ब्रह्मांड की एक लय होती है, और जो व्यक्ति अपनी लय को इस लय के साथ तालमेल बिठाकर चलता है, वह भाग्यशाली होता है। दुनिया में कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं हो सकते, प्रत्येक व्यक्ति विशेष होता है, और उसकी लय भी विशेष होती है। यहां तक कि जुड़वां बच्चों की लय भी अलग हो सकती है। जब व्यक्ति अपनी लय खो देता है, तो वह दुर्भाग्य का सामना करता है। ज्योतिषीय उपाय इस खोई हुई लय को फिर से पाने का प्रयास है। यह लय संगीत के माध्यम से भी प्राप्त की जा सकती है, अर्थात् ज्योतिषीय उपचार संगीत द्वारा भी किए जा सकते हैं। जैसे वास्तु में वास्तु पुरुष होता है, वैसे ही ज्योतिष में कालपुरुष होता है। कालपुरुष स्वयं भगवान शिव हैं। भगवान शिव के मुख से ही संगीत के मूल स्वर उत्पन्न हुए हैं। अनाहत नाद से ब्रह्म की उत्पत्ति करने वाले आदि शिव के मुख से ही संगीत की लहरियां भी निकली हैं। ये संगीत की लहरियां हमें बेसुरे से सुर और बेताल से ताल में लाने में मदद कर सकती हैं।
वेदों के छह अंगों में से एक ज्योतिष और एक वेद, सामवेद में संगीत से ज्योतिषीय उपचार का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से देखा गया है कि संगीत न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है। भजन, ध्यान और आनंद में संगीत सामान्य है, लेकिन उपचार में भी इसका उपयोग करने पर अच्छे परिणाम मिलते हैं। समय के साथ कई मनीषियों ने संगीत के मानव जीवन पर प्रभावों का अध्ययन किया है, और कुछ संकेत हमें संगीत और ग्रहों के स्वभाव के अनुसार मिलते हैं। अगर दोनों का उचित तालमेल हो, तो ज्योतिषीय दृष्टिकोण से सटीक उपचार संभव है। हालांकि इसके लिए हमारे पास अभी बहुत बड़ा नमूना आकार नहीं है, लेकिन उपलब्ध जानकारी के आधार पर प्रयोग करने से अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

श्वास संबंधी रोगों में मालकौंस और ललित राग उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं, रक्तचाप के लिए वीणा वादन, अवसाद में राग विहाग और मधुवंती, रक्त की कमी में राग पीलू, कमजोर स्मृति में राग शिवरंजनी, क्षीण शारीरिक बल में राग जयजयवंती, पित्त रोग में राग खमाज, अनिद्रा में भैरवी और हृदय रोग में राग दरबारी उपयोगी माने गए हैं।
संगीत के सात सुरों को ज्योतिष के सात ग्रहों से जोड़ा जाता है। सा, रे, गा, मा, प, ध, नि, सा में प्रत्येक सुर किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। मोटे तौर पर सा को सूर्य, रे को बुध, गा को शनि, मा को शुक्र, प को चंद्रमा आदि से संबंधित माना गया है।
षड्ज यानी सा अग्नि का स्वर है।
ऋषभ यानी रे ब्रह्म का स्वर है।
गांधार यानी गा सरस्वती का स्वर है।
मध्यम यानी मा महादेव का स्वर है।
पंचम यानी प लक्ष्मी का स्वर है।
धैवत यानी ध गणेश का स्वर है और बुध से संबंधित है।
निषाद यानी नि सूर्यदेव का स्वर है और सूर्य से संबंधित है।
ज्योतिषीय उपचारों में संगीत का मानसिक उपचार सीधे तौर पर व्यक्ति के पंचम भाव से जुड़ा होता है। अगर तनाव मानसिक है, तो पंचम भाव से संबंधित उपचार ही सटीक काम करेंगे। ऐसा माना जाता है कि कंठस्वर की तुलना में सितार, सरोद, वायलिन, बांसुरी, शहनाई आदि वाद्ययंत्रों के माध्यम से प्रस्तुत शास्त्रीय संगीत अधिक प्रभावी सिद्ध होता है।
मेष लग्न में पंचम अधिपति सूर्य हैं, तो इनके लिए बागेश्वरी, वसंत बहार, भैरवी, काफी, भीमपलासी आदि राग बताए गए हैं।
वृषभ और कुंभ लग्न में पंचम अधिपति बुध हैं, तो इनके लिए भैरव, देस, जयजयवंती, दरबारी, मारवा, रामकली, छायानट आदि राग बताए गए हैं।
मिथुन और मकर लग्न में पंचम अधिपति शुक्र हैं, तो इनके लिए बागेश्वरी, केदार, भीमपलासी, मालकौंस, बहार, भैरवी और मल्हार राग बताए गए हैं।
कर्क और धनु लग्न में पंचम अधिपति मंगल हैं, तो इनके लिए भूपाली, हमीर, सोहनी, जौनपुरी, शुद्धकल्याण, आसावरी और भैरवी राग बताए गए हैं।
सिंह और वृश्चिक लग्न में पंचम अधिपति गुरु हैं, तो इनके लिए बिहाग, पीलू, शंकरा, पूरिया, यमन और खमाज राग बताए गए हैं।
कन्या और तुला लग्न में पंचम अधिपति शनि हैं, तो इनके लिए बिहाग, हमीर, सोहनी, पीलू, जौनपुरी, शुद्धकल्याण, शंकरा, यमन, आसावरी, तोड़ी और पूरिया राग बताए गए हैं।
मीन लग्न में पंचम अधिपति चंद्रमा हैं, तो इनके लिए काफी, दरबारी, अड़ाना, मल्हार, वसंत, जयजयवंती, देस, हमीर, कमोद राग बताए गए हैं।
कुछ राग विशेष लग्न और राशियों के लिए निषिद्ध भी माने जाते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि किसी भी लग्न के कारक ग्रहों से संबंधित स्वर यदि किसी राग में उपयोग नहीं हो रहे हैं, तो वे राग उस लग्न के लिए हानिकारक हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, कर्क राशि के जातकों को पूरिया, ललित और सोहनी रागों से परहेज करना चाहिए, क्योंकि इनमें चंद्रमा से संबंधित पंचम स्वर (प) वर्जित है। इसी प्रकार शंकरा में शुक्र का स्वर मध्यम (म) वर्जित है, इसलिए वृषभ और तुला राशि के जातकों को शंकरा से परहेज करना चाहिए। राग केदार में ऋषभ (र) वर्जित होने के कारण बुध से जुड़े लग्नों, यानी मिथुन और कन्या, को केदार से परहेज की सलाह दी जाती है।
स्वरों के आरोह और अवरोह के आधार पर किसी भी राग के नौ प्रकार हो सकते हैं। एक थाट में कुल 484 प्रकार के राग हो सकते हैं और थाट कुल 62 प्रकार के हैं। इस प्रकार, रागों की संख्या कुल मिलाकर 34,848 हो जाती है। कौन सा राग किस जातक पर कैसे प्रभावी होगा, यह पूर्ण शुद्धता के साथ नहीं कहा जा सकता, लेकिन रागों की प्रकृति और ग्रहों की प्रकृति के मिलान से हम जातकों को अपनी शुद्ध लय के करीब ला सकते हैं। बाद में जातक स्वयं उन रागों को सुनकर तय कर सकता है कि उसकी सबसे करीबी राग कौन सी है। जहां सर्वश्रेष्ठ लय मिले, वहीं जातक को रुक जाना चाहिए, क्योंकि उसी राग और लय से उसे प्रकृति की लय भी मिल जाएगी।