कहा और राजकुमार वहीं से जंगल की ओर चला गया।
जब राजकुमार जंगल की ओर जा रहा था तब उसे चार बुढ़ियां सामने से आती हुई दिखाई दी उसी समय अनायास राजकुमार का चाबुक गिर गया। उसे उठाने के लिए वह घोड़े पर से उतरा और अपना चाबुक लेकर फिर आगे बढ़ा। बुढ़ियों ने लगा कि इस पथिक ने घोड़े से उतरकर हमारा अभिवादन किया है। बुढ़ियांओं ने पुछा राहगीर बताओं तुमने हम लोगों में से किसको घोड़े से उतरकर प्रणाम किया था। राजकुमार ने कहा आप में से जो बड़ी हो मैने उसी को प्रणाम किया है। तब उन्होंने कहा हम में से कोई एक दूसरे से कम नहीं हैं। अपने-अपने स्थान पर सब बड़ी हैं। जब आप मुझे अपने नाम बताओगी तब मैं बतलाऊँगा कि मैने किसे प्रणाम किया था।
उस चारों बुढ़ियाओं में से एक ने कहा “मेरा नाम भूखमाई है।” राजकुमार ने कहा तुम्हारी एक स्थिति नहीं और तुम्हारा कोई मुख्य उद्देश्य लक्ष्य भी मुझे समझ नहीं आता है। किसी की भूख जैसे अच्छे भोजनों से शांत होती है, वैसे ही रूखे-सूखे टुकड़े से भी शान्त हो जाती है। इसलिए मैने तुमको प्रणाम नही किया।
दूसरी ने कहा “मेरा नाम प्यासमाई है। राजकुमार ने जवाब दिया “जो हाल भूखमाई का है, वही तुम्हारा है। तुम्हारी शान्ति जैसे गंगाजल से हो सकती है, वैसे ही पोखरी के गंदे जल से भी हो सकती है। इसलिए मैने तुमको भी प्रणाम नहीं किया।
तीसरी बोली “मेरा नाम नींदमाई है।” राजकुमार ने कहा “तुम्हारा प्रभाव या स्वभाव भी उक्त दोनों की तरह लक्ष्यहीन है। पुष्पों को शैय्या पर जैसे नींद आती है, वैसे ही खेत के ढेलो में भी आती है। इसलिए मैने तुमको भी प्रणाम नहीं किया।
अन्त मे चैथी बुढ़िया ने कहा मेरा नाम आसमाई है। तब राजकुमार बोला जैसे ये तीनों मनुष्य को विकल कर देने वाली हैं वैसे ही तुम उसकी विकलता का नाशकर उसे शान्ति देने वाली हो। इसलिए मेंने तुम्हीं को प्रणाम किया है। इससे प्रसन्न होकर आसमाई ने राजकुमार को चार कोड़ियां देकर आशिर्वाद दिया कि जब तक ये कोड़ियां तुम्हारे पास रहेगी, कोई भी तुम से युद्ध मे या जुएं मे न जीत सकेगा। तुम जिस काम मे हाथ लगाओगे उसी में तुमको सिद्धि होगी। तुम्हारी जो इच्छा होगी या यत्न करते हुए तुम जिस वस्तु की प्राप्ति की आशा करोगे वही तुमको प्राप्त होगी। राजकुमार चलता-चलता कुछ दिनों के बाद एक राजा के शहर में पहुँचा। उस राजा को जुआं खेलने का शौक था। इस कारण उसके नौकर-चाकर, प्रजा-परिजन सभी को जुआ खेलने का अभ्यास पड़ गया था। राजा के कपड़े धोने वाला धोबी भी जुआरी था। वह नदी के जिस घाट पर कपड़े धो रहा था, उसी घाट पर राजकुमार अपने घोड़े को नहलाने ले गया। धोबी उससे बोलादृ“मुसाफिर! पहले मेरे साथ दो हाथ खेल लो, जीत जाओ तो घोड़े को पानी पिलाकर चले जाना और राजा के सब कपड़े जीत में ले जाना और जो हार जाओ तो घोड़ा देकर चले जाना। फिर मैं इसे पानी पिलाता रहूँगा। राजकुमार को तो आसमाई के वरदान का बल था। वह घोड़े की लगाम थामकर खेलने बैठ गया। थोड़ी ही देर में राजकुमार ने राजा के सब कपड़े जीत लिए। उसने कपड़े तो न लिए। पर घोड़े का पानो पिलाकर वह चला गया। जब राजा को यह बात पता चली तो उन्होंने राजकुमार के साथ खेलने की इच्छा जाहिर की और दो चार खेलों में ही अपनी सारी संपत्ति हार गया। राजा ने सलाह मषवरे के बाद अपना राज बचाने के लिए अपनी बेटी का विवाह राजकुमार से कर दिया। राजा की बेटी बहुत सदाचारिणी थी और उसने राजकुमार से उसके परिवार से मिलने की इच्छा जताई। तब राजकुमार ने राजा से आज्ञा लेकर अपने पिता के राज्य की ओर रूख किया। अपने पिता के राज्य पहुंचकर उसने सैनिकों से यह खबर भिजवाई की मै आ गया हूं। तब राजा और रानी जो अपने बेटे के वियोग में लगभग अंधे हो गये थे वे प्रसन्न हुए और अपने बेटे को गले लगा लिया। धीरे-धीरे उनकी आंखों की रोषनी आ गई और जिस परिवार में अंधेरा पड़ा था, उसी परिवार में आसमाई की कृपा से आनन्द की वर्षा होने लगी। उसी समय से लोक में आसमाई की पूजा का रिवाज चला है।